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नारी उद्यमिता का विकास

गिन्नी जैन

राज्य प्रमुख छत्तीसगढ़, फिनटेकडू प्राइवेट लिमिटेड

ईश्वर की बनाई हुई दोनों ही रचना समान है, चाहे वह पुरुष हो या नारी। प्राचीन काल में नारी को शक्ति स्वरूपा माना गया है, जिस बात की पुष्टि स्वयं देवों तथा महर्षि द्वारा की गई है। चाहे शास्त्रार्थ का क्षेत्र हो या अस्त्र-शस्त्र की बातें, हर क्षेत्र में नारी का अधिकार था। यहां तक की शासन करने से लेकर स्वयं का वर चुनने में भी उसकी ही भागीदारी थी। हर कलाओं में निपुण, चाहे वह अर्थशास्त्र हो, कला, धर्मशास्त्र या कूटनीति सभी क्षेत्र में स्त्री का वर्चस्व स्थापित था। मगर समय अंतराल में यह बदलाव देखने को मिला की पुरुष वर्ग महिलाओं पर अंकुश लगाना, शिक्षा में रोक लगाना तथा मर्यादा की बेड़ियों में बांध उसकी असीमित बढ़ने को नष्ट करने का निरंतर प्रयास करने लगा। आज यह भी स्पष्ट है कि नारी पुरुष प्रधान समाज की उस जाल में फंस कर स्वयं को कमजोर, असहाय समझ चुकी है ना केवल अपनी बल्कि, अपनी हर नव पीढ़ी चाहे वह बेटी हो या बहू उनको भी संस्कारों की दुहाई देकर उन्हीं बेड़ियों में उनकी आजाद मानसिकता को भी कैद कर रही है। और स्वयं की तथा दूसरी स्त्रियों की दुश्मन बन बैठी है। जिससे वह स्वयं की ताकत और पहचान खो बैठी है। आज समाज का कुछ वर्ग महिलाओं को इस मानसिक संकट से उबारने के लिए आगे आया है। कई नीतियां और योजनाएं भी बनाई गई हैं, इनके उत्थान के लिए मगर कुंठित मानसिकता को तोड़ पाना आसान नहीं होता।

वैसे दायित्व की और कर्तव्य की दृष्टि से देखा जाए तो पुरुष से ज्यादा महिलाओं का दायित्व कर्तव्य समाज में परिवार में ज्यादा है। अपने परिवार को, रिश्तेदार को, बच्चों को शिक्षा संस्कार देने में जो नारी का योगदान है, वह पुरुष का कभी नहीं हो सकता।  पुरुष की भूमिका 75% केवल पैसा कमाने में सीमित है जबकि नारी का दायित्व असीमित होता है, जो अपने पीहर का संस्कार, ससुराल का संस्कार, दो परिवारों का संस्कार, सारे रिश्ते और जिम्मेदारियों को अनवरत रूप से बिना किसी स्वार्थ या धन लालसा की इच्छा के बगैर अपने कर्तव्य का निर्वाह करती रहती है, फिर भी पुरुष प्रधान समाज में सबसे ज्यादा औरतों को ही दबाया जाता है। जबकि आज प्रत्यक्ष हो गया है कि नारी आज किसी भी क्षेत्र में कार्य करती है तो उसकी कार्यविधि पुरुष से अधिक अच्छी और प्रभावशील है, क्योंकि वह सहजता से गंभीरता से सतर्कता से काम करके आगे निकल जाती है।   इसके अनेक उदाहरण विश्व की अनेक महिलाओं द्वारा सिद्ध हो चुका है चाहे वह शिक्षा, कॉपोर्रेट, प्रशासनिक, उद्यमिता, खेल कोई भी क्षेत्र हो उसने अपना वर्चस्व स्थापित किया है।   आज विश्व की 15 प्रधानमंत्री स्त्री ही है, राष्ट्रपति जैसे पद पर भी स्त्रियों ने अपनी दस्तक दे दी है। जबकि उनका लालन-पालन अभाव में विषम परिस्थितियों में और कमजोर मानसिकता के वातावरण में हुआ है। विषम परिस्थितियों में भी रहकर जब वह इतनी उच्च पदों पर पहुंच सकती हैं तो यदि अनुकूल परिस्थिति उन्हें प्रदान कर दी जाए तो जरा सोचिए कि फिर से एक बार नारी को देवी स्वरूपा कहलाने से कोई नहीं रोक पाएगा। प्रारंभ से ही बच्चियों के दिमाग में यह बात भर दी जाती है कि, उसका प्रमुख दायित्व चौका चूल्हा संभालना है, बच्चों को सवारना और घर की और घर के सदस्यों की देखरेख करनी है। जबकि यह कहीं भी नहीं लिखा कि घर का दायित्व सिर्फ स्त्रियों का है। इसलिए समाज में अब इस मानसिकता से बेटियों को बड़ा करना होगा की उसको परिवार और देश के विकास में भागीदारी बनना है, जिससे वह राष्ट्र नवनिर्माण में अपना योगदान दे सकें। ना केवल बेटी को बल्कि यदि कुंठित मानसिकता को तोड़ना है तो घर के बेटों को भी बेटियों की तरह गृह कार्य में दक्ष बनाना होगा तथा घर के सभी कार्यों में उनका योगदान भी वही  होना चाहिए जो एक बेटी का होता है।  तभी बेटी और बेटे में इस अंतर को भेदा जा सकेगा। उससे 100% सक्षम बनाने के लिए समान अधिकार की मदद देने की बजाय साथ की देने की नीति और व्यवस्था में कार्य करना चाहिए। स्वयं निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना होगा हर बात पर वह यदि माता पिता या भाई के निर्णय पर आश्रित होगी तो वही मानसिकता से बंध कर वह सास ससुर और पति के निर्णय पर भी चल पाएगी। जिसका आज हमें प्रत्यक्ष उदाहरण एसपी (सरपंच पति) के रूप में देखने को मिलता है जहां सरपंच पत्नी है और कार्यभार पति संभाल रहे हैं। यदि हमें उसमें उद्यमिता के गुण विकसित करना है तो उसमें निर्णय लेने की क्षमता, आर्थिक आजादी स्वयं के लिए सजग सचेत जैसे गुणों का विकास कराना होगा। आज यह सिद्ध हो चुका है कि दोनों ही पैसा कमा सकते हैं तो फिर क्यों ना समाज के उत्थान के लिए राष्ट्र की आर्थिक प्रगति के लिए दोनों ही कंधे से कंधा मिलाकर चले। जो प्रगति 10 सालों में संभव है यदि दोनों वर्गों के साथ काम करने से वह आधे से भी कम समय में पूर्ण हो जाए तो देश को तरक्की के नए अवसर मिलेंगे और जब नारी आर्थिक रूप से सफल होगी, उसका समाज में, परिवार में सम्मान,उसके प्रति सबका सोचने का नजरिया, सभी चीजों में परिवर्तन स्वय ही आ जाएगा। इसलिए बेटी को हर हाल में उद्यमी बनाकर रोजगार सृजन करता बनाना ही होगा जिससे उसे वह सम्मान मिल सके जिसकी वह अधिकारी है।