कोटा : राजस्थान में उत्पादित मसालों पर मंडी कर में व्यवहारिक तरीके से किसानों और कारोबारियों की अपेक्षाओं के अनुरूप कमी लाकर राज्य सरकार न केवल हर साल होने वाली कई करोड़ रुपए की छीजत को रोक सकती है बल्कि नये उद्योग की स्थापना करके एक लाख लोगों के लिए नए रोजगार की संभावनाओं के द्वार भी खोल सकती है।
राज्य में हर साल लगभग 12 हजार करोड़ के आसपास मसाले से जुड़ी फसलों का उत्पादन होता है, लेकिन यहां मंडी टैक्स अधिक होने से कुल उत्पादन का 75 प्रतिशत कारोबार अन्य राज्यों में हो रहा है, जिसकी वजह से प्रदेश को बड़े राजस्व की हानि के साथ ही किसानों को भी नुकसान हो रहा है।
कोटा में राजस्थानी एसोसिएशन ऑफ स्पाइसेस संस्था की ओर से मसाला उद्योग से जुड़े व्यापारियों, किसानों एवं उद्योगपतियों की दो दिवसीय सेमीनार का शनिवार को शुभारंभ के मौके पर संस्था के अध्यक्ष श्याम जाजू ने कहा कि राजस्थान में मंडी टैक्स 4.5 प्रतिशत है, जबकि गुजरात और मध्यप्रदेश में यह एक प्रतिशत होने से यहां के किसान वहां जाकर अपनी उपज बेच रहे हैं, जिसकी वजह से किसानों को भी परिवहन करने से नुकसान उठाना पड़ रहा है, वहीं राजस्थान सरकार को भी पांच प्रतिशत जीएसटी और दो प्रतिशत मंडी टैक्स के रूप में हर वर्ष करोड़ों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है।
संस्था के सचिव महावीर गुप्ता ने कहा कि यदि मध्यप्रदेश और गुजरात की तर्ज पर यहां भी राजस्थान सरकार मंडी टैक्स कम कर दे तो सरकार को तो करोड़ों रूपयों के राजस्व का फायदा तो होगा ही साथ ही प्रदेश में मसाले से जुड़े लगभग एक हजार नये उद्योग स्थापित होने की संभावनाओं के साथ ही एक लाख लोगों को रोजगार मिल सकेगा। साथ ही किसानों को भी उनकी उपज का सही मूल्य मिलने के साथ ही दूसरे राज्यों में उपज ले जाने में खर्च भी बचेगा। इस बारे में सरकार को सकारात्मक रूप से मंडी टैक्स कम करने पर विचार करना चाहिए।
सेमीनार में संस्था की ओर से राजस्थान, गुजरात एवं मध्यप्रदेश के 18 जिलों के कराए गए सेटेलाइट सर्वे की रिपोर्ट प्रस्तुत की गई जिसमें बताया गया कि संस्था द्वारा इन राज्यों में किसानों के खेतों का सर्वे कराया गया। इस तकनीक के माध्यम से यह फायदा होगा कि मसाला उद्योग से जुड़े व्यापारियों व कंपनियों एवं किसानों को यह अनुमान लग सकेगा कि कितना उत्पादन होगा और मांग के अनुरूप कितना और बढ़ाना चाहिए।