प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज शंघाई सहयोग संगठन में वर्चुअल माध्यम से हिस्सा लिया। इस सम्मलेन का आयोजान दुबांशे में हुआ, जिसकी अध्यक्षता इस बार कजाकिस्तान कर रहा है। संगठन का उद्देश्य मध्य एशिया क्षेत्र के राष्ट्रों के बीच आपसी सहयोग बढ़ाना है। सम्मेलन की शुरुआत से पहले ही पीएम नरेंद्र मोदी के संबोधन की भारत में चर्चा थी क्योंकि अफगानिस्तान के वर्तमान हालात इसका कारण है। एससीओ समिट में अपना संबोधन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य एशिया क्षेत्र से जुड़ी चुनौतियों का जिक्र किया और उन पर एक्शन प्लान बनाने का सुझाव दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संगठन के नए सदस्य ईरान का भी स्वागत किया और यह भी कहा कि ईरान के एससीओ के साथ जुड़ने से संगठन को और मजबूती मिलेगी। इसके अलावा उन्होंने कहा कि मध्य एशिया क्षेत्र में शांति सुरक्षा और आपसी विशवास कायम करना एक बहुत बड़ी चुनौती है और इन चुनौतियां का कारण बढ़ता कट्टरवाद और चरमपंथता है। इसके अलावा अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति ने क्षेत्र के सामने नई चुनौती उत्पन की है जिसके कारण शंघाई सहयोग संगठन की भूमिका और बढ़ गई है।
मध्य एशिया की चुनौतियों से निपटना ज़रूरी
क्षेत्र से जुडी इन चुनौतियों से निपटने के लिए एससीओ में शामिल सभी देशों को आपसी संबंध बेहतर बनाने पर जोर देना चाहिए, और इसके लिए सभी मध्य एशियाई देशों को पहल करनी होगी। मिडिल एशिया की प्राचीन विरासत का जिक्र करते हुए नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह क्षेत्र पहले से ही प्रगतिशील संस्कृति मूल्यों का गढ़ रहा है, सूफीवाद इस पूरे क्षेत्र से विश्व में फैला है और इस क्षेत्र की अपनी एक सांस्कृतिक विरासत है। लेकिन वर्तमान में इस क्षेत्र का आपसी जुड़ाव मजबूत नही है। मध्य एशिया में इस्लाम से जुड़ी परंपराएं और संस्थाएं हैं जिनके बीच में एक अच्छे संबंधों का मजबूत नेटवर्क विकसित करना चाहिए और इस काम के लिए सभी देशों के सहयोग की आवश्यकता है।
विकासशील और विकसित देशों की प्रतिस्पर्धा लक्ष्य
आज जब मध्य एशिया के विकासशील देश विश्व के विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं तो इस दिशा में मध्य एशिया क्षेत्र के सभी देशों को उभरती हुई तकनीक का स्टेकहोल्डर बनना पड़ेगा, युवाओं को विज्ञान और तर्कसंगत सोच की ओर प्रोत्साहित करना होगा, हमारे क्षेत्र में मौजूद आपसी स्टार्टअप्स को एक दूसरे से जोड़ना होगा और इनोवेटिव स्प्रिट को भी बढ़ावा देना होगा। इस तरह हम सभी देश आपस में अपनी कनेक्टिविटी बढ़ा सकते हैं। भारत ने पहले ही चाहाबार पोर्ट पर निवेश करके कनेक्टिविटी स्थापित करने के लिए बेहतर प्रयास किए हैं। इसलिए किसी भी देश की तरफ से एक तरफा अपने हित सोचने से ज्यादा जरूरी है आपसी विश्वास सुनिश्चित करना और ऐसा करने के लिए कंसलटेटिव, पारदर्शी और पार्टिसिपेटरी अप्रोच अपनानी होगी जिसके बाद ही सभी देशों के बीच में दूरियां घट सकती है. मध्य एशिया में कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भारत हर तरक्की संभव कोशिशों के लिए तैयार है।