आज आर्य समाज करोल बाग में श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव पर महायज्ञ का आयोजन किया गया l वैदिक मंत्रों के साथ आचार्य जय प्रकाश शास्त्री ने बहुत सुन्दर तरीके से यज्ञ संपन्न करवाया l
मुख्य वक्ता आर्य विद्वान रवि देव ने योगेश्वर श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व के अनेक पहलुओं पर चर्चा करते हुए बताया कि उनका योगी स्वरूप और अधर्म का नाश करने वाला रूप विशेष महत्व रखता हैं। श्रीकृष्ण न केवल धर्म की स्थापना करने वाले थे, बल्कि उन्होंने जीवन के गूढ़ सिद्धांतों को भी सरल रूप में प्रस्तुत किया, जिनमें योग का विशेष स्थान है।
श्रीकृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है, जिसका अर्थ है योग का स्वामी। उन्होंने ‘गीता’ में योग के विभिन्न प्रकारों का वर्णन किया और योग को जीवन के हर क्षेत्र में आवश्यक बताया। योग का अर्थ केवल आसन और प्राणायाम नहीं, बल्कि मन, बुद्धि, और आत्मा के संतुलन से है। श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के माध्यम से कर्मयोग, भक्तियोग, और ज्ञानयोग का महत्व समझाया। उनका योगी स्वरूप इस बात पर आधारित था कि व्यक्ति को निष्काम कर्म करना चाहिए, अर्थात् फल की चिंता किए बिना कर्म में लिप्त होना चाहिए।
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा, “योग: कर्मसु कौशलम्” जिसका अर्थ है कि योग का असली अर्थ है कार्य में दक्षता। उन्होंने बताया कि सही मार्ग पर चलकर, मन को शांत रखकर, और जीवन में समरसता बनाए रखने से ही व्यक्ति सच्चा योगी बन सकता है। श्रीकृष्ण का योगी रूप हमें यह सिखाता है कि जीवन में कठिनाइयों का सामना करते हुए भी हम कैसे अपने मानसिक संतुलन को बनाए रखें और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।
श्रीकृष्ण का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू उनका अधर्म का नाश करने वाला स्वरूप है। बचपन ही श्री कृष्ण अन्याय के विरुद्ध लड़ते रहे और विपत्तियो का निराकरण करने में अग्रसर रहे l उन्होंने अपने जीवन के हर चरण में अधर्म का विरोध किया और धर्म की स्थापना के लिए आवश्यक कदम उठाए। चाहे वह कंस का वध हो, या महाभारत के युद्ध में कौरवों के अन्याय का नाश करना, श्रीकृष्ण ने हर बार अधर्म के खिलाफ खड़े होकर सत्य और न्याय की रक्षा की।
महाभारत में, श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धर्म युद्ध के लिए प्रेरित किया और यह सिखाया कि धर्म की रक्षा के लिए अधर्म का नाश करना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि धर्म का पालन करना केवल एक कर्तव्य नहीं, बल्कि यह व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य होना चाहिए। श्रीकृष्ण के इस स्वरूप से हमें यह सीख मिलती है कि अन्याय के खिलाफ खड़ा होना ही सच्चा धर्म है, और इसके लिए आवश्यक कदम उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
आर्य समाज के प्रधान कीर्ति शर्मा ने सभी अतिथियों को धन्यवाद प्रस्तुत करते हुए कहा योगेश्वर श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व संपूर्ण मानवता के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनका योगी स्वरूप हमें जीवन में मानसिक संतुलन बनाए रखने का पाठ पढ़ाता है, जबकि उनका अधर्म का नाश करने वाला स्वरूप हमें अन्याय के खिलाफ खड़े होने की प्रेरणा देता है। श्रीकृष्ण के ये दोनों पहलू हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में सही मार्ग पर चलकर, न्याय की रक्षा करते हुए, हम अपने कर्तव्यों का सही प्रकार से निर्वहन कर सकते हैं।