अमेरिका के राजदूत जॉन कैरी इस सप्ताह जलवायु संकट के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए भारत आ रहे हैं. यह चर्चा पर्यावरण जैसे गंभीर मुद्दें पर भारत और अमेरिका के आपसी दृष्टिकोण को और मजबूत करेंगे. कार्बन उत्सर्जन के मामले के मामले में भारत का स्थान तीसरा है जबकि अमेरिका और चीन दोनों कार्बन उत्सर्जन में पहले दुसरे स्थान पर है. पर्यावरण जैसे मुद्दों पर वैश्विक एवं बड़े द्विपक्षीय देशों के बीच वार्तालाप बहुत जरुरी है लेकिन हाल ही में अमेरिका और चीन के सम्बन्ध ठीक नही है. चीन के बाद अमेरिका इस मुद्दें पर भारत को एक बेहतर सहयोगी मानता है.
जॉन कैरी ने अपनी पिछली मुलाकातों में पर्यावरण के लिए भारत द्वारा उठाए गए क़दमों की तारीफ की है. उन्होंने भारत की तारीफ़ करते हुए कहा था कि मुझे विश्वास है कि भारत और अमेरिका ने जिस तरह हर मुद्दों पर कुछ वर्षों में बारीकी से काम किया है आगे भी दुनिया के इन दो बड़े लोकतान्त्रिक देशों के एक साथ काम करने से जलवायु संकट का सामना करने के लिए बेहतर हल निकलेंगे.
पर्यावरण क्षति वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी समस्या है. वैश्विक स्तर पर हमेशा यह मुद्दा उठता रहा है. पिछले ट्रंप प्रशासन में अमेरिका की तरफ से इस मुद्दें को गंभीरता से नही लिया गया है जबकि उस दौरान भारत लगातार पेरिस जलवायु समझौते का नेतृत्व करता रहा. अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो-बाइडेन ने पर्यावरण पेरिस जलवायु समझौतों में दोबारा से रुचि दिखाई है. यह एक अच्छा कदम है.
अमेरिका अपने सहयोगी देशों को इस विशेष मुद्दें पर अपने साथ लेकर चलना चाहता है. भारत अमेरिका के लिए इस मुद्दे पर ख़ास भूमिका रखता है. भारत में लगातार इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास में अमेरिका योगदान देने की बात करता है जिससे भारत को उर्जा के नए स्त्रोतों का विकल्प मिल सके. भारत भी पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे पर अपना योगदान देना चाहता है.
भारत अपने कार्बन उत्सर्जन में 30 से 35 % तक की कमी चाहता है. ग्रीन इनर्जी, रिन्यूबेल इनर्जी, इंडस्ट्रियल प्रदूषण के मॉनिटरिंग सिस्टम, वृक्षारोपण, जल संरक्षण, सौर उर्जा के उपयोग एवं पारंपरिक इन्धानो के विकल्प के लिए भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करना ये सब भारत की जलवायु नीति का हिस्सा है.