जलवायु संकट पर ग्लास्को में हो रही COP 26 समिट में अमेरिका और चीन पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दे पर आपसी सहयोग के लिए सहमत हो गए है। दोनों ही देश वैश्विक मंच पर एक दुसरे के कड़े प्रतिद्वंदी है लेकिन जलवायु समिट में इन देशों के प्रतिनिधियों ने एक संयुक्त घोषणा में इस बात का ऐलान करते हुए कहा कि आने वाले कुछ सालों में पर्यावरण को सुरक्षित करने की दिशा में आपसी सहयोग से काम करेंगे।
COP26 का मंच जलवायु सुरक्षा के लिए आखिरी मौका
COP26 समिट में 200 से ज्यादा देश इस बात पर सहमत हुए है धरती का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर से ज्यादा ना हो। अमेरिका और चीन सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाले बड़े देश है। पर्यावरण सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों देशों की बीच की दूरी इस लक्ष्य को और मुश्किल बनाती है इसलिए दोनों ही देश अब इस दूरी को समाप्त करते हुए पर्यावरण के मुद्दें पर सकारात्मक रूप से आपसी सहयोग के लिए सहमत हो गए है।
वैज्ञानिकों ने पर्यावरण को लेकर पहले ही गंभीर चेतावनी दी है जिसमे धरती के बढ़ते तापमान से वैश्विक जल स्तर बढ़ने, ग्लेशियरों के पिघलने और कई तरह की अन्य आपदाओं जैसी समस्याएँ पहले से ज्यादा बढ़ी है। इसलिए वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य हासिल करना मानव जाति के लिए बहुत जरूरी है। इसी लक्ष्य की प्राप्ति से ही पर्यावरण पर पड़ने वाले घातक असर को कम किया जा सकता है।
जलवायु संकट पर अमेरिका-चीन के मध्य हुए कई समझौते
अमेरिका और चीन ने पर्यावरण सुरक्षा के मुद्दें पर आगे और बातचीत करने का फैसला किया है चीन की शीर्ष जलवायु वार्ताकार शी ज़ेनहुआ ने द्विपक्षीय वार्तालाप को और आगे ले जाने की बात की। आने वाले कुछ हफ़्तों में अमेरिका और चीन के राष्ट्र अध्यक्षों की मुलाक़ात हो सकती है।अमेरिका का रूख रखते हुए अमेरिकी प्रतिनिधि जॉन केरी ने कहा कि चीन के साथ उनके द्विपक्षीय संबंधों में कई अन्य तनाव है परन्तु जलवायु के मुद्दे पर सहयोग देना वैश्विक पर्यावरण संतुलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए बेहद जरुरी है।
अमेरिका और चीन जलवायु संकट से निपटने के लिए कुछ अहम मुद्दों पर एक साथ आये है जिसमे दोनों देशों ने मीथेन गैस उत्सर्जन को कम करने, उर्जा के स्वच्छ स्त्रोतों को अपनाने और कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि कुछ दिन पहले चीन उस समझौते से बायकाट कर गया था जिसमे 100 देशों के द्वारा मीथेन उत्सर्जन को सीमित करने वाले समझौते पर हस्ताक्षर किये जा रहे थे। इस समझौते से पीछे हटने का कारण चीन में मीथेन उत्सर्जन पर बन रही राष्ट्रीय योजना थी।
संयुक्त द्विपक्षीय समझौते की हो रही सराहना
यूरोपीय यूनियन के सेक्रेटरी जरनल एंटोनियो गुटेरेस ने दोनों देशों के द्वारा जलवायु परिवर्तन पर किये गए समझौते को सराहनीय कदम बताया। दोनों देशों ने संयुक्त रूप से घोषणा करके सकारात्मक रवैया आया परन्तु दोनों देशों को जलवायु संकट के इस मुद्दें पर प्रतिबद्दता दिखानी होगी। आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि बड़े देश संवेदनशील मुद्दों पर सांझां हो रहे मंच में कई बार अनुपस्तिथ रहते है जिस कारण इस तरह की बड़ी-बड़ी घोषणाएं सिर्फ घोषणाएं ही रह जाती है। इसलिए जरुरत यह है कि बड़े देश हर साल पर्यावरण संकट के विषय से सम्बंधित मंचों पर शामिल हो जिससे कि समयानुसार पर्यावरण क्षति का आकलन हो सके।