जयपुर : रोशनी के पर्व दीपावली के अवसर पर परम्परागत एवं गाय के गोबर से बने दीपक एवं अन्य सामग्री के प्रति लोगों का रुझान बढ़ने लगा हैं और गाय के गोबर से निर्मित दीपक, भगवान की मूर्तियां, शुभलाभ एवं स्वास्तिक सहित अन्य सामग्री रोजगार का जरिया भी बनती जा रही वहीं इससे गाय के संरक्षण को भी बल मिलने लगा है।
दीपावली के मौके पर परम्परागत रुप से मिट्टी एवं गोबर से बने दीपक एवं अन्य सामग्री राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली एवं राजस्थान विभिन्न स्थानों पर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने लगी है और खासकर गोबर से बनी इस सामग्री के प्रति किसानों का रुझान भी बढ़ने लगा है जिससे वह खेती के साथ गाय पालकर अपना रोजगार भी बढा सकते हैं।
भरतपुर जिले की उच्चैन तहसील के पना गांव स्थित लोहागढ़ ऑर्गेनिक फार्म के सिविल इंजीनियर कमल मीणा के अनुसार वह पिछले तीन चार साल से दीपावली के मौके पर देसी गाय के गोबर से दीपक, भगवान गणेश एवं लक्ष्मी की मूर्ति के साथ विभिन्न आकार में शुभलाभ, ओम , स्वास्तिक, धूप बत्ती, सामरानी कप (धूप) आदि बना रहे है और इस बार उनके गाय के गोबर से बनाई इस सामग्री के प्रति लोगों में रुझान ज्यादा देखने का मिल रहा है।
उन्होंने बताया कि उनकी सामग्री राजस्थान में भरतपुर एवं अन्य जगहों के अलावा दिल्ली में खूब पसंद की जाने लगी हैं और उनके फार्म से पिछले साल दिल्ली हार्ट ,आईएनए मार्केट में बिक्री के लिए दो लाख से अधिक वैदिक दीपक उपलब्ध कराए गए। इस बार फार्म पर ढाई लाख से अधिक वैदिक दीपक तैयार किए जिनमें दो लाख दीपक दिल्ली एवं अन्य जगह भेज दिए गए और इनकी मांग बढ़ती जा रही है। इस सामग्री की आर्ट ऑफ लिविंग सेंटरों में भी आपूर्ति की जाती है।
उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से बनी इस सामग्री के प्रति किसानों का रुझान बढ़ने लगा है और हाल में उनके फार्म पर करीब डेढ सौ किसानों ने इस बारे में जानकारी एवं जागरकता पाने के लिए भाग लिया और इसके प्रति अपनी रुचि दिखाई। इससे किसान के मन में गाय पालने के प्रति भावना जाग्रृत होने के साथ उसके गोबर के इस्तेमाल करने से उनका रोजगार बढ़ेगा और गाय को संरक्षण भी मिलेगा।
श्री मीणा ने बताया कि एक किलो गाय के गोबर से गणेशजी की चार मूर्तियां बन जाती है और एक मूर्ति करीब सौ रुपए में बिक जाती है। इस तरह एक किलो गोबर से चार रुपए कमाए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि वैदिक दीपक एवं अन्य सामग्री के उपयोग के बाद इसे घर में रखे गमले में खाद के रूप में उपयोग में लिया जा सकता है वहीं नदी एवं नहर के आस पास के लोग इसे पानी में डाल देने पर यह मछलियों का भोजन भी बन सकती है।
वैदिक दीपक बनाने में देसी गिर गाय का गोबर एवं हवन सामग्री मिलायी जाती है। इसी प्रकार सामरानी कप बनाने में सुगंध कोकला, नागरमोथा, लोवान, गूगल आदि प्राकृतिक वस्तुओं को काम में लिया जाता हैं। इसे जलाने से घर आंगन का वातावरण प्राकृतिक सुगन्ध से महक जाता है। उन्होंने बताया कि गाय के गोबर से बनी इस सामग्री के घर में रखने से रेडियशन में कमी आती हैं वहीं गाय के गोबर से बनी गाय के चित्र एवं भगवान की मूर्तियों से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। इसके अलावा यह सामग्री कीटाणुनाशक होने के कारण घर में मच्छर, मक्खी आदि नहीं होते है। इसमें कार्बन की मात्रा बहुत कम होती है। इससे प्रदूषण भी नहीं फैलता।
उन्होंने बताया कि फॉर्म पर गिर नस्ल की गाय एवं नंदी की सहायता से प्राकृतिक खेती, बायोगैस, गाय के गोबर से गोकास्ठ ईट, विभिन्न आकार के गमले आदि बनाने की पहल की है। उन्होंने बताया कि गोमूत्र से कीटनाशक दवाइयां भी बनाई जाती है। उन्होंने कहा कि गाय से बनी इस सामग्री को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार को भी इसे प्रोत्साहित करने के लिए आगे आना चाहिए और इसके प्रति जानकारी एवं जागृति फैलाने के लिए स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के ऐसे फार्म स्थलों का भ्रमण कराया जाना चाहिए।
श्री मीणा ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत वर्ष 30 सितंबर को रेडियो पर मन की बात कार्यक्रम में उनकी इन उपलब्धियों का उल्लेख भी किया था। इससे पहले कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी भी इस फॉर्म पर आ चूके हैं और उन्होंने किसानों की आमदनी दोगुनी करने संबंधी केंद्र सरकार के लक्ष्य के बारे में फार्म का अवलोकन करने आये थे।
उधर जयपुर में परम्परागत मिट्टी के दीपक को बढ़ावा एवं इसे रोजगार से जोड़ने के लिए श्रीराम सेवा संगम समिति पहल ने पहल करते हुए संस्था से जुड़े लोग घर घर जाकर मिट्टी के दीयों का वितरण कर रहे हैं। समिति के अनुसार समिति के करीब तीन दर्जन सदस्य गत चार महीनों से मिट्टी के दीपक बनाने का काम कर रहे हैं। समिति ने दीपावली के मद्देनजर लोगों को रोजगार से जोड़ने के लिए मिट्टी की कार्यशाला अभियान की शुरुआत की है और अब तक इसके तहत सौ से अधिक लोगों को रोजगार मिल चुका है।