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“साज़िश – आधी आबादी के ख़िलाफ़”

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दुनिया की आधी आबादी हर छेत्र में पुरुषों की बराबरी करने और बेहतर करने के लिए मेहनत कर रही हैं।महिलायें शिक्षा,चिकित्सा,व्यापार, विज्ञान,राजनीति, समाज सेवा, खेल और हर उस छेत्र में पुरुषों को चुनौती दे रही हैं जहाँ कभी पुरुषों का एकाधिकार था।आज महिलायें चाँद पर पहुँच रही हैं, हवाई जहाज़ उड़ा रही हैं और एवरेस्ट पर पहुँच रही हैं।दुनियाँ के कई देशों में महिलायें महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभा रहीं है और कई देशों की राष्ट्राध्यक्ष भी हैं।

आज महिलायें पितृसत्ता समाज की हर दक़ियानूसी सोच से आगे निकल कर तरक़्क़ी के रास्ते बना रहीं हैं। महिलाओं की तरक़्क़ी देख कर पुरुष प्रधान समाज का एक ख़ास वर्ग जो महिलाओं को सिर्फ़ भोग की वस्तु और बच्चा पैदा करने की मशीन समझता है बेचैन हो रहा है।यह ख़ास वर्ग केवल एक धर्म,सम्प्रदाय, जाति में नहीं बल्कि हर जगह फैला हुआ है ।यह ख़ास वर्ग अपने अपने समाज धर्म की ठीकेदारी करता है और अपने आपको सबसे ऊपर मानता है।

यह ख़ास पुरुष प्रधान वर्ग कभी  अफगानिस्तान में महिलाओं के पहनावों और काम करने की आज़ादी पर प्रतिबंध लगाता हैं।अफगानिस्तान एक अमन पसंद तरक़्क़ी के रास्ते पर चलने वाला आधुनिक विचारधारा वाला देश था।वहाँ महिलाओं को अपने पसन्द  से जीवन बेहतर बनाने और बराबरी का अधिकार था।आज अफगानिस्तान में महिलायें क्या खाएँगी,क्या पहनेगी और क्या काम करेंगी ये पुरुष वर्ग निर्धारित करेगा।

दुनिया में जब कहीं भी युद्ध छिड़ता है तब इसका सबसे बड़ा ख़ामियाज़ा औरतों को भुगतना पड़ता है।इतिहास को भी अगर खंगालेंगे तो मिलेगा की युद्ध में विजेता पक्ष हारे हुए पक्ष की महिलाओं को अपनी पूँजी समझकर लूटता था।युद्ध में औरतों के साथ अन्याय और उन पर जुल्म ये पुरुष प्रधान समाज की हक़ीक़त है। दुनियाँ के जिस कोने में भी युद्ध होता है वहाँ औरतों पर सबसे ज़्यादा अत्याचार होता है।

इतिहास गवाह है युद्ध कभी भी दो महिलाओं की महत्वकांक्षा के कारण नहीं हुआ है। महिलायें हमेशा से अमन पसंद और शान्तिप्रिय होती हैं।माँ,बहन,पत्नी, बेटी या जिस रूप में हो ममता और प्रेम का सागर होती हैं।माँ का रोल समाज में सबसे ऊपर होता है और ममता की देवी मानी जाती है ।

आज महिलाएँ अपना जीवन बेहतर बनाने के लिए दिन रात मेहनत कर रही हैं और कई क्षेत्रों में पुरुषों से आगे निकल गई हैं।शायद पुरुष प्रधान समाज महिलाओं की तरक़्क़ी को पचा नहीं पा रहा है इसलिए आधी आबादी के ख़िलाफ़ बहुत बड़ी साज़िश रच रहा है।अभी कुछ रोज़ पहले हिंदुस्तान के सबसे बड़े हिन्दी दैनिक अख़बार में एक विद्वान पुरुष का बयान छपा था जिसका ज़िक्र मैं यहाँ करना चाहूँगा। “ उनके मुताबिक़ जो हिजाब नहीं पहनेगा, वह नरक का हक़दार होगा”।मेरे हिसाब से हिजाब के पक्ष में ऐसा तर्क आधी आबादी के ख़िलाफ़ गहरी साज़िश का संकेत है।स्वर्ग और नरक के ठीकेदार किसी एक धर्म और संप्रदाय में ना होकर हर जगह फैले हैं।

समाज में हज़ारों कुरीतियाँ थी जैसे पर्दा प्रथा, सती प्रथा,बाल विवाह और ऐसे बहुत सारे नियम जो सिर्फ़ महिलाओं पर लागू थे।आज सैकड़ों सालों की लड़ाई के बाद किसी तरह महिलायें इस पुरुष प्रधान समाज के बनाए हुए नियम के चंगुल से निकलने में थोड़ी बहुत कामयाब हो रही थी।महिलाओं को ऐसी साज़िश से बच कर रहना ज़रूरी है वर्ना उनका सैकड़ों सालों का संघर्ष बेकार हो जाएगा।दुनियाँ में हर मुद्दे पर अपनी आवाज़ उठाने वाले संगठन जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ,नाटो और ऐसे सभी संगठन महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रही साज़िश पर चुप्पी साधे बैठे हैं।

यह पुरुष प्रधान समाज सारे नियम क़ानून सिर्फ़ महिलाओं के लिए बनाता है।खुद चाहे कुछ भी पहने, नंगा घूमे,आधा पजामा पहने, बेढंगे पहनावे पहने या बहुरूपिया बन कर घूमे हर रूप में सम्मानित है।किसी तरह की कोई पाबंदी नहीं स्वीकार करता है और हर धर्म में पुरुषों के लिए कोई नियम नहीं है।पुरुषों के लिए स्वर्ग में स्थाई तौर पर सीटें आरक्षित हैं।वो जब मासूम बच्चों के हाथ में बन्दूक थमाता है और उनको मानवता का दुश्मन बनाता है तब भी यही तर्क देता है की ये धर्म का काम है।उन मानवता के दुश्मनों के लिए स्वर्ग में सीट आरक्षित करने के साथ साथ अप्सराओं और हूरों की भी व्यवस्था कर देता है।

इस साज़िश के ख़िलाफ़ महिलाओं को बहुत सतर्क रहना चाहिए।वैसे भी महिलाओं का सबसे बड़ा धर्म महिला होना ही होता है। उनको समाज में बराबरी मिले, समान अवसर मिले और सम्मान मिले यही उनके लिए सबसे ज़रूरी है।

लेखक:
रवि शंकर राय
लेखक, प्रख्यात उद्यमी होने के साथ ही सामाजिक कार्यों और लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय हैं स्वतंत्र टिप्पणीकार के रूप में राजनीति और समाज से जुड़े विभिन्न सामाजिक विषयों पर लेखन का कार्य करते हैं

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