गौरवशाली भारत का चित्र ईसा के जन्म के समय तक
सरलता से भरा हुआ गौरवशाली रहन सहन , उच्चतम आपसी व्यवहार एवं आचरण, जीवन में शांति एवं मिठास, उत्साह से भरे क्रियाकलाप, उदारता से भरा हुआ व्यवहार, शिक्षा ग्रहण करने की प्रवत्ति। उस समय के लोग बहुत ही उत्तम श्रेणी का जीवन जीते थे। समाज आज की तरह बिलकुल भी बंटा हुआ नही था धार्मिक कट्टरता और जड़ताएं समाज में मौजूद नही थी। अवतारवाद, पाखंडवाद, वर्णाश्रम इत्यादि का झूठ समाज में नही फैला था। मानव इतना सरल था कि स्वर्ग और नरक जैसी मान्यताएं और उनका दर लोगों के मन में बिलकुल नही था। पुरोहित वर्ग भी सामान्य जनता के समान ही था यानी सभी मिलेजुले समाज में रहते थे जहां जनता को धर्म के नाम पर नही ठगा जा सकता।
ऐसे साहित्यों और लेख की कमी थी जो पुराणों की तरह झूठ का प्रचार करते हो। लोग स्मृतियों को सजों कर नही रखते थे इसलिए सामजिक विषमता उत्तपन होना बहुत ही मुश्लिल था। उस समय के लोग प्रक्रति से बहुत गहराई से जुड़े हुए थे इसलिए उनका दृष्टिकोण काफी हद तक वैज्ञानिक भी था। वैज्ञानिक दृष्टिकोण की मदद से वे जीवन के हर पहलु पर बारीकी से ध्यान देते थे। इसलिए भारत में पुरानी सभ्याताएं उच्च विचारों एवं परम्पराओं से परिपूर्ण थी। एक समर्द्ध समाज होने के कारण गौरवशाली भारत का इतिहास आज भी विश्व को ज्ञान देने के लिए पर्याप्त है।
गौरवशाली भारत का बारीक इतिहास
भारत में पहली से लेकर 10 वीं शताब्दी का समय वह दौर था जिसे भारतीय इतिहास का स्वर्णिम समय कहा जा सकता है। ईसा पूर्व से चली आ रही शांतिपूर्ण पारंपरिक व्यवस्था हमारी संस्कृति की एक बहुत ही उत्तम विशेषता थी। इस समय समाज आपस में कई सम्प्रदायों में बंटा हुआ नही था। लेकिन इसी समय में कुछ क्षेत्र ऐसे थे जहां धार्मिकता और विलासिता ने अपनी जड़ पकड़नी शुरू कर दी। ऐसा होने से समाज के अन्दर समाज का वर्गिकारण धार्मिकता और विलासिता के आधार पर होना शुरू हो गया। धर्म को साधान बनाकर कई सारे विचार एवं कथाएँ समाज में प्रचलित की गई।
जिसके फलसवरूप समाज में अंधविश्वास और बेतुके विचार और मजबूत होने लगे। धार्मिकता और विलासिता किसी एक विशेष वर्ग के ही बन कर रह गए और समाज के निम्न वर्ग के लोगों की उनसे दूरी बनी। राजा एवं पुजारी वर्ग ने अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिए धर्म के अध्यात्मिक रूप को तोड़ मरोड़ कर उसे अपने अनुसार गढ़ने का काम किया जिसके बाद समाज में विषमताएं बढ़ गई। इन घटनाओं से हिन्दू धर्म को बहुत नुक्सान हुआ और उसकी प्रगति रुकने के कारण बोद्ध और जैन जैसे धर्मों ने लोगों का ध्यान अपनी और खींचा।
पुरोहित वर्ग और पुजारियों ने समाज में एकता स्थापित नही होने दी इसका परिणाम यह हुआ कि भारत कई विभिन्न समुदायों में विभाजित हो गया। भारतीय एकता की सबसे कमजोर स्तिथि का फायदा उठाकर विदेशी आक्रमणकारियों ने भारत पर आक्रमण किया। इन सब गतिविधियों ने वेद,पुराण, उपनिषद, रामायण , महाभारत और गीता जैसे भारतीय प्राचीन साहित्य के मूल विचारों को इस तरह दबाया जिसके बाद अभी तक बहुत की कम लोग उन मूल विचारों से रुबरु हो पाए हैं। ऊँच-नीच की भावना एवं महिला विशेष जाती वर्ग को भी कई वर्षों तक समाज की बुराइयों को झेलना पड़ा।
गौरवशाली भारत पर विदेशियों की पकड़ और फिर आजादी
भारत ने अपने इतिहास में कई बार विदेशी आक्रमणकारियों का सामना किया, जिसमे आक्रमण की शुरुआत सबसे पहले मुस्लिम आक्रमणकारियों ने की। उस समय मध्य एशिया में मुस्लिम शासकों का दबदबा सबसे अधिक था जिसके कारण कई बार मुस्लिम शासकों ने भारत को आक्रमण के लिए चुना। आधुनिक काल में भारत को अंग्रेजों ने अपना गुलाम बना लिया। अंग्रेजों के आने तक भारत एकीकृत नही था लेकिन अंग्रेजों ने अपनी सत्ता भारत में स्थापित करके भारत में राजनितिक एकता स्थापित की।
अंग्रेजों का भारत आने पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का प्रभाव पड़ा। एक तरफ तो अंग्रेजों ने भारत का खूब शोषण किया जिसके कारण भारतीय लोगों ने बहुत सी मुसीबतें झेलीं लेकिन सकारात्मक दृष्टि से अंग्रेज अपने साथ लायी शिक्षा भारत को दे गए। जिसके कारण शिक्षित होकर भारतीयों के मन में देश की स्वतन्त्रता और स्वराज जैसी भावनाएं उत्पन्न हुई।
भारत में अभी भी धार्मिक समुदायों और परप्पराओं के नाम पर बड़ी ग़लतफ़हमियाँ मौजूद है। कबीर , गुरुनानक , स्वामी दयानंद , विवेकानंद , और राममोहन राय जैसे समाजसेवियों ने समय समय पर धर्म के आध्यात्मिक स्वरूप पर अपने विचार प्रकट किये है। लेकिन फिर भी प्राचीन धर्मग्रन्थ और साहित्य जिनको संशोधित करके लिखा गया है ये सभी भारतीय समाज में अभी भी विरोधाभास लाते है।
इसीलिए अगर भारत के गौरवशाली इरिहास को बारीकी से समझना है तो उसके लिए सबसे पहले प्राचीन स्रोतों के निर्माण अवधि का अध्यन तत्काल समय की स्थितियों को ध्यान में रखकर करना बहुत जरुरी है। हर इतिहास में उस समय की विशेष परिस्तिथि मौजूद रहती है जिसमे उसका सार्थक अर्थ निकाल कर प्रस्तुत किया जा सकता है। गौरवशाली भारत के इस माध्यम से हमारी हमेशा कोशिश रहेगी कि भारतीय इतिहास के गौरव को हम हमेशा आपके सामने प्रस्तुत करते रहे।