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समाचार दूत की श्रम-सिद्धि

ashok-kumar

डॉ. अशोक कुमार

32 वर्ष बिहार प्रशासनिक सेवा। दो वर्ष सदस्य बिहार लोक सेवा आयोग। 10 मार्च, 2019 से सदस्य, बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग। आकाशवाणी पटना से पूर्व में कई वार्ता, कहानी का प्रसारण।

देश के कोने-कोने में समाचार प्राप्ति का सबसे सटीक एवं प्रमाणिक श्रोत आज प्रात:कालीन प्राप्त होने वाला अखबार ही है। टेलिविजन के विभिन्न चैनलों पर प्रसारित समाचारों की एक अपनी अलग दुनिया है लेकिन सुबह परोसे जाने वाले अखबारी खबर हमारी रोजमर्रा के जलपान के पहले की वह खुराक है जो जीवन चक्र के हर हिस्से में होनेवाली घटनाओं से रूबरू कराता है। इंटरनेट पर समाचारों के पठन का यद्यपि आज प्रचलन बढ़ गया है किंतु जो संतुष्टि और तृप्ति अखबार के पन्नों के पलटने से लेकर खबरों की गहराई में डूबने से मिलती है वह अन्यत्र दुर्लभ ही है। हाँ, कोरोना-काल में कुछ माह तक इसकी अप्राप्ति ने अखबार के समर्पित पाठकों के मन को इस स्वाद से दूर रखा।

पिछले माह एक दिन अखबार नहीं मिलने पर समाचार पत्र के दूत को जब फोन किया तो उन्होंने बताया कि वर्षा में भीगने एवं साईकिल पंचर हो जाने के कारण थोड़ी देर हो रही है। दो घंटे में जब वे आये तो मैने उन्हें चाय पीकर जाने को आग्रह किया, लेकिन वे अन्य ग्राहकों को वितरण में विलंब होने के कारण जल्दी में चले गये। भींगे अखबार को पंखे की हवा से सुखाने के क्रम में मैं इस संवाद दूत की दैनन्दिनी में खो गया। जाड़ा, गर्मी बरसात में सुबह तीन बजे जब हम गहन निद्रा में होते हैं, वे घर से निकल कर अखबार के थोक विक्रेता से अपने हिस्से का अखबार लेकर निकल पड़ते हैं लोगों को खबरों से अवगत कराने।

मन में एक दिन जिज्ञासा हुई कि वर्षों से घर में दे रहे अखबार दाता के जीवन अध्याय के पन्नों से परिचित हुआ जाय। कई संकोच एवं द्वंद से ग्रस्त हो मंैने उन्हे माह के अंतिम तिथि को फोन कर आग्रह किया कि वे अगले बार जब अखबार के पैसे लेने आयें तो थोड़ा समय लेकर आये क्योंकि मेरे साथ आपको चाय पीना है और कुछ दुनियादारी की बातें भी करनी है। वे जब आये तो पहले मैने उन्हें निर्धारित मासिक अखबार के पैसे देते हुए आमने-सामने बैठकर बातों का सिलसिला शुरू किया।

उन्होंने बताया कि सुबह सात बजे तक अखबार बांट कर दो घंटे सोकर दिन के दस बजे एक निजी संस्था में शाम 5 बजे तक काम करता  हूँ क्योंकि अखबार बांटने से जो राशि मिलती है उससे परिवार का भरण-पोषण ठीक से नहीं हो पाता है। पिछले दो वर्ष पूर्व उन्होंने अपनी पुत्री जो एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई पूरी कर ली थी, की शादी साथ में पढ़ रहे एक मेडिकल छात्र के साथ कर दिया। बातचीत के दौर में उन्होंने बताया कि उसका छोटा बेटा इसी साल इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट पास कर लंदन में एक बड़े प्रतिष्ठान में कार्यरत है। उत्सुकतावश मैने पूछ ही लिया कि आखिर उसने अपनी सीमित आमदनी से अपने बेटी और बेटे को उच्च शिक्षा कैसे मुहैया कराया। उन्होंने नम आंखों से कहा कि इसकी लंबी कथा है फिर भी मैं आपको कुछ बता देता हूँ। घर के दैनिक खर्चों पर अंकुश लगाने की अन्य चर्चा करते हुए वे कहने लगे कि भोजन में सब्जी के नाम पर रात में बाजार में बची खुची कद्दू, बैंगन,जैसे मौसमी सस्ती सब्जी को ही घर में बनाया जाता था। रूंआसे स्वर में वे कहने लगे कि एक दिन मेरा लड़का परोसी गई थाली में भोजन सामग्री देखकर रोते हुए अपनी माँ से बोल बैठा, ये क्या रोज-रोज बस वही कद्दू, बैंगन, भींडी जैसी नीरस सब्जी के रूखा-सूखा खाना से उब गया हूँ मैं खाते खाते। अपने साथियों के घर जाता हूँ तो वहाँ मटर-पनीर, पालक-पनीर, कोफ्ते, दम-आलू आदि, और यहाँ कि बस क्या कहूँ। अखबार भाई ने कहा कि मैं यह सब सुन रहा था तो रहा नहीं गया और मै बड़े उदास मन से उसके पास जाकर बड़े प्यार से उसके माथे को सहलाते हुए कहा बेटे, पहले आंसू पोंछ ले तो फिर मैं आगे कुछ कहूँ। मेरे ऐसा कहने पर उसने आंसू स्वयं पोछ लिये-फिर मैं बोला ‘बेटा, सिर्फ अपनी थाली देख, दूसरे की देखेगा तो तेरी अपनी थाली भी चली जाएगी और सिर्फ अपनी ही थाली देखेगा तो क्या पता कि तेरी थाली किस स्तर तक अच्छी होती चली जाये। इस रूखी-सूखी थाली में मैं तेरा भविष्य देख रहा हूँ, इसका अनादर मत कर एवं इसमें जो कुछ भी परोसा गया है उसे मुस्कुरा कर खा ले’। बेटे ने फिर मुस्कुराते हुए मेरी आंखों में उसने मेहनत का प्रतिबिम्ब देखा ओर जो परोसा गया था उसे पूरी तन्मयता से खा लिया। भाई जी, उसके बाद मेरे बेटे ने किसी भी प्रकार की न कोई शिकायत और न कोई मांग रखी।आज का दिन बच्चों के उसी त्याग और संतोष का फल है। उनकी बातों को मैं पूरी एकाग्रता से चुपचाप सुनता रहा और आज इसे लिखते हुए गर्व है कि वैसे श्रमशील एवं अभाव में भी भविष्य की सुखद राह देखने वाले परिवार को सफलता शिखर स्पर्श करती है जबकि पूरी सुविधा सम्पन्न से लैश परिवार के अधिकांश बच्चे अपने अभिभावकों के हृदय स्पर्शी कृत्यों एवं कथ्यों से दूर रहा करते हैं। स्व. ए.पी.जे.अब्दुल कलाम साहब घोर अथार्भाव में बाल्यकाल की पढ़ाई जारी रखने हेतु नित्य प्रात: अखबार वितरण भी किया करते थे। ऐसे संघर्ष पथ के अनुसरणकर्ता कभी देश के महान वैज्ञानिक के रूप में राष्ट्रपति बने थे। आवश्यकता इस बात की है कि हमारे दरवाजे पर रोज अखबार पहुँचाने वाले व्यक्ति के जीवन परिधि में कभी-कभी हम झांक कर उनके सुख-दुख के दो पल बांट लें तो शायद समाज के लिए प्रेरणा का सुखद प्रसंग बन सकेगा। ’’