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संस्मरण : महीयसी महादेवी वर्मा

जन्मदिवस पर विशेष

फाल्गुन का यह माह मेरे मन में महीयसी महादेवी वर्मा की याद को भी तरो-ताजा कर देती है।अगस्त 1984 की घटना है। मैं उन दिनों इलाहाबाद में रहती थी। उन्ही दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बी-एस-सी में अध्ययनरत मेरा बेटा सड़क दुर्घटना में दिवंगत हो गया। कुछ दिन विक्षिप्त सी रहने के बाद मैंने अपने को संभाला और विचार में आया कि अपने होनहार बेटे पर कुछ लिखूं कि इस असार संसार से विदा हुआ भी वह अमर हो जाये। लेखन में रूचि मुझे बचपन से ही थी। अत: बेटे के सदमे से उबरने में कुछ हद तक मुझे कलम ने सहारा दिया। मैंने अपने पुत्र के अल्प जीवन की प्रेरक घटनाओं को संग्रहीत किया और ‘फूल सा रिश्ता ‘लघु संस्मरण पुस्तिका लिखी। महीयसी महादेवी वर्मा का निवास भी इलाहाबाद के अशोक नगर में था।  श्री राम जी पाण्डेय उनके साथ रहते थे। मैं इससे पूर्व भी उनसे मिल चुकी थी। मैंने निश्चय किया कि इस पुस्तिका पर महादेवी वर्मा के कर कमलों से कुछ लिखा कर ही प्रकाशित कराऊं। इस उद्देश्य से मैं अपने पति श्री योगेश श्रीवास्तव एस.डी.एम.के साथ उनके निवास पर गई। वह मुझसे  पूर्वत: अत्यंत स्नेह और अपनत्व दर्शाती हुई मिली, किशोर पुत्र के बिछोह के मेरे कष्ट को सुन कर द्रवित होकर बोलीं – ‘तुम्हारा कष्ट तो सचमुच बहुत  भारी है साधना ‘।

 मेरी आंखों से अश्रु टपक पड़े – इतना अथाह स्नेह मुझे उनसे मिलेगा, इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मैं तो धरती पर पड़ी धूल सद्दश थी और वह आसमान में चमकती सितारा – कि मेरे ह्रदय में उनकी चमक और तेज हो गई थी। ‘फूल सा रिश्ता’ की पांडुलिपि पर शुभकामना के चंद शब्द  अंकित कर के उन्होंने कहा कि ‘तुम्हारे अंदर काव्य लिखने की भी प्रतिभा प्रच्छन्न है, मैंने इस पुस्तक से जान लिया है। अगर अपने इस बच्चे के जीवन की घटनाओं को काव्य में उतार सको तो मुझे उस पर भी कुछ  लिखने में अच्छा लगेगा ‘। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई बहुत बड़ी आत्मा मुझमें प्रेरणा भर रही है, मैंने उनके कथन को स्वीकारा और घर वापस आ गईं। इसके बाद मुझे अधिक समय नहीं लगा, जब मैंने हल्की-फुल्की श्रद्धांजलि के रूप में काव्य-पुस्तिका ‘अधखिले पुष्प का सौरभ’ लिख कर उनके पास लेकर गई। उन्होंने मुझे शाबासी दी और इस काव्य-कृति पर भी अपने कर-कमलों से शुभकामना के चंद शब्द अंकित किया। यही नहीं मैं कुछ दिनों पश्चात नारी प्रधान समस्याओं पर आधारित कहानी संग्रह’उपहार’ लिखा। उस पर भी उन्होंने शुभकामना की चंद अमूल्य पंक्तियाँ अंकित की, जो उन्हीं की लिखावट में पुस्तक पर प्रकाशित है। उन्होंने अत्यंत स्नेहपूर्ण शब्दों में मुझे सहेजा-‘साधना, तुम साहित्य सेवा करती रहना। परिश्रम और लगन कभी विफल नहीं जाता। मुझे देखो, मैंने अपनी 38 वर्ष की आयु में ‘यामा’लिखी थी,जिस पर चालीस वर्ष बाद मुझे ‘ज्ञान पीठ साहित्य सम्मान से’नवाजा गया। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि चाहे कुछ विलम्ब से हो पर एक दिन ज्ञान की परख हो ही जाती है। मैंने उनकी बात गांठ बांध ली। उनके आशीर्वचन और शुभकामना से मेरी साहित्यिक यात्रा दिन व दिन सफलता की तरफ अग्रसर होती रही, जिसके परिणाम स्वरूप दिल्ली से मेरी अब तक कम से कम पच्चीस  पुस्तकें (कहानी संग्रह, काव्य संग्रह, महापुरूषों की बायोग्राफी तथा बाल कहानियों का प्रेरक संग्रह) प्रकाशित हो चुकी है। अंत में अत्यंत दुखी मन से लिखना पड़ रहा है कि, जब वह गंभीर रूप से अस्वस्थ हो गईं थी। तब भी मैं उनके निवास पर गई। श्री राम जी पाण्डेय से मिली। उन महान साहित्यकार और कवयित्री से मुलाकात नहीं हो सकी, वह उस समय कोमा में थीं। मैं भारी मन से रजिस्टर पर हस्ताक्षर करके आ गई। इस अस्वस्थता के बाद वह नहीं रहीं।  उनको श्रद्धा के साथ शतशत नमन।

Mahadevi Verma

लेखिका: श्रीमती साधना श्रीवास्तव (साधना  श्रीवास्तव ( 1942 )  ने समाज और देश के विविध पहलुओं को अपनी लेखनी से उभारा है व आवश्यकतानुसार समाधान भी प्रस्तुत किया है। उन्होंने देश की महान विभूतियों की जीवन-गाथा, काव्य-शैली में अंकित कर उनके प्रेरक व्यक्तित्व को सबके समक्ष प्रस्तुत किया है। जैसे- बापू की अमर कहानी,लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल की जीवनी, पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम का संम्पूर्ण प्रेरक व्यक्तित्व, छत्रपति शिवाजी महाराज, झाँसी की रानी आदि। इसके अतिरिक्त बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए  बाल कहानियाँ भी लिखीं। )