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अंतरिक्ष का सैन्यीकरण

डॉ. दीपक कोहली

उत्तर प्रदेश सचिवालय में संयुक्त सचिव के पद पर कार्यरत। आकाशवाणी, लखनऊ से प्रसारित विभिन्न कार्यक्रमों में 100 से अधिक विज्ञान वार्तायें प्रसारित हो चुकी हैं। लेखन- ‘विज्ञान की नई दिशाएं’, ‘विज्ञान के दर्पण में मानव जीवन’, ‘विज्ञान -विमर्श’, विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 1000 से अधिक वैज्ञानिक लेख /शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं।

अंतरिक्ष युद्ध: अंतरिक्ष युद्ध वह युद्ध है जो बाह्य अंतरिक्ष में यानी वायुमंडल के बाहर लड़ा जाएगा। इसमें शामिल हैं :-
– भूमि-से-अंतरिक्ष युद्ध (Ground- to- Space Ware) पृथ्वी से उपग्रहों पर हमला करना।
– अंतरिक्ष-से-अंतरिक्ष युद्ध ( Space-to-Ground- Warfore ) : उपग्रहों द्वारा उपग्रहों पर हमला।

– हालाँकि इसमें तकनीकी रूप से अंतरिक्ष-से-भूमि युद्ध ( Space-to-Ground- Warfore ) शामिल नहीं है, जहाँ कक्ष में स्थापित पिंड पृथ्वी पर हमले करेंगे।

          सैन्यीकरण का वैश्विक परिदृश्य :
फ्राँस: फ्राँस ने वर्ष 2021 में अपना पहला अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास ‘एस्टरएक्स’ आयोजित किया।
चीन: पृथ्वी की निचली कक्षा में अपने तियांगोंग अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण करने के साथ ही चीन वर्ष 2024 तक सीस-लूनर स्पेस (भू-समकालिक कक्षा से परे क्षेत्र) में चंद्रमा पर अपनी स्थायी उपस्थिति स्थापित करने की उम्मीद कर रहा है।
           संयुक्त राज्य अमेरिका: 

अमेरिका ने अपनी युद्ध क्षमताओं को प्रबल करने के लिये ‘स्पेस फोर्स’ नामक नया सैन्य विभाग गठित किया है।

             बाह्य अंतरिक्ष संधि 1967
बाह्य अंतरिक्ष संधि, जिसे औपचारिक रूप से ‘चंद्रमा और अन्य आकाशीय निकायों सहित बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग में राज्यों की गतिविधियों को नियंत्रित करने वाले सिद्धांतों पर संधि’ के रूप में जाना जाता है, एक संधि है जिसने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष कानून की नींव रखी है। भारत भी बाह्य अंतरिक्ष संधि का एक पक्षकार है। यह संधि विश्व के देशों को परमाणु हथियार या सामूहिक विनाश के किसी अन्य हथियार को पृथ्वी के चारों ओर की कक्षा में तैनात करने से निषिद्ध करती है। इसके अलावा यह चंद्रमा जैसे अन्य आकाशीय पिंडों या बाह्य अंतरिक्ष में कहीं भी ऐसे हथियारों की तैनाती और उपयोग को प्रतिबंधित करती है। संधि के सभी पक्षकार अंतरिक्ष के केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये अनन्य उपयोग पर परस्पर सहमति रखते हैं।

भारत का रुख:
वर्तमान परिदृश्यों में बदलती ध्रुवीयता :- भारत में ऐतिहासिक रूप से अंतरिक्ष इसकी असैन्य अंतरिक्ष एजेंसी ‘भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन’ के एकमात्र क्षेत्राधिकार के अंदर रहा है। भारत ने अंतरिक्ष सुरक्षा के प्रति सदैव शांतिवादी दृष्टिकोण बनाए रखा है और अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण एवं सैन्यीकरण का विरोध करता है। पिछले एक दशक से बाह्य अंतरिक्ष के प्रति भारत का दृष्टिकोण बदल रहा है और अब यह राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं से अधिक प्रेरित हो रहा है। नैतिकता-प्रेरित नीति के अनुपालन के बजाय भारत अब बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। हालाँकि भारत ने अभी भी नि:शस्त्रीकरण की अपनी नीति का त्याग नहीं किया है, लेकिन उसने अनुभव किया है कि उसकी निष्क्रियता और बाह्य अंतरिक्ष में समकालीन प्रगति की अनदेखी उसे अपनी अंतरिक्ष आस्ति पर कई खतरों के लिये असुरक्षित या भेद्य बना सकती है।
     हाल का परिदृश्य:
चीनी खतरों पर नजर रखते हुए हाल ही में भारत ने अपने पहले सिमुलेटेड स्पेस वारफेयर अभ्यास ‘इंडस्पेसएक्स’ का आयोजन किया और एक उपग्रह-प्रतिरोधी हथियार (मिशन शक्ति) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। इसके साथ ही ‘त्रि-सेवा रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी’ की स्थापना के साथ सेना को स्थायी रूप से असैन्य अंतरिक्ष की छाया से दूर कर दिया गया है। भारत ने रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी की भी स्थापना की है जो रक्षा अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी के लिये अंतरिक्ष आधारित हथियार विकसित करने में मदद करेगी। अंतरिक्ष को भी एक सैन्य डोमेन के रूप में उतना ही महत्त्व प्रदान किया गया है जितना कि थल, जल, वायु और साइबर क्षेत्र को प्राप्त है। वर्ष 2020 में भारत सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी अभिकर्त्ता को प्रोत्साहित करने के लिये अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत एक स्वतंत्र नोडल एजेंसी ‘इन- स्पेस’ के निर्माण को भी मंजूरी प्रदान की।
     प्रमुख चुनौतियाँ
चीन का बढ़ता प्रभाव :- चीनी अंतरिक्ष उद्योग अन्य देशों की तुलना में अधिक तेजी से विकसित हो रहा है। इसने अपने स्वयं के नेविगेशन सिस्टम ‘बी डाउ’के सफल लॉन्च के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में एक मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। इस बात की प्रबल संभावना है कि चीन के बेल्ट रोड इनिशिएटिव के भागीदार देश चीनी अंतरिक्ष क्षेत्र में योगदान देंगे या इसमें शामिल होंगे, जिससे चीन की वैश्विक स्थिति और मजबूत होगी।
अंतरिक्ष मलबों में वृद्धि :- बाह्य अंतरिक्ष अभियानों में वृद्धि से अंतरिक्ष का मलबा भी बढ़ रहा है। यह भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों को प्रभावित कर सकता है क्योंकि जिस उच्च गति पर पिंड पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं, अंतरिक्ष मलबे के एक छोटे से टुकड़े के साथ भी टकराव एक अंतरिक्ष यान को नुकसान पहुँचा सकता है। अंतरिक्ष के मलबे ओजोन रिक्तीकरण या क्षय का भी कारण बन सकते हैं।
जासूसी-आधारित उपग्रहों की वृद्धि:-अंतरिक्ष प्रमुख शक्तियों के बीच प्रभुत्व के लिये युद्ध का मैदान बनता जा रहा है। अंतरिक्ष में तैनात उपग्रहों का लगभग पाँचवाँ हिस्सा सेना से संबंधित है और जिनका उपयोग जासूसी के लिये किया जाता है। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा हेतु एक गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
वैश्विक भरोसे में कमी का विस्तार:- बाह्य अंतरिक्ष के शस्त्रीकरण के लिये उभरती हथियारों की दौड़ दुनिया भर में अनिश्चितता, संदेह, प्रतिस्पर्द्धा और आक्रामकता का माहौल पैदा कर सकती है जिससे युद्ध भड़क सकता है। यह वैज्ञानिक अन्वेषणों और संचार सेवाओं से संलग्न उपग्रहों के साथ उपग्रहों की पूरी श्रृंखला को भी जोखिम में डाल देगा।
ऑर्बिटल स्लॉट पर एकाधिकार बढ़ने की संभावना:- कोई भी देश जो एक सैन्य उपग्रह तैनात करता है, वह अपने ऑर्बिटल स्लॉट और रेडियो फ्रीक्वेंसी का खुलासा करने से हिचकिचाता है, क्योंकि उसे भय होता है कि इस तरह की जानकारी का इस्तेमाल किसी विरोधी/शत्रु द्वारा उपग्रह को ट्रैक करने के लिये किया जा सकता है, जिसके बाद वे इस पर हमला कर सकते हैं या इसके सिग्नल को जाम कर सकते हैं। इस प्रकार इस बात की प्रबल संभावना है कि भविष्य में ऑर्बिटल स्लॉट एकाधिकार के शिकार होंगे।
बाह्य अंतरिक्ष का बढ़ता व्यावसायीकरण :-
इंटरनेट सेवाओं के ट्रांसमिशन और अंतरिक्ष पर्यटन (जेफ बेजोस) के लिये निजी उपग्रह अभियानों के माध्यम से बाह्य अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण बढ़ रहा है। ‘एक्सिओम स्पेस’ ने ‘स्पेसएक्स’ के क्रू ड्रैगन कैप्सूल के माध्यम से वर्ष 2022 में अंतरिक्ष में अपना पहला पूरी तरह से निजी वाणिज्यिक मिशन लॉन्च किया।

                आगे की राह
अंतरिक्ष युद्ध के लिये क्षमता निर्माण:- अंतरिक्ष के चौथे युद्ध क्षेत्र में परिणत होते जाने के साथ भारत को पर्याप्त अनुसंधान और विकास के माध्यम से अपनी अंतरिक्ष क्षमताओं को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। देश की शांति को भंग करने का उद्देश्य रखने वाले किसी भी मिसाइल हमले पर सक्षम प्रतिक्रिया दे सकने के लिये ‘काली’ को डिजाइन किया जा रहा है। इसके साथ ही यह उपयुक्त समय है कि भारत-अमेरिका संयुक्त अंतरिक्ष सैन्य अभ्यास का आयोजन किया जाए जो भारत की रक्षा साझेदारी को एक नई कक्षा में ले जाएगा।भारत और अमेरिका अक्तूबर 2022 में औली, उत्तराखंड में ‘युद्ध अभ्यास’ के 18वें संस्करण में भाग लिया 

अंतरिक्ष अन्वेषण के लिये वैश्विक बाजार को आकर्षित करना :- लागत-प्रतिस्पर्द्धी विश्वस्तरीय उत्पादों और सेवाओं को दोहराने के लिये भारत स्थानीय बाजार स्थितियों जैसे – प्रतिभा पूल, निम्न श्रम लागत, इंजीनियरिंग सेवा आदि का लाभ उठा सकता है। सर्वाधिक लागत-प्रभावी और पहले प्रयास में ही सफलता पाने वाले ‘मंगलयान’ अभियान जैसी उपलब्धियाँ एक ब्रांड-निर्माण अभ्यास के रूप में कार्य कर सकती हैं जो वैश्विक आपूर्ति शृंखला में भारत के एकीकरण में मदद करेगी।
अंतरिक्ष परिसंपत्ति सुरक्षा अवसंरचना का विकास :- भारत को अपनी अंतरिक्ष परिसंपत्तियों, मलबे और अंतरिक्ष यान सहित, की प्रभावी ढंग से रक्षा करने के लिये विश्वसनीय और सटीक ट्रैकिंग क्षमताओं की आवश्यकता है। इसलिये यह आवश्यक है कि इस महत्त्वपूर्ण क्षमता को स्वदेशी रूप से विकसित किया जाए, क्योंकि सटीक ट्रैकिंग लगभग हर कल्पनीय अंतरिक्ष कार्रवाई का एक आवश्यक अंग होती है। भारतीय उपग्रहों के लिये मलबे और अन्य खतरों का पता लगाने के लिये अंतरिक्ष में एक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली के रूप में प्रोजेक्ट ‘नेत्रा’ इस दिशा में एक सराहनीय कदम है।
‘ग्लोबल कॉमन’ का ‘ग्लोबल गवर्नेंस’ :- बाह्य अंतरिक्ष एक साझा विरासत है और इसकी परिसंपत्तियों पर प्रत्येक मानव का एक समान अधिकार है। आधुनिक वैश्विक अर्थव्यवस्थाएँ अंतरिक्ष संपत्तियों पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम, टेलीकॉम नेटवर्क और पूर्व-चेतावनी प्रणाली एवं मौसम पूवार्नुमान दुनिया भर में शासन के लिये महत्त्वपूर्ण उपकरण है। एक अनियंत्रित सैन्यीकरण इन सुविधाओं को विनष्ट कर देगा, इसलिये वैश्विक बहुपक्षीय मंचों पर इस मुद्दे की निगरानी करना और हथियारों की दौड़ को रोकने तथा मौजूदा प्रणाली में मौजूद किसी भी कानूनी अंतराल को भरने के लिये कानूनी रूप से बाध्यकारी साधनों को विकसित करना महत्त्वपूर्ण है।’’