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LAC पर अमेरिकी रिपोर्ट से खुली चीन की पोल

Annual Report of the US Department of Defense on the LAC

चीन की फितरत हमेशा धोखा देने की ही रही है। दशकों पहले से भारत उसके इस चरित्र से परिचित हो चुका है। लेकिन अब चीन का ये खेल पूरी दुनिया के सामने आ चुका है। कल तक भारत चीन के अतिक्रमण और विस्तारवाद का चेहरा दुनिया को बता रहा था। अब अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट में भी ये सच सामने आया है। वैसे तो चीन कभी भी भरोसे के काबिल नहीं रहा है, वो हर मोर्चे पर साजिश करता रहा है, लेकिन भारत के खिलाफ चीन के विश्वासघात पर अब अमेरिकी रक्षा विभाग की रिपोर्ट ने भी मुहर लगा दी है। 59 साल पहले चीन ने दोस्ती के नाम पर दगा दिया था और अब एक बार फिर से अरुणाचल प्रदेश में चीन की चाल बेनकाब हो चुकी है। अमेरिकी संसद में पेश की गई अमेरिकी रक्षा विभाग की वार्षिक रिपोर्ट में धोखेबाज चीन की फितरत का पूरा खुलासा किया गया है।

अरुणाचल से लगे विवादित LAC में चीन का अवैध गाँव निर्माण

रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन ने तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच विवादित इलाके में 100 घरों का गांव बसा लिया है। साजिश को छुपाने के लिए चीन की सरकार के मुखपत्र में अपने दावों को जोर-शोर से उठाया गया और भारत के दावों को खारिज किया गया, इतना ही नहीं चीन की मीडिया ने एलएसी के पास भारत के बुनियादी ढांचे के निर्माण को भी प्रभावित करने की कोशिश की। इसके लिए भारत पर तनाव बढ़ाने का झूठा आरोप लगाया गया और एलएसी पर गतिरोध खत्म करने के लिए हो रही कूटनीतिक बातचीत के बावजूद चीन अपनी चालबाजी से बाज नहीं आ रहा है, यानी चीन ने अपने विस्तारवाद के एजेंडे को पूरा करने के लिए दो हथियार बना रखे हैं। एक ओर चीन की सेना विवादित इलाकों में घुसपैठ की कोशिश करती है तो दूसरी ओर चीन का सरकारी अखबार और टेलीविजन चीन के दुष्प्रचार को जोर-शोर से बढ़ावा देता है, ताकि चीन समेत पूरी दुनिया के लोगों में भ्रम फैलाया जा सके।

चीन की चालबाजी से मुकाबला करने के लिए हिंदुस्तान की भी तैयारी पूरी है। पिछले 59 सालों में भारत ने इस बात को अच्छी तरह समझ लिया है कि चीन के खिलाफ मजबूत मोर्चाबंदी और तैयारी बेहद जरूरी है। इसीलिए लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक हिंदुस्तान के जवान मोर्चों पर डटे हुए हैं तो वहीं दूसरे बुनियादी ढांचों को भी तेजी से मजबूत किया जा रहा है। अरुणाचल प्रदेश में चीन की साजिशों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पराक्रमी पिनाका तैनात किया जा चुका है, एल-70 एयर डिफेंस गन मुस्तैद है, चीन के किसी भी हमले को रोकने के लिए मजबूत मोर्चाबंदी की गई है। भारत ने अपनी पुख्ता तैयारी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

LAC पर चीन से निपटने के लिए मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा भारत

         50 के दशक में भारतीय सेना को एक फॉरवर्ड पालिसी दी गई। जिसके तहत दूरदराज के इलाकों में भारतीय चौकियां स्थापित होनी थीं, लेकिन वो चौकियां किसी भी हमले को झेलने के लिए पर्याप्त नहीं थीं। उनकी सप्लाई लाइन अच्छी नहीं थी और इसलिए जब चीनी सैनिकों की बाढ़ सामने आई तो फॉरवर्ड पॉलिसी के तहत बनाई गई ये चौकियां तिनके की तरह उड़ गईं, लेकिन आज यहां पर इंटीग्रेटेड डिफेंस फैसिलिटीज हैं, जहां पर खड़े होकर, जहां पर रहकर, दुश्मन के हर हमले का सामना किया जाता है।

एलएसी पर अरुणाचल प्रदेश में मौसम और भौगोलिक परिस्थितियां ऐसी रही हैं, जिसकी वजह से सैनिकों और सैन्य साजो सामान की आवाजाही एक बहुत बड़ी चुनौती रही है, लेकिन अब इस समस्या के निराकरण के लिए सड़क के साथ-साथ सुरंगों का भी निर्माण किया जा रहा है। अभी तक तवांग पहुंचने का केवल एक रास्ता था, लेकिन अब एक और रास्ता बनाया गया है, ताकि खराब मौसम की वजह से अगर एक रास्ता बंद हो जाए तो दूसरे रास्ते से सैनिक साजो सामान, रसद और सैनिक तेजी से तवांग और उसके आगे एलएसी तक पहुंचाए जा सकें।

इसके अलावा एक तीसरे रास्ते को भी बनाए जाने की योजना है, उसका निर्माण कार्य भी शुरू हो गया है। चीन के हर वार का पलटवार करने के लिए हिंदुस्तान भी तैयार है। जमीन से लेकर आसमान तक भारत अपनी किलेबंदी को मजबूत करता जा रहा है। यूं तो भारत की तैयारी पूरी है, लेकिन चीन पर नजर रखना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि घात करना चीन की आदत है। डोकलाम से लेकर गलवान तक भारत के शूरवीरों ने चीन को पटखनी दी, इसके बावजूद पैंगोंग में चीन ने साजिश रची और अब भी उसकी साजिशें जारी हैं।

चीन के परमाणु हथियारों पर अमेरिकी ख़ुफ़िया रिपोर्ट में कई खुलासे  

अपनी विस्तारवादी नीति को पूरा करने के लिए चीन किसी भी हद तक जा सकता है। चीन की ये साजिशें और आक्रामकता अब पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुकी हैं। पेंटागन की रिपोर्ट में तो यहां तक कहा गया है कि अगले 10 सालों में चीन के पास एक हजार से ज्यादा परमाणु हथियार हो सकते हैं और यकीनन अगर ऐसा हुआ तो ये खतरा सिर्फ अमेरिका के लिए नहीं होगा, बल्कि चीन पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन जाएगा। चीन आसमान से मौत बरसाने की तैयारी कर रहा है, जमीन से तबाही मचाने का प्लान तैयार कर रहा है और समंदर में परमाणु हथियारों का मंसूबा तैयार कर रहा है। चीन के ये इरादे कितने खौफनाक हैं, पेंटागन की ये रिपोर्ट इस बात का खुलासा कर रही है।

रिपोर्ट में चीन के परमाणु कार्यक्रम को लेकर जो दावे किए गए हैं, उसके अनुसार चीन की दुनिया में सिर्फ और सिर्फ तबाही मचाने की तैयारी है‌। पेंटागन की रिपोर्ट के मुताबिक चीन परमाणु न्यूक्लियर ट्रायड विकसित कर रहा है और यदि चीन इसमें कामयाब हो गया, तो जमीन से, हवा से और समंदर से दुनियाभर पर मौत बरसाने की ताकत रखेगा, क्योंकि तब चीन के पास जमीन से लांच होने वाली मिसाइलें, हवा से लांच होने वाली मिसाइलें और पनडुब्बियों से परमाणु हमले की ताकत होगी।

कुछ दिनों पहले ही सैटेलाइट तस्वीरों से ये भी खुलासा हुआ है कि चीन कम से कम तीन जगहों पर मिसाइल साइलो बना रहा है। अमेरिकी थिंक टैंक फेडरेशन ऑफ अमेरिकन साइंटिस्ट्स ने प्लैनेट लैब्स और मैक्सार टेक्नोलॉजीज द्वारा उपलब्ध कराई गई तस्वीरों के आधार पर दावा किया है कि चीन 300 नए मिसाइल साइलो बना रहा है।

        मिसाइल साइलो किसी भी देश का टॉप सीक्रेट होते हैं, जहां मिसाइलें छिपाकर रखी जाती हैं और जरूरत पड़ने पर वहां से आसानी से दागी भी जा सकती हैं। जाहिर है कि चीन पूरी तरह से युद्ध की तैयारी में जुटा है। ये बड़ी चिंता का विषय है, क्योंकि ये पहली बार है, जब चीन इतने बड़े पैमाने पर मिसाइल साइलो का निर्माण करने में जुटा है। जिस तरह चीन युद्ध के हथियारों को बढ़ाता जा रहा है और उन्हें साइलो में जमा करता जा रहा है, ये निश्चित ही दुनिया के लिए बहुत बड़ा खतरा है।

पेंटागन की रिपोर्ट के मुताबिक चीन के इरादे इतने खौफनाक हैं कि अगले 10 सालों में चीन एक हजार परमाणु हथियार तैयार कर सकता है। पिछले वर्ष पेंटागन की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन के पास 200 से भी कम परमाणु हथियार हैं, लेकिन अब ये आशंका जताई जा रही है कि अगले 6 सालों में ही इनकी संख्या 700 से अधिक हो सकती है। चीन जितनी तेजी से अपने परमाणु हथियार बना रहा है, उससे तो यही लगता है कि 2030 तक उसके पास 1000 परमाणु हथियार हो सकते हैं और 2050 तक या तो वो अमेरिका की बराबरी में आ जाएगा या फिर उससे  आगे निकल जाएगा, ये एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन सुपर पावर बनना चाहता है और इसके लिए वो वैश्विक शक्ति के तौर पर कोशिश में लगा है। हालांकि चीन ने अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के दावों को खारिज किया है, पर चीन पर भरोसा करना मुश्किल है, क्योंकि दुनिया अब ये बात अच्छी तरह जान चुकी है कि चीन कहता कुछ है और करता कुछ है। चीन का विस्तार वादी एजेंडा दुनिया के सामने है। लद्दाख से लेकर दक्षिण चीन सागर तक चीन कई देशों के लिए सिरदर्द बन चुका है और दुनिया पर अपनी धौंस जमाने के लिए वो सभी हदें पार कर रहा है। चीन ने पेंटागन की रिपोर्ट पर भले ही सख्त प्रतिक्रिया दी है लेकिन चीन इस असलियत से इनकार नहीं कर सकता कि वो भारी-भरकम और भारी संख्या में विध्वंसक हथियारों का अभी भी निर्माण कर रहा है।

         असल में चीन का विस्तारवादी एजेंडा दक्षिण चीन सागर में भी देखने को मिलता है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने तो अमेरिका को ताइवान का साथ देने पर युद्ध तक की चेतावनी दे दी थी। चीन की धमकी तब और अधिक खतरनाक लगने लगती है, जब वो हाइपरसोनिक मिसाइलों की टेस्टिंग कर रहा हो। चीन हर मोर्चे पर अमेरिका को चुनौती दे रहा है और इसके उदाहरण हैं, चीन का हाइपरसोनिक विस्तारवाद, अंतरिक्ष में चीन की हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट, न्यूक्लियर क्षमता वाली मिसाइल का परीक्षण, जमीन से लेकर आसमान तक और अब अंतरिक्ष में न्यूक्लियर वॉर की तैयारी और अब तो यह भी कहा जा रहा है कि चीन ने एक ऐसी मिसाइल का टेस्ट किया है, जिसने दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क अमेरिका को भी चौंका दिया है।

ब्रिटिश मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक चीन ने अपनी पहली हाइपरसोनिक मिसाइल का टेस्ट किया है। खास बात ये है कि इस मिसाइल का परीक्षण अंतरिक्ष में किया गया है। हाइपरसोनिक मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है। हालांकि दावा है कि ये मिसाइल अपने लक्ष्य के करीब पहुंचकर भी चूक गई। इसके बावजूद चीन की इस मिसाइल ने पूरे विश्व में खलबली मचा दी है, क्योंकि अभी दुनिया में किसी भी देश के पास अंतरिक्ष से मिसाइल दागने की ताकत और तकनीक नहीं है। ब्रिटिश मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक चीन की सेना ने अगस्त 2021 में लांग मार्च राकेट को अंतरिक्ष में भेजा था, जिसके साथ हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल यानी एचजीबी भी मौजूद था।

चीन की रक्षा वैज्ञानिक ने इस मिसाइल को अंतरिक्ष की निचली कक्षा में भेजा। वहां पहुंचने के बाद इसने धरती का पूरा चक्कर लगाया। इसके बाद ये मिसाइल बहुत तेज गति से अपने टारगेट की ओर बढ़ी, लेकिन लक्ष्य से 32 किलोमीटर दूर जाकर गिरी। परीक्षण में नाकाम होने के बावजूद इसने यह साबित कर दिया कि हाइपरसोनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी के मामले में चीन अमेरिका और रूस जैसे देशों को टक्कर देने के लिए पूरी तरह से तैयार है। फिलहाल दुनिया में जो हाइपरसोनिक हथियारों को विकसित कर रहे हैं, उनमें भारत, अमेरिका, रूस, चीन और उत्तर कोरिया शामिल हैं।

        हाइपरसोनिक मिसाइल की सबसे बड़ी खूबी इसकी रफ्तार है। ये बहुत तेजी से अपने लक्ष्य को भेदती है। इसकी न्यूनतम गति ध्वनि की गति से 5 गुना होती है। ध्वनि की गति करीब 1235 किलोमीटर प्रति घंटा मानी जाती है, यानी हाइपरसोनिक मिसाइल की गति 6 हजार किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक होती है। हाइपरसोनिक मिसाइल क्रूज और बैलिस्टिक दोनों तरह की मिसाइलों की खूबी से लैस होती हैं।

बैलिस्टिक मिसाइलों की तकनीक ऐसी होती है कि वो आसमान से ज्यादा ऊंचाई तक जाने के बाद लक्ष्य की ओर बढ़ती हैं, लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइल कम ऊंचाई को छू कर तेज रफ्तार से टारगेट को हिट करती हैं। सबसे खास बात ये है कि इसका पता लगाना आसान नहीं होता है, इसलिए ये दुश्मन के रडार में आए बिना लक्ष्य तक पहुंच जाती हैं।

पेंटागन की रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि साल 2020 में चीन ने 250 से ज्यादा मिसाइलों को लांच किया है, जो दुनिया के सभी देशों को मिला देने से भी कहीं ज्यादा है। खासकर साउथ चाइना सी में चीन ने सबसे ज्यादा मिसाइल परीक्षण किए हैं। पिछले एक साल में चीन ने सतह पर मार करने वाले लड़ाकू जहाजों की संख्या 15 से बढ़ाकर 145 कर ली है और 2030 तक चीन की सेना के पास चार सौ साठ प्रमुख जहाज हो सकते हैं। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि चीन के पास समुद्र के अंदर परमाणु हथियारों को रोकने की भी क्षमता आ गई है।

भारत-चीन के संबंधों में बाधा बन रहे चीन के विवादित हथकंडे

दरअसल चीन ने ये गांव उस इलाके पर बनाए हैं, जिसे चीनी सेना यानी पीएलए ने 1959 में भारत की असम राइफल की चौकी पर कब्जा कर हथिया लिया था। अरुणाचल प्रदेश में इसे लोंगजू घटना के नाम से जाना जाता है। चीन अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में अपना दावा करता है और जब भारत वहां अपना निर्माण कार्य करता है तो वो उसका विरोध करता है, लेकिन चीन खुद वहां अपने अवैध निर्माण का विस्तार करता जा रहा है, जिसको लेकर भारत और चीन के बीच अक्सर तल्ख़ियां होती रहती हैं।

यही कारण है कि एलएसी पर तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा। दोनों देशों की सेनाओं के बीच पिछले साल 5 मई से जो विवाद शुरू हुआ था, वो अब तक थमा नहीं है। हालांकि दोनों देशों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। कई इलाकों से पीछे हटने की सहमति भी बनी है, लेकिन अभी भी एलएसी पर दोनों देशों के हजारों सैनिक तैनात किए गए हैं।

लेखिका
रंजना मिश्रा
कानपुर, उत्तर प्रदेश

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