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आध्यात्मिकता समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग-मुर्मु

आबू रोड़ : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आध्यात्मिकता को समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग बताते हुए कहा है कि आज विश्व के अनेक हिस्सों में व्याप्त अशांति के वातावरण और मानवीय मूल्यों का हो रहे ह्रास के समय में आध्यात्मिकता एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।
श्रीमती मुर्मु शुक्रवार को सिरोही जिले के आबूरोड़ में आध्यात्मिकता से स्वच्छ एवं स्वस्थ समाज’ विषय पर ब्रह्माकुमारी संस्थान में आयोजित वैश्विक शिखर सम्मेलन में बोल रही थीं। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता न केवल व्यक्तिगत विकास का साधन है बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग भी है। जब हम अपने भीतर की स्वच्छता को पहचान पाने में सक्षम होंगे, तभी हम एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना में अपना योगदान दे सकेंगे।
उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता का अर्थ है, अपने भीतर की शक्ति को पहचान कर अपने आचरण और विचारों में शुद्धता लाना है। शांति केवल बाहर ही नहीं बल्कि हमारे मन की गहराई में स्थित होती है। जब हम शांत होते हैं, तभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का भाव रख सकते हैं। उन्होंने कहा कि अध्यात्म से जुड़ाव हमें, समाज और विश्व को देखने का एक अलग सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। यह दृष्टिकोण हममें सभी प्राणियों के प्रति दया और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता का भाव उत्पन्न करता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि आज जब हम ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण प्रदूषण के विपरीत प्रभावों से जूझ रहे हैं तब इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सभी संभव प्रयास करने चाहिए। मनुष्य को यह समझना चाहिए कि वह इस धरती का स्वामी नहीं है बल्कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि आज विश्व के अनेक हिस्सों में अशांति का वातावरण व्याप्त है। मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। ऐसे समय में शांति और एकता की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। शांति केवल बाहर ही नहीं बल्कि हमारे मन की गहराई में स्थित होती है। जब हम शांत होते हैं, तभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का भाव रख सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ब्रह्माकुमारी जैसे संस्थानों से यह अपेक्षा की जाती है कि आध्यात्मिकता के बल पर लोगों को स्वच्छ और स्वस्थ जीवन जीने के लिए जागरूक करते रहेंगे। आध्यात्मिकता हमारे निजी जीवन को ही नहीं, बल्कि समाज और धरती से जुड़े अनेक मुद्दों जैसे सतत विकास एवं पर्यावरण संरक्षण और सोशियल जस्टिस को भी शक्ति प्रदान करती है।
आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार करके केवल भौतिक प्रगति का मार्ग अपनाना अंततः विनाशकारी ही सिद्ध होता है। श्रीमती मुर्मु ने कहा कि स्वच्छ मानसिकता के आधार पर ही समग्र स्वास्थ्य संभव होता है। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना या सांसारिक कार्यों का त्याग कर देना नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ है, अपने भीतर की शक्ति को पहचान कर अपने आचरण और विचारों में शुद्धता लाना हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छता सिर्फ बाहरी नहीं हमारे विचारों में भी होनी चाहिए। सामाजिक, मानसिक, भावनात्मकता आपस में जुड़े हुए हैं। अगर आत्मा स्वच्छ और स्वस्थ हो तो सब कुछ सही हो जाता है।
राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागडे ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।

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