इस वर्ष फिर से दशहरा आ गया। अब फिर एक नया रावण तैयार होगा। गली-गली, मोहल्ले-मोहल्ले में रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के बड़े-बड़े पुतले जलाए जाएंगे। रावण के 10 सर बनाए जाएंगे। इन पुतलों के हाथों में बड़ी-बड़ी तलवारें पकड़ाई जाएंगी और फिर कोई व्यक्ति श्रीराम का वेष धरकर धनुष में बाण चढ़ाकर इन पुतलों में आग लगाएगा। ये पुतले जलकर भस्म हो जाएंगे और हम सभी तालियां बजाते हुए, खुश होते हुए, अपने-अपने घरों को वापस लौट आएंगे। हमें लगेगा हमने बुराई के प्रतीक रावण को जलाकर बुराई का अंत कर दिया। अब हमारे संसार में सुख-शांति, अमन-चैन व्याप्त हो गया और अब हम सभी निश्चिंत और निर्भीक होकर अपना जीवन यापन कर पाएंगे। पर क्या यह वास्तविकता है? क्या सचमुच हम रावण को जला पाए हैं? या महज एक ढोंग, एक नाटक करते आए हैं, इतने वर्षों से।
रावण तो हम सबके भीतर बसता है और हम अपने भीतर देखते ही नहीं। हम तो बस बाहर देखने के आदी हैं। हमें दूसरों की बुराइयां दिखती हैं, अपनी नहीं, तो रावण कैसे समाप्त हो पाएगा? हम सबको अपने भीतर के रावण को मारना होगा, अपने भीतर के राम को जगाना होगा। जब तक हमारे भीतर के राम नहीं जागेंगे, तब तक हमारे भीतर का रावण मरेगा नहीं। पर क्या अपने भीतर के राम को जगाना इतना आसान है? नहीं है, पर हम प्रयत्न तो कर सकते हैं।
हम अपनी बुराइयों को पूरी तरह समाप्त ना कर पाएं, तो भी धीरे-धीरे कम तो कर ही सकते हैं। इसके लिए भी हमें ये लगना तो चाहिए कि हममें कोई बुराई है,पर हम तो ये मानने को तैयार ही नहीं होते कि हमने भी कोई बुराई हो सकती है। हर व्यक्ति अपने आपको बिल्कुल सही और संपूर्ण समझता है, वो अपनी कमियां दूर करने का प्रयास ही नहीं करता।
नवरात्रों के 9 दिन का शुद्धिकरण है, बुराई पर विजय की तैयारी
दशहरे के पहले 9 दिनों तक नवरात्रि में नवदुर्गा स्वरूप की आराधना की जाती है क्यों? क्या कभी सोचा है हमने? वास्तव में ये 9 दिन और 9 रात हमें अपने शुद्धिकरण की ओर ले जाते हैं। बिना शुद्धिकरण किए विजय प्राप्त करना असंभव है, या हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि, जब तक हम स्वयं पर विजय प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक बाहरी विजय हमारे लिए कठिन ही नहीं नामुमकिन है।
बाहरी विजय प्राप्त करने के लिए पहले हमें स्वयं पर विजय प्राप्त करनी होगी। प्रथम दिन से लेकर 9वें दिन तक धीरे-धीरे करके हमारा शुद्धिकरण होता जाता है और हम विजयदशमी के दिन विजय प्राप्त करने के लिए तैयार हो जाते हैं, पर यह तभी हो पाएगा जब वास्तव में हम ये आराधना पूरी श्रद्धा, तन्मयता और संपूर्ण चेतना के साथ करें तो निश्चित ही दसवें दिन हमें विजयश्री प्राप्त हो जाएगी, जैसे भगवान श्रीराम को हो गई थी।
किंतु हमने तो इन महान सत्य से परिपूर्ण, रहस्यमयी, ऊर्जादायक आराधनाओं को महज परंपराएं बनाकर रख दिया है। ना हम इनके वास्तविक अर्थ को समझते हैं और ना ही इनसे प्राप्त होने वाली वास्तविक ऊर्जा को ग्रहण कर पाते हैं और फिर कहते हैं कि इन सबसे कुछ नहीं होता। आप श्री राम जैसे साधक तो बनिए, दसवें दिन कितनी भी बड़ी चुनौती क्यों ना आपके सामने हो, आपको विजय अवश्य मिलेगी।
मन के रावण को मारना सबसे बड़ी चुनौती
आज घर-घर में रावण हैं, इन्हें मारने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा की आवश्यकता है, किंतु हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यह भी है कि इन्हें हथियारों से नहीं मारा जा सकता, बल्कि हमें इनके मन को परिवर्तित करना होगा। इन्हें रावण से राम बनने के लिए प्रेरित करना होगा तभी हमारा परिवार, समाज और विश्व सुरक्षित रह पाएगा। आज रावण के 10 सिरों की भांति कितनी ही समस्याएं और संकट हमारे सामने चुनौती बनकर खड़े हैं।
आतंकवाद, नक्सलवाद, महंगाई, गरीबी, भ्रष्टाचार, देशद्रोह, नैतिक पतन, महिलाओं और बच्चों के प्रति बढ़ते हुए अपराध आदि अनेकों ऐसी समस्याएं हैं, जो किसी भी रावण से कम नहीं हैं, इनको समाप्त करना अब लगभग असंभव सा लगता है। किंतु यदि भगवान राम की तरह दृढ़ संकल्प ले लिया जाए तो इन्हें जड़ से मिटाया जा सकता है।
श्रीराम ने रावण की नाभि में तीर मारा था, वैसे ही हमें इन सभी समस्याओं की जड़ में आघात करना होगा, तभी इन्हें समाप्त किया जा सकता है। जिस तरह एक आतंकवादी मास्टरमाइंड को समाप्त किए बिना यदि केवल उसके जिहादी बाशिंदों को ही मारा जाता रहा तो वह मास्टरमाइंड न जाने और कितने जिहादी खड़े कर देगा। इसलिए ऐसे मास्टरमाइंड को ही समाप्त करना सबसे अधिक जरूरी है, जो लोगों का ब्रेनवाश कर उनमें आतंकवाद का जहर भर रहा है। इसी तरह हर बुराई की जड़ में जाना होगा और उसके कारण को ढूंढ कर उसे समाप्त करना होगा।
प्रभु श्री राम की विचारधारा है, सभी समस्याओं का हल
सत्य तो ये है कि दुनिया में ऐसी कई विचारधाराएं प्रचलित हैं जो लोगों को बुराई की ओर ले जाती हैं और समस्याओं की जड़ हैं। जब तक इन विचारधाराओं को समाप्त नहीं किया जाएगा तब तक समस्याएं भी समाप्त नहीं होगी चाहे कितना भी प्रयास किया जाए। इसलिए हमें ऐसी गलत विचारधाराओं पर ही रोक लगानी चाहिए जो लोगों को दिग्भ्रमित करके गलत रास्ते पर ले जाती हैं।
इन विचारधाराओं का विरोध करने के रास्ते में बहुत सी बाधाएं हमारे सामने उपस्थित होंगी पर फिर भी हमें ना डरना है ना थमना है, केवल लोगों को सत्य से परिचित कराना है कि जो गलत विचारधाराओं को मान रहे हैं उनका हश्र क्या होगा? वे वास्तव में किस रास्ते पर जा रहे हैं? ये जागरूकता हमें अपने समाज में और देश दुनिया में फैलानी ही होगी तभी आतंकवाद जैसी बड़ी समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है। अन्यथा यूं ही हर रोज हमारे वीर सैनिकों के शहीद होने की खबरें हमें आहत करती रहेंगी और हम हाथ मल कर आंसू बहा कर रह जाएंगे, इसके अलावा कुछ नहीं कर पाएंगे।
हम सभी को आज श्रीराम और उनकी वानर सेना की तरह कमर कसनी होगी। हमें किसी धर्म, किसी मजहब से नहीं लड़ना है बल्कि अन्याय, अत्याचार और गलत का विरोध करना है। हमें किसी जाति या संप्रदाय में नहीं बंटना है बल्कि एक मानवतावादी दृष्टिकोण लेकर चलना है। ये सारा विश्व हम सबका है, प्रकृति की प्रत्येक वस्तु सबकी है, किंतु इसके साथ खिलवाड़ करने का किसी को कोई अधिकार नहीं है।
हम सब ईश्वर के हैं, प्रकृति के हैं, किंतु जो अपने मानवतावादी धर्म को भूल गए हैं, उन्हें इसकी शिक्षा देने की फिर से आवश्यकता है, तभी हम विजयदशमी में असली रावण को मारकर विश्व को मानवता की विजय दिला पाएंगे तथा इस विश्व को सुखी और सुरक्षित रख पाएंगे और तभी सही मायने में विजयदशमी का असली पर्व होगा।
लेखिका :
रंजना मिश्रा,
कानपुर, उत्तर प्रदेश