टेक्नोलॉजी के इस युग में हर व्यक्ति अपने इलेक्ट्रॉनिक डाटा को किसी न किसी स्टोरेज डिवाइस में संभाल कर रखता है। क्लाउड सर्वर, हार्ड ड्राइव, पेन ड्राइव, मेमोरी कार्ड, और डीवीडी आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले स्टोरेज डिवाइस है। इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज डिवाइस अपनी अलग-अलग क्षमता के हिसाब से मार्किट में उपलब्ध है लेकिन इन स्टोरेज डिवाइस की भी अपनी एक सीमा है। विश्व में लगातार रोजाना नए इन्टरनेट यूजर्स की संख्या बढ़ रही है जिसके कारण बड़े ही व्यापक स्तर पर रोजाना नए डेटा का निर्माण हो रहा है। गूगल, फेसबुक पर आइबीएम जैसी आईटी कंपनियां भी भविष्य में डेटा स्टोरेज सम्बंधित समस्याओं के लिए चिंतित है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में डेटा सम्बंधित इस समस्या का नया हल निकाला है। निकट भविष्य में इलेक्ट्रोनिक डेटा को अब DNA में स्टोर करने की योजना है।
अब वैज्ञानिक जीवित जीवों के डीएनए में इलेक्ट्रॉनिक डेटा को स्टोर कर सकते है। हार्ड ड्राइव जैसी आम स्टोरेज डिवाइस की तुलना में डीएनए में इसका 1000 गुना ज्यादा डेटा स्टोर किया जा सकता है। नमक के एक कण जितनी मात्रा में 10 एच.डी. फिल्मो को स्टोर किया जा सकता है और डीएनए के 9 लीटर घोल में पृथ्वी की सारी जानकारी स्टोर की जा सकती है। वेसे अगर देखा जाए तो डीएनए प्राकर्तिक रूप से एक स्टोरेज डिवाइस है जो जीवों की बायोलॉजिकल जानकारी को स्टोर करके रखता है। वैज्ञानिक अब इस प्राकर्तिक स्टोरेज डिवाइस में इलेक्ट्रॉनिक डेटा को भी स्टोर करने में सफल हुए है।
डीएनए में कैसे होता है डेटा स्टोर!
इलेक्ट्रोनिक डिवाइस में किसी भी डेटा को स्टोर करने के लिए हमारे द्वारा बनाया गया डेटा जीरो और वन के रूप में कन्वर्ट हो कर हार्डडिस्क और पेनड्राइव आदि में सेव होता है। किसी भी डेटा को स्टोर करने के लिए इन डिजिटली जीरो और वन का अहम योगदान होता है, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने डीएनए में डेटा को स्टोर करने का भी कुछ ऐसा ही तरीका निकाला है।
डीएनए में डेटा को स्टोर करने के लिए किसी भी डेटा के जीरो और वन को डीएनए के 4 मुख्य अणुओं एडीनाइन, थाइमिन, साइटोसिन, गुआनिन (क्रमशः ऐ,टी,सी,जी) में परिवर्तित किया जाएगा। जीरो और वन को ऐ,टी,सी,जी में परिवर्तित करने के बाद डेटा को लिखने के लिए डीएनए संस्लेषण का इस्तेमाल किया जाएगा। डेटा को एक्सेस करने के लिए डीएनए सेकुएंसअर टेक्नोलॉजी की जरुरत पड़ेगी जो कि विभिन्न डीएनए कोड को दुबारा से जीरो और वन में कन्वर्ट करेगा। एक बार डिजिटल जीरो और वन में कन्वर्ट हो जाने के बाद डेटा को इस्तेमाल किया जा सकेगा। वर्तमान में डीएनए सिक्वेंसिंग बहुत महंगी है लेकिन ही जल्दी ही यह टेक्नोलॉजी उपयोग करने के लिए सस्ती हो जाएगी।
भविष्य में जैविक और टेक्नोलॉजी को एक करने से विज्ञान को एक नयी प्रगति मिलेगी। डीएनए में स्टोर किया गया डेटा इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के मुकाबले कई हज़ारों वर्षों तक सुरक्षित रह सकता है। इसके अलावा कुछ जैविक सरंचनाएं ऐसी भी है जो किसी भी वातावरण को झेलने में सक्षम है इसलिए इलेक्ट्रॉनिक डेटा हर परिस्तिथि में सही सलामत रहेगा अगर वैज्ञानिक इसी दिशा में काम करते रहे तो कुछ वर्षों में यह टेक्नोलॉजी आम हो सकती है और डेटा को एक्सेस करने के और भी सरल उपाय वैज्ञानिक खोज लेंगे।