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हनीमून कपल रिटायरमेंट के बाद

भुवनेश कुमार उप्रेती

सम्प्रति : केनरा बैंक से वरिष्ठ प्रबंधक के रूप में सेवानिवृत्त। बैंकिंग के क्षेत्र में 37 वर्षों का लम्बा कैरियर। हिंदी साहित्य के पठन-पाठन में गहन रुचि, प्रसिद्ध साहित्यिक रचनाओं पर  शोध कार्य आदि।

मेरी सुजान सिंह से मुलाकात कॉलेज में हुई थी। हम दोनों सीधे साधे भोले भाले हिंदी बोलने वाले गंवार थे। सरकारी स्कूल में पढ़कर अच्छे कॉलेज में दाखिला मिल गया था जहां पर अधिकतर विद्यार्थी आपस में अंग्रेजी में ही  गिटपिट किया करते थे। कुछ तो दिखावे में अंग्रेजी मैं बातचीत करते थे और  कुछ लड़कियों को इंप्रेस करने के लिए। लेकिन कुछ को अंग्रेजी में बात करते देख ऐसा लगता था जैसे कि हिंदुस्तानी अंग्रेज की औलाद हो। जैसे परिवार नियोजन वालों का स्लोगन है कि, हम दो और हमारे दो, बस हम दोनों ही पूरी क्लास में ऐसे थे जोकि हिंदी में बात करते थे। कई बार तो  क्लास में हमको आपस में बात करते हुए दूसरे विद्यार्थी ऐसे देखते थे जैसे कि हम दोनों किसी गांव देहात से हो या  हिंदुस्तान के किसी ग्रामीण क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हों। कई तो ऐसा भी सोचते होंगे कि इनको हिंदी कोटे में कॉलेज में एडमिशन मिला है।

अपने आप को हम दोनों क्लास में अलग सा महसूस करते थे इसलिए हमने बैकबेंचर्स बनने में अपनी भलाई समझी। हम दोनों पूरे दिन कॉलेज में एक दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ते थे। यदि किसी दिन सुजान सिंह छुट्टी कर लेता था तो मैं भी उस दिन कॉलेज नहीं जाता था। हम दोनों को क्लास में जुड़वा कहा जाता था।

सुजान सिंह सिख समुदाय से था, लेकिन सिखों जैसी दिलेरी, कड़क आवाज, जोश उसमें नहीं था। वह कद में छोटा था, बहुत धीरे से बोलता था और हर वक्त डरा-डरा और सहमा-सहमा सा रहता था। कॉलेज के विद्यार्थी उसको चिद्दि  सरदार (गिठ्ठा, कद में छोटा) कहकर चिढ़ाते थे। तब मैं ही उनका विरोध करता था। वह 100% शाकाहारी था। पूरे कॉलेज में मैं ही उसका एकमात्र इकलौता दोस्त था। सुजान पढ़ने में अच्छा था लेकिन सुस्त किस्म का इंसान था।

कॉलेज के 3 साल की पढाई पूरे होने के बाद हम दोनों कंम्पटिटिव एग्जाम की तैयारी में लग गए। भाग्य ने ऐसा साथ दिया कि हम दोनों का एक बारी में ही बी एस आर बी का टेस्ट पास हुआ और दोनों को केनरा बैंक ही मिला।

यह दोस्ती बैंक में भी खूब जमी। सुजान की कदकाठी छोटी होने कारण अक्सर लोग बैंक में भी उसको चिढ़ाते थे इसलिए वह ज्यादा लोगों से घुलता मिलता नहीं था। उसका कॉलेज में भी मैं ही एकमात्र दोस्त था और बैंक में भी मैं ही उसका एकमात्र दोस्त रहा।

भारतीय समाज में बच्चे की नौकरी लगने के बाद घर वालों का अगला टारगेट उसकी शादी करना होता है। सुजान की बैंक में नौकरी लगने के बाद बहुत से विवाह के प्रपोजल आने लगे। उन दिनों बैंक में नौकरी करने वालों की मार्केट वैल्यू ऐसी थी जैसे कि शेयर मार्केट में ब्लू चिप कंपनी के शेयर जैसी। लड़का यदि  बैंक में नौकर हो तो लड़की वाले उस लड़के को अपना जमाई बनाने के  के लिए दौड़ लगाते, मन्नत मांगते कि हे भगवान हमारी बेटी को बैंक में नौकरी करने वाला जीवन साथी मिले। उन्हें लगता था ऐसे जीवन साथी के साथ उनकी बेटी को जीवन में रुपयों पैसों की कमी नहीं होगी और वह सुखी रहेगी। मुझे लगता है कुछ को यह भ्रम भी होगा कि जितना कैश बैंक में दिन भर जमा होता होगा वह सब कर्मचारियों का ही होता होगा , और शाम को कर्मचारियों में बंट जाता होगा। खैर बैंक की नौकरी में अब वह बात नहीं है। हर चीज जो ऊपर चढ़ती है वह नीचे भी गिरती है। जो भी यह जानकर सुजान को देखने आता कि लड़का बैंक में नौकरी करता है तो बहुत खुश होते थे लेकिन जब उसका रंग रूप काठी और कद देखते थे तो निराश होकर लौट जाते थे। इस तरह की रिजेक्शन से सुजान काफी परेशान था और एक दिन उसने अपनी इस समस्या का जिक्र मुझसे किया। मैं ही तो उसका एकमात्र फ्रेंड, गाइड, फिलॉस्फर और संकट मोचक था। मैंने उसको बताया कि तू फिकर ना कर अपने कदकाठी को लेकर परेशान मत हुआ कर गुरबाणी में लिखा है—

अव्वल अल्लाह नूर उपाया,
कुदरत के  सब बंदे।
एक नूर ते सब जग उपजया
कौन भले को मंदे।।

तेरे लिए वाहेगुरु ने एक बेहतरीन जीवनसाथी बनाया है, वक्त आने पर वह  रिश्ता खुद चलकर आ जाएगा। मुझे उसके भोलेपन पर तरस भी आता था और सोचता था कि क्यों लोग किसी को उसके रंग, रूप, कदकाठी को लेकर कमेंट करते हैं जब कि पूरी सृष्टि का निमार्ता तो परमेश्वर है तो फिर उसकी रचना का मजाक क्यों ?

हुआ वही जो ऊपर वाले ने रचा हुआ था। कुछ दिन बाद सुजान का फोन आया कि उसकी कुड़माई (सगाई) अमृत कौर से  हो गई है। यह मेरे लिए बहुत खुशनुमा संदेश था। मैं उसकी शादी में गया और पाया कि अमृत कौर बहुत ही सुंदर, सहनशील और चुस्त औरत है। उसे देख कर मुझे लगा कि यह मेरे दोस्त के लिए अच्छा जीवनसाथी सिद्ध होगी। हुआ भी वही जैसा कि अमृत को पहली बार देख कर मुझे महसूस हुआ था। जब भी यदा-कदा शादी के बाद सुजान सिंह के घर जाने का मौका मिलता था तो अमृत कौर यही कहती थी सरदार जी बहुत ही अच्छे इंसान है, लेकिन यह कहने में भी नहीं चूकती थी कि वह बहुत ढीले ढाले, सुस्त और घर के किसी भी काम में मदद नहीं करते हैं। बस यही कमी मेरे दोस्त  सुजान सिंह में थी जिसके बारे में मुझे कालेज के समय से ही जानकारी थी बाकी वह हर तरह से योग्य था।

समय कैसे बीत जाता है यह तब पता चला जब सुजान सिंह का फोन आया कि वह विश्रांति ट्रेनिंग प्रोग्राम के लिए आर एस टी सी, गुरुग्राम में आ रहा है। मैं उन दिनों आर एस टी सी  में संकाय ( फेकलटी ) के पद पर कार्यरत था। विश्रांति एक तरह का लाइफ स्टाइल प्रोग्राम है जिसमें जो कर्मचारी रिटायर होने जा रहे होते हैं उनको किस तरह से रिटायरमेंट के बाद का समय गुजारना होता है उसके बारे में जानकारी दी जाती है। सुजान से मिलकर मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि हम दोनों चार दशक से दोस्त हैं।

प्रोग्राम के आखरी दिन सुजान सिंह कहने लगा दोस्त अब समझ नहीं आ रहा रिटार्यमेंट के बाद समय कैसे कटेगा। अभी तक तो दिन के 12 घंटे बैंक में ही कट जाते थे अब 24 घंटे खाली बैठ कर घर में कैसे कटेंगे। मैंने उसे बताया कि टेंशन ना ले ,जैसा-जैसा ट्रेनिंग में बताया है वैसे वैसे करना समय अपने आप कट जाएगा।

रिटायरमेंट के 3 महीने बाद एक दिन सुजान रविवार को घर पर आ गया। वह बहुत ही परेशान लग रहा था। मैंने उसको आने का कारण पूछा तो बोला दोस्त खाली समय कट नहीं रहा है बोर हो गया हूं।  कहने लगा जब से रिटायर होकर घर  बैठा हूं तो तुम्हारी भाभी बहुत ही गुस्से में रहती हैं। मुझे घर में बैठा देखकर गुस्सा हो जाती है और कहती है काम कुछ करते नहीं हो और मेरा काम और बढ़ा देते हो। दिन में 10 बार चाय मांगते हो और तीन बार खाना और मदद के नाम पर ठेंगा दिखा देते हो। मैंने उसे कहा कि भाभी की घर के काम में मदद कर दिया करो तो कहने लगा दोस्त यह काम मुझसे नहीं होता कुछ और सुझाव दो।

मैं अपने दोस्त की आदतों से वाकिफ था। मुझे पता था कि यह दिन भर खाली बैठ जाएगा लेकिन घर के काम में हाथ नहीं बंटाएगा। मैंने उसे सुझाव दिया कि पूरा दिन घर में मत बैठा करो, सुबह नहा धोकर 6-7 बजे के करीब गुरुद्वारे चले जाया करो वहां पर शब्द कीर्तन सुना करो। इसी तरह  शाम को भी चले जाया करो। जितना कम समय अपने घर में बिताओगे उतना ही कम तुम्हें सुनने को मिलेगा। सुजान कहने लगा, दोस्त यह जिंदगी अब तक तुम्हारे सहारे और सुझाव से आराम से कट गई है  ,यह उपाय भी कर के देख लेता हूं।

तीन महीने बाद सुजान सिंह दोबारा मेरे पास आ गए और कहने लगे दोस्त जब तक गुरुद्वारे में रहता हूं तब तक मन शांत रहता है पर घर आते ही तुम्हारी भाभी झगडा शुरू कर देती है। कहती है कि तुम वेल्ले (खाली) घूमते रहते हो लेकिन घर के काम में मेरा हाथ नहीं बंटाते हो। सुजान कहने लगा दोस्त कोई और उपाय बताओ जिससे सुखचैन का जीवन व्यतीत कर सकूं। मैंने कहा दोस्त 40 साल तक हमारी धर्मपत्नी ने हमको दिन भर में 4 घंटे की सेवा दी है या यूं कहें हमको झेला है। जब नौकरी में थे तब दिन के 12 घंटे बैंक को दिए, रात को 8 घंटे नींद में कट जाते थे सिर्फ 4 घंटे ही उसके साथ बीतते थे। अब इस उम्र में वह हमको 24 घंटे बर्दाश्त नहीं कर सकती हैं। मैंने सुजान को सुझाव दिया कि तुम गुरुद्वारे तो  जाते हो वहां सिर्फ शब्द कीर्तन ही ना सुना करो कुछ कार सेवा भी किया करो , जैसे गुरुद्वारे में झाड़ू लगाना, संगत को चाय नाश्ता करवाना, और बर्तनों को धोना। यह सब सेवाएं भी गुरुद्वारे में करना शुरू करो और 3 महीने के बाद मुझे बताना कि क्या कोई परिवर्तन तुम्हारे जीवन में आया है कि नहीं। मेरी बात गांठ बांधकर सुजान सिंह चला गया और कहने लगा दोस्त अब यह सब भी कर के देख लेता हूं।

तीन महीने बाद एक बार फिर सुजान सिंह मुझसे मिलने आ गया। मैंने पूछा सुजान अब कैसी जिंदगी चल रही है ?  कहने लगा दोस्त कोई फर्क नहीं पडा है। तुम्हारी भाभी अमृत कौर अब नाम की ही अमृत है वैसे हर वक्त मुझ पर जहर उगलती है। मैंने पूछा गुरुद्वारे में क्या क्या सेवाएं दे रहे हो ? कहने लगा जैसे तुमने कहा वैसा कर रहा हूं। सुबह 6:00 बजे गुरुद्वारे चला जाता हूं। गुरूद्वारे पहुंचते ही पहले दरबार हॉल में झाड़ू लगाता हूं, फिर संगत के लिए चाय बनाता हूं और बर्तन मांजने के साथ साथ शब्द कीर्तन भी सुनता रहता हूं। इतना कुछ करने के बाद भी घर में शांति नहीं है पता नहीं वाहेगुरु मुझसे क्यों नाराज हैं ?

मैंने कहा , दोस्त धैर्य रखो तुम को सुख और शांति जरूर मिलेगी। मैंने उससे पूछा क्या सही तरह से चाय बनाना, झाड़ू लगाना और बर्तन मांजना आ गया है ? सुजान कहने लगा, क्यों नहीं  दोस्त , गुरुद्वारे के ग्रन्थीजी मेरी कार सेवा से बहुत प्रसन्न हैं। मैंने उसे कहा अब जो सुझाव दे रहा हूं वैसे ही तुम्हें अपनी जीवन- चर्या बितानी होगी। मैंने कहा सुबह उठते ही तुम्हें अपने घर की रसोई में रात के जितने भी गंदे बर्तन होंगे उनको धोना है। उसके तुरंत बाद जैसे तुम गुरुद्वारे के दरबार साहिब में झाड़ू लगाते हो वैसे ही अपने घर में भी लगाना है और गुरूद्वारे जाने से पहले एक कप चाय अमृत कौर को  पिला कर जाना। यह सब आप 3 महीने तक करो। जो कार सेवा आप गुरुद्वारे में कर रहे हो वह सब अपने घर में भी करनी है , और 3 महीने के बाद मुझे रिपोर्ट दो।

इस सुझाव के बाद सुजान सिंह छ: महीने तक मेरे घर ही नहीं आया। उसका अता -पता लगाना के लिए मैं एक दिन  उसके घर पहुंच गया। भाभी अमृत कौर ने दरवाजा खोला और खुले दिल से मेरा स्वागत किया। मैंने पूछा कहां है हमारा दोस्त, तो कहने लगी रसोई में है सब्जी काट रहे हैं, शाम के खाने की तैयारी हो रही है। तभी अमृत ने आवाज लगाई  जी सुनते हो, तुम्हारे वीर जी (बडे भाई) आए हैं। सुजान ने रसोई से आवाज दी तू एना दे नाल बैठे मैं हूंणे चाय ले कर आता हूं। थोडी देर बाद  सुजान सिंह तीन कप चाय लेकर आ गया।

मैंने पूछा, दोस्त ऐसी क्या नाराजगी हो गई कि तुम 6 महीने से मेरे घर ही नहीं आए। पहले तो अक्सर आ जाया करते थे। सुजान सिंह कहने लगा दोस्त पहले मैं शांति की खोज में दर-दर  भटक रहा था, तुमने ऐसा उपाय बताया कि अब तो घर ही गुरद्वारा हो गया है। अब मैं कहीं इधर उधर नहीं भटकता बस घर में ही कार सेवा करता हूं। जब गुरूद्वारे में कार सेवा करता था तो ग्रंथी जी मेरी सेवा से खुश रहते थे और जब से घर में सेवा दे रहा हूं तो घर की मालकिन खुश है और मुझे सुख और शांति भी मिल रही है। अमृत कौर और सुजान सिंह बहुत खुश नजर आ रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे कि वह हनीमून कपल हो।  ’’