गौरवशाली भारत

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भिखारी ठाकुर सर्वगुण सम्पन्न अमर लोक कलाकार

रजनीश कुमार ‘गौरव’

युवा लेखक

Bhikhari Thakur

लोक साहित्य के क्षेत्र में भिखारी ठाकुर उत्तर भारत समेत पूरी भोजपुरी भाषी दुनिया में काफी प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले इकलौते लोक कलाकार हैं। लगभग 46 साल के अपने साहित्यिक सफर में स्व. भिखारी ठाकुर ने जनहितार्थ करीब एक दर्जन लोक नाटकों एवं डेढ़ दर्जन से अधिक गीत, कविताएं, भजन एवं कीर्तन की प्रकाशित पुस्तकों के माध्यम से भोजपुरिया संसार में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज करायी है। इन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक योगदान की बदौलत ही उन्होंने समाज में अपनी अलग पहचान कायम की है। वे एक लोक कलाकार होने के साथ-साथ, साहित्य की हर विधा में माहिर एवं हुनरमंद हरफनमौला खिलाड़ी थे, जो हर भूमिका में अपनी अमिट छाप छोड़ने में सफल रहे हैं। कला और साहित्य की दुनिया में ऐसे अनेक खूबियों और महत्वों के लिए माने-जाने वाले भिखारी ठाकुर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। भिखारी ठाकुर के मरणोपरान्त उनके नाम पर उनके गृह जनपद, छपरा शहर के प्रवेश द्वार पर उनके सह कलाकारों के साथ अवस्थित ‘भव्य स्मारक’, उनकी जन्मभूमि: ग्राम कुतुबपुर, छपरा (बिहार) में उनके नाम पर स्थापित ‘लोक कलाकार भिखारी ठाकुर आश्रम’, आरा शहर में स्थित उनकी सुन्दर प्रतिमा, एवं बिहार की राजधानी पटना में निर्मित ‘भिखारी ठाकुर ऊपरगामी  सेतु’ भिखारी ठाकुर के महत्व को बखूबी दर्शा रहा है।भोजपुरी को ऊँचाई देने वाले एवं लोक साहित्य को समृद्धि प्रदान करने वाले भिखारी ठाकुर की कालजयी रचनाएं आज भी उतना ही प्रासंगिक हैं जितनी कल थीं। अपने लोक नाटकों के जरिये भिखारी ठाकुर महिलाओं की पीड़ा, घर-परिवार में आपसी मतभेद, बेमेल विवाह एवं अन्य सामाजिक कुरीतियों पर धारदार प्रहार करने वाले अनूठे एवं जमीनी कलाकार थे। कम पढ़े-लिखे होने के बाद भी भिखारी ठाकुर, समाज को नई सीख देने में कैसे सबसे अलग और कामयाब नजर आते हैं, प्यारी सुन्दरी के द्वारा विदेशिया में यह प्रस्तुत मार्मिक गीत :-

  ‘‘तोहरे कारनवाँ परानवा दुखित बाटे, दया क के दरसन दे दऽ हो बलमुआँ
काई कइली चूकवा कि छोड़लऽ मुलुकवा, तू कहलऽ ना दिलवा के हलिया बलमुआँ
सांवली सुरतिया सालत बाटे छतिया में एको नाही पतिआ भेजवलऽ बलमुआँ’’

उसी तरह बेमेल विवाह का दंश झेल रही ‘बेटी वियोग’ की नायिका की तकलीफ से भरा उदगार :-

   ‘‘केइ अहसन जादु कइल, पागल तोहार मति भइल,
नेटी काटि के बेटी भसि अवलऽ हो बाबू जी,
रोपिया गिनाइ लिहलऽ, पगहा धराई दिहलऽ,
चेरिया के छेरिया बनवल हो बाबू जी’


गीत काफी है, भिखारी ठाकुर को परखने के लिए और समझने के लिए। नई प्रेरणा, रोमांच, दिल के मर्म को स्पर्श करने वाला कथानक एवं स्वस्थ मनोरंजन से भरपूर साहित्य एवं संस्कृति के महान साधक भिखारी ठाकुर पर केन्द्रित होकर राष्ट्रीय स्तर के आधुनिक कवि डॉ. केदार नाथ सिंह, राष्ट्रीय उपन्यासकार संजीव, स्व. महेश्वराचार्य, देश के मशहूर लेखक स्व. मैनेजर पाण्डेय, बिहार के ख्याति प्राप्त साहित्यकार डॉ. तैयब हुसैन पीड़ित, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री स्व. डॉ. प्रभुनाथ सिंह, लेखक स्व. मनोरंजन प्रसाद सिंह, स्व. अविनाश चन्द्र विद्यार्थी, स्व. मिथलेश कुमारी मिश्र, प्रो. चोथी राम यादव, डॉ. वीरेन्द्र नारायण यादव, डॉ. राम बचन राय, रामदास राही, डॉ. जितेन्द्र वर्मा, बिहार के वरिष्ठ पत्रकार डॉ. लालबाबू यादव, कुमार धीरज एवं डॉ. विद्याभूषण श्रीवास्तव सरीखे सैंकड़ों प्रख्यात साहित्यकार अपनी धारदार कलम चलाकर उनकी खासियत को अपने-अपने अंदाज में प्रस्तुत करते आ रहे हैं।भिखारी ठाकुर के समस्त नाटकों एवं उनकी सम्पूर्ण रचनाओं पर निरंतर शोध करने वाले विद्यार्थियों एवं विद्वानों की एक लम्बी सूची है जो भिखारी ठाकुर के साहित्यिक अवदानों पर लगातार मंथन, विश्लेषण एवं खोज करने में अपने-अपने तरीके से मेहनत कर रहे हैं। समाज के इस साहित्यिक नायक को अनेक दार्शनिकों, महाकवियों एवं हिन्दी-भोजपुरी के महान विद्वानों ने अपने-अपने तरीके से अलग-अलग व्याख्या-विश्लेषण एवं परिभाषित किया है। किसी ने शेक्सपीयर तो किसी ने उन्हें भोजपुरी के भारतेन्दु कहा। किसी ने भोजपुरी के तुलसीदास तो किसी ने भोजपुरी साहित्य के निर्माता बताया। किसी ने राय बहादुर की उपाधि तक दे डाली।

किसी ने उन्हें भोजपुरी सम्राट की संज्ञा दी, तो किसी विद्वान ने उन्हें ‘भोजपुरी का अनगढ़ हीरा’ कहकर सम्बोधित किया। सामाजिक पुनर्जागरण के अग्रदूत भिखारी ठाकुर के लोक साहित्य से लोग खूब वाकिफ हैं। बिहार सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘भिखारी ठाकुर रचनावली’  उनकी सम्पूर्ण कृतियों का अनमोल एवं अनोखा दस्तावेज है, जो आज भी बिहार में काफी लोकप्रिय है। जिसकी सर्वाधिक मांग आज भी बरकरार है।

भिखारी ठाकुर की जन्मतिथि 18 दिसम्बर को प्रत्येक साल जयन्ती समारोह एवं उनकी अवसान तिथि 10 जुलाई को प्रत्येक वर्ष पुण्यतिथि कार्यक्रम का आयोजन बिहार सरकार द्वारा किया जाता रहा है। हजारों-हजार की भीड़ में हजारों बार सामाजिक नाटक प्रस्तुत करने वाले भिखारी ठाकुर को उनके जीवन काल में 1954 ई. एवं 1964 ई. में बिहार के तत्कालीन महामहिम राज्यपाल द्वारा सम्मान पत्र प्रदान किया गया, मगर उससे कहीं अधिक दर्शकों का बेपनाह प्यार ही उनकी अनमोल पूंजी रही |

जिन कारणों से वो आज भी हमारी स्मृति में अमर हैं और अपने साहित्य में बिल्कुल प्राणवाण नजर आते हैं। भिखारी ठाकुर, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर फैले लगभग 30 करोड़ भोजपुरी भाषियों के दिल पर राज करने वाले, मेरी समझ से इकलौते लोक कलाकार हैं, जिनकी आपार लोकप्रियता, उनकी अनेक रचनाओं के जरिए जन-जन तक स्वत: प्रसारित एवं प्रचारित है। तभी तो वे कई गौरवशाली उपाधियों एवं सम्मान से अलंकृत हैं। अपनी लोकप्रियता से खुश होकर ही भिखारी ठाकुर ने कुछ इस भोजपुरी अंदाज में अपनी स्वरचित ‘शायरी बिरहा’  के माध्यम से लोगों के नाम एक पैगाम भी लिखा है :-

‘ ‘कहत भिखारी नाई धरवा कुतुबपुर में भाई, जेकर नाम भइल बाटे बहुत दूर,

केहु जपत बा गाय चरावत, केहु जपत बनिहारी में।

केहु जपत बा बिरहा गाके, चिखना खाके तारी में,

केहु जपत बा आम गाछ पर, केहु जपत बंसवारी में।

पहुंचल नाम बिहार प्रांत भर, राजा – रंक – भिखारी में,

देश-विदेश व्याप गइल बा जगह-जगह नर नारी में’’

आम जन-मानस में रच बस जाने वाले भिखारी ठाकुर जैसे लोक कलाकार बिरले ही होते हैं। साहित्य के इतिहास में वह सम्भवत: पहले लोक कलाकार हैं, जिनके कुशल कला प्रशिक्षण एवं उच्च मार्गदर्शन में पले-पढ़े उनके सह कलाकार 90 वर्षीय रामचन्द्र मांझी, नगरा (सारण) को पिछले साल 2021 में भारत सरकार द्वारा पदमश्री सम्मान से नवाजा गया। भिखारी ठाकुर की जयन्ती एवं पुण्यतिथि प्रत्येक साल उनके गाँव, जिला एवं राज्य के अलावा पूरे देश और दुनिया में विभिन्न सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा पूरी शिद्दत के साथ श्रद्धापूर्वक मनाने की होड़ मची रहती है।अपनी कालजयी रचनाओं के बूते भिखारी ठाकुर भविष्य में भी निसंदेह सदियों तक याद किए जाते रहेंगे, किन्तु जरूरत है कि इस भोजपुरी रत्न एवं गौरवशाली बिहार के इस महान लोक कलाकार को भारत सरकार द्वारा प्रदत्त सर्वोच्च सम्मान पदम विभूषण एवं भारत रत्न जैसे शिखर सम्मान से मरणोपरान्त सम्मानित करने की, ताकि भोजपुरी प्रेमियों, उनके परिजनों, कला प्रेमियों तथा आम जनमानस का दिल इस ऐतिहासिक घोषणा से आह्लादित हो सके, क्योंकि –

‘‘लोगों को भाता है यह अमर चितेरा, कला जगत का चमकता सितारा

सिसकन नारियों का था सुनने वाला, धन्य है भिखारी गौरव है हमारा।’’