बेंगलुरु : कर्नाटक विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में आर अशोक की नियुक्ति ने एक बार फिर से कर्नाटक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र के पिता एवं पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा का प्रदेश की राजनीति में दबदबा कायम है। राज्य पार्टी इकाई में येदियुरप्पा के पुनरुत्थान से अधिक अशोक की नियुक्ति ने उनके धुर विरोधी बीएल संतोष के पर कतर दिए हैं। जो 2021 में उस समय निचले स्तर पर थे, जब लिंगायत के मजबूत नेता को केंद्रीय नेतृत्व ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में अपदस्थ छोड़ने के लिए कहा था
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) संतोष का येदियुरप्पा के साथ टकराव चल रहा था, जिन्हें राज्य के पार्टी मामलों में बोलने की खुली छूट नहीं दी गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में उनके वजह से भाजपा को भारी नुकसान उठाना पड़ा था और कांग्रेस ने बहुत बड़ी जीत दर्ज की थी क्योंकि संतोष कर्नाटक में दूसरी पंक्ति के नेताओं के साथ सामंजस्य बनाने में पूरी तरह से विफल रहे थे।
सबसे चौकाने वाली बात यह रही कि राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 69 लिंगायत उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था जिसमें से केवल 15 ने जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस के 46 लिंगायत उम्मीदवारों को टिकट दी उनमें से 37 ने जीत दर्ज की थी और निश्चित रूप से लिंगायत समुदाय ने श्री येदियुरप्पा को दरकिनार करने के लिए संतोष को जिम्मेदार ठहराया था और इस नतीजे ने इस धारणा को भी समाप्त कर दिया कि लिंगायत कांग्रेस के खिलाफ हैं।
उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से 2023 के विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा को दरकिनार करने की गलती और पिछले लोकसभा चुनाव में उनके नेतृत्व से मिले लाभ को महसूस करते हुए, भाजपा ने राज्य में 28 में से 25 सीटें प्राप्त की थीं। केंद्रीय नेतृत्व के पास येदियुरप्पा के पुत्र विजयेंद्र को राज्य पार्टी प्रमुख बनाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, जो स्पष्ट रूप से येदियुरप्पा के चुनावी राजनीति छोड़ने के बावजूद उन्हें उनका प्रतिबिंब माना जा रहा है।
भाजपा येदियुरप्पा के तुरुप के इक्का के तौर पर विजयेंद्र और अशोक पर बड़ा दांव खेल रही है, जिससे लिंगायत और वोक्कालिगा के जातीय समीकरण के साथ अपनी किस्मत को पलट सके, जिसे पुराने मैसूर क्षेत्र में पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के सबसे मजबूत वोक्कालिगा समुदाय का समर्थन भी प्राप्त है।
अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में यह समीकरण भाजपा के लिए कितना कारगर साबित होता है, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात तो जरूर है कि विजयेंद्र की नियुक्ति से पार्टी कार्यकर्ताओं में एक अविश्वसनीय उत्साह जगा गया है और यह बेंगलुरु में राज्य पार्टी मुख्यालय में विजयेंद्र के राज्य प्रमुख बनने के समारोह में स्पष्ट दिख रहा है।