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खदानों पर लगाई गई रॉयल्टी की वापसी विवाद पर सुप्रीम कोर्ट आदेश सुरक्षित

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 1989 से खदानों और खनिज युक्त भूमि पर लगाई गई रॉयल्टी राज्यों को वापस किए जाने के सवाल पर बुधवार को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा तथा न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला किया।
केंद्र सरकार ने खनिज संपन्न राज्यों की उस याचिका का विरोध किया, जिसमें रॉयल्टी की वापसी की मांग की गई है। सरकार ने दलील दी कि पूर्वव्यापी प्रभाव से कथित बकाया राशि का भुगतान करने के लिए कहने वाले किसी भी आदेश का “बहुध्रुवीय” प्रभाव होगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए नौ न्यायाधीशों की इस पीठ के समक्ष यह भी दलील दी कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) शासित मध्य प्रदेश और राजस्थान चाहते हैं कि 25 जुलाई के फैसले को भविष्य में लागू किया जाए।
उन्होंने यह भी कहा कि 25 जुलाई 2024 (शीर्ष अदालत के) के फैसले को पूर्वव्यापी बनाने से आम आदमी पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि कंपनियां वित्तीय बोझ उन पर डाल देंगी।
श्री मेहता ने तर्क दिया कि शीर्ष अदालत के 25 जुलाई का फैसला पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू करने से पीएसयू सहित कई उद्योगों पर प्रभाव पड़ेगा और इससे नए मुकदमों की बाढ़ आ जाएगी।
उन्होंने दोनों पक्षों के लिए न्याय किए जाने पर जोर देते हुए कहा कि अदालत यह कहने पर विचार कर सकती है कि न तो राज्य सरकार पूर्वव्यापी प्रभाव से कोई शुल्क मांग सकती है और न ही भुगतान करने वाले निजी पक्ष या पीएसयू पैसे की वापसी की मांग करेंगे।
पीठ के समक्ष झारखंड खनिज विकास प्राधिकरण की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने फैसले को पूर्वव्यापी बनाने के पक्ष में दलीलें दीं। उन्होंने सुझाव दिया कि यदि फैसला पूर्वव्यापी रूप से लागू होता है तो पिछले बकाया का भुगतान किश्तों में किया जा सकता है।
उत्तर प्रदेश की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने राज्य कर को बरकरार रखा था और अब शीर्ष न्यायालय ने भी इसे मंजूरी दे दी है।उन्होंने कहा कि दो कंपनियों को छोड़कर सभी कंपनियां राज्य सरकार का कर चुका रही हैं।
महानदी कोलफील्ड्स का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि पिछले लेवी की मांग कई कंपनियों की कुल संपत्ति से अधिक होगी और फैसले को पूर्वव्यापी रूप से लागू करने से कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी।
खनन गतिविधियों में शामिल कई कंपनियों ने खनिज संपन्न राज्यों को रॉयल्टी वापस करने के केंद्र के रुख का समर्थन किया।
भाजपा शासित ओडिशा सरकार ने पीठ द्वारा पूछेजाने के बावजूद कोई स्पष्ट रुख नहीं अपनाया और राज्य की ओर से पेश वकील ने केवल इतना कहा कि वे नहीं चाहते कि राजकोष पर बोझ पड़े।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने 25 जुलाई, 2024 को आठ-एक (8: 1) के बहुमत से फैसला सुनाया था कि राज्यों के पास खनिज युक्त भूमि पर कर लगाने की विधायी शक्ति है। पीठ ने राज्यों को कर लगाने के अधिकार को बरकरार रखते हुए कहा था कि खनन पट्टाधारकों द्वारा केंद्र सरकार को दी जाने वाली रॉयल्टी कोई कर नहीं है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने हालांकि,बहुमत के दृष्टिकोण से असहमति जताते हुए कहा था कि रॉयल्टी कर की तरह है।

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