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ब्यूरोक्रेसी से डेमोक्रेसी में ए. के. शर्मा

लखनऊ: देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश का दखल न हो ऐसा हो ही नहीं सकता क्योंकि उत्तर प्रदेश देश की सर्वाधिक आबादी वाला प्रदेश है। देश की ब्यूरोक्रेसी में उत्तर प्रदेश अपनी उपयोगिता सदैव साबित करते आया है। काबिल और भरोसेमंद अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद एक्सटेंशन देने की परंपरा रही है, लेकिन गुजरात काडर के आईएएस अधिकारी रहे ए के शर्मा का मामला थोड़ा अलग सा है क्योंकि अरविंद शर्मा को 2022 में रिटायर होना था, लेकिन अचानक वीआरएस लेकर उनका भाजपा ज्वाइन करना तथा विधानपरिषद का सदस्य बनना तमाम नए राजनीतिक चर्चाओं को बल देने के लिए पर्याप्त था। वक्त के पाबंद और तय समय से पहले टास्क पूरा करने वाले अफसर के रूप में जाने जाने वाले ए के शर्मा के कैरियर का एक और मजबूत पक्ष भी है| उनके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ काम करने का लगभग 19-20 साल अनुभव भी है| 2001 से लेकर 2013 तक मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते विभिन्न पदों पर काम कर चुके ए के शर्मा उन चुनिंदा अफसरों में से एक हैं जिनको नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात से दिल्ली बुला लिया गया। वो प्रधानमंत्री कार्यालय में संयुक्त सचिव बनाये गये और फिर MSME विभाग में सचिव रहे। उत्तर प्रदेश को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में कुछ बड़ा ही होता है| 2014 के आम चुनाव से पहले जब बीजेपी में मोदी का प्रभाव बढ़ा तो अमित शाह को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना कर भेज दिया और फिर चुनाव होने को हुए तो खुद बनारस पहुंच गये। अभी कुछ साल पहले प्रधानमंत्री मोदी के भरोसेमंद अफसर रहे नृपेंद्र मिश्र यूपी में स्पेशल मिशन पर पहुंचे, राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष के रूप में तथा अब ए के शर्मा भी उसी कड़ी में आगे की कहानी गढ़ने जा रहे हैं। बीजेपी ज्वाइन करने के बाद ए के शर्मा ने कहा था कि, ‘कल रात में ही मुझे पार्टी ज्वाइन करने के लिए कहा गया था। मुझे खुशी है कि मुझे मौका मिला, मैं एक पिछड़े गांव से निकला हूँ, आईएएस बना और आज बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के हुए बीजेपी में आना बड़ी बात है। ए के शर्मा का कहना रहा, ‘मेहनत और संघर्ष के बल पर मैंने आईएएस की नौकरी पाई तथा बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के व्यक्ति को राजनीतिक पार्टी में लाने का काम सिर्फ बीजेपी और नरेंद्र मोदी ही कर सकते हैं।’

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