गौरवशाली भारत

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घर कौन सा घर हमारा है..?

प्रो. वीना शर्मा

निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा

घर चारदीवारी से घिरा और कच्ची पक्की छत के साथ एक अहाता भर नहीं है, यह एक प्यारा सा अहसास है कि हां मेरा भी घर है। यह खरीदा हुआ या उपहार में प्राप्त कोई प्लॉट या भूखंड भी नहीं जिसे मकान की संज्ञा दी जाती है। आप जिंदगी में पैसा कमा-कमा के, पेट काट कर आधे पेट भूखे सो कर,बचत कर करा के मकान भले खरीद लो, पर उसे घर बना पाना सबका सौभाग्य नहीं हुआ करता। घर को याद करते रमेश दिविक की कविता की पंक्तियां दिमाग में गोल-गोल घूमने लगती हैं। पापा कैसा लगता होगा उनको जिनका नहीं होता है घर। सच बड़े किस्मत वाले होते हैं वे जिनके पैरों के नीचे जमीन और सिर पर छत होती है। जब बाहर से थके हारे आते हैं तो घर बड़ी शिद्दत से आपका इंतजार करता है, आपको दुलराता है, आप पर स्नेह की वर्षा करता है, आप को थपकी दे-दे सुलाता है, आप को विश्रांति देता है। घर यानि एक ऐसी जगह जो आपकी सारी थकान हर लेता है, आपको सुकून देता है, आप तरोताजा हो जाते हैं, आप चार्ज हो जाते हैं और अगले दिन फिर काम पर निकल पड़ते हैं। घर आपको भावनात्मक सहारा देता है। जब आप थके और परेशान होते हैं, आपकी सारी पीड़ा हर आपको ऊर्जा से भर देता है। दुनिया में सबके पास एक घर होता है फिर चाहे वह कच्चा हो पक्का हो, एक कमरे का हो दस कमरे का हो, एक मंजिला हो या बहुमंजिला हो,सारी सुविधाओं से लैस हो या जगह-जगह थेगड़ी और पैबंद के साथ हो, फाइव स्टार जैसा हो या झोपड़ी हो, खाने को छप्पन भोग हो या दो टाइम की रोटी के भी लाले हों पर घर होना जरुरी है। हर बालक जन्म लेते घर में ही पलता बढ़ा होता है। उसके घर का एक स्थाई पता होता है, जिसे वह स्कूल और कार्यस्थल पर रजिस्टर में चस्पा कर देता है। यह पता उसकी स्थाई पहचान है। इसी पर उसकी चिट्ठी पत्री, संदेश, सामान आता जाता रहता है। वह भले ही कितने घर बदले पर घर होना जरुरी है। इसके बिना नहीं चलता।

मित्रो, घर तो सबको चाहिए फिर चाहे पुरुष हो स्त्री हो मानव हो मानवेतर हो, हर जीवधारी के लिए घर आवश्यक है, इसलिए पक्षियों का घोंसला, जानवरों का अस्तबल और बाड़ा, चींटी, केंचुआ और सांप के बिल और शेर की गुफा होती ही है। घर पर उनका एकाधिकार होता है। यदि कोई उनके घर में जबरदस्ती घुसने की कोशिश करे तो उसे लतिया धकिया के बाहर कर दिया जाता है। घर है, यह भाव ही सुरक्षा और आश्वासन देता है। जब दुनिया में सबके घर होते हैं, घर पूरी तरह उनके न भी हों पर एक निश्चित कोना उनका जरुर होता है। पर आधी आबादी का सच ये नहीं है। वे एक घर में जन्म तो लेती अवश्य है पर जैसे-जैसे बड़ी होती जाती है उन्हें कह-कह के ये अहसास दिला दिया जाता है कि तुम्हें दूसरे घर जाना है। इस घर की देहरी से तुम्हारी विदाई होनी निश्चित है। तुम पराई अमानत हो। हम तुम्हें पाल पोस कर, पढ़ा लिखा कर, संस्कारित कर इसलिए तैयार कर रहे हैं जिससे तुम किसी दूसरे घर को आबाद कर सको। तुम तो बाबुल के आंगन की चिड़िया हो जिसे उड़ना ही उड़ना है। किसी अन्य डाल पर बसेरा बनाना है फिर चाहे तुम जितना मर्जी रोती गिड़गिड़ाती रहो कि काहे को ब्याही विदेश रे सुन बाबुल मेरे, हम तो बबुल तेरे आंगन की चिड़िया चुगत-चुगत उड़ जाएं रे सुन बाबुल मेरे। जितना मर्जी रोते गाते रहना कि मेरे जाने के बाद तेरा आंगन सूना हो जायेगा, बाग के झूले पर कौन झूलेगा, जब तुम बाजार से थके हारे आओगे तुम्हें पानी का गिलास कौन देगा, कौन तुम्हारे समान को तहा कर रखेगा, कौन तुम्हें लाड करेगा, उनके पास हर बात का जबाब होगा कि मेरे आंगन बहू छमछम पायल खनकाती आयेगी और बाग में नाती पोती झूलेगी, तू चिन्ता मत कर लाडो, लाडो घर जा अपने। और हम लाडो अपने उस बाबुल मइयो के घर की देहरी से विदा कर एक नए घर भेज दी जाती हैं जिसे ससुराल कहा जाता है। बचपन से हमें इस घर का सपना दिखाया जाता है कि ये घर प्रशिक्षण शाला भले हो पर तुम्हारा असली घर वही है। यहां जिस-जिस काम की रोक है, वहां सब कर सकोगी क्योंकि वही तुम्हारा असली घर होगा। इस घर में अपना बचपन, कैशोर्य छोड़ हम युवा होती बहन बेटियां पुत्रियां नए घर में प्रवेश करती हैं। इस आशा और विश्वास के साथ कि अब हम अपने असली घर आ गईं। इसी घर में भेजने के लिए बबुल कितने परेशान होते थे कि बिटिया के लिए कब घर वर मिलेगा, कब उसे डोली में बिठा हम विदा कर निश्चिंत हो पाएंगे कि बेटी के हाथ पीले कर दिए, अब वह अपने घर की हुईं, हम गंगा स्नान कर मुक्त हुए। पर माता पिता कब मुक्त हो पाते हैं? बेटियों को लेकर इनकी चिंताएं असीमित होती हैं होनी भी चाहिए आखिर वे माता पिता जो हैं, उन्होंने अपना कलेजा, दिल का टुकड़ा निकाल के जो दिया है, ढेरो कर्ज में डूब कर भी वे अपनी बेटियों का सुख सकून चाहते हैं। पिता बहुत खुश होते हैं चलो बेटी अपने घर विदा हुई, हमारा दायित्व पूरा हुआ। जिस घर के सपने बचपन से बेटियों के मन में बोये जाते हैं, उन्हें रोज-रोज याद दिलाया जाता है कि तुम तो पराई अमानत हो, जिस दिन ब्याही जाओगी तुम्हारे कुल गोत्र सब बदल जायेंगे, तुम्हारा नया जन्म होगा, एक नई जिंदगी होगी, धीरे-धीरे तुम्हारी जड़े इस घर से उखड़ कर वहीं जम जाएंगी, तब तुम यहां आते अपनी अनेक व्यस्तताएं गिनाओगी कि अभी नहीं आ सकती कि घर में मां अस्वस्थ है या इनको फुरसत नहीं है या बच्चों की परीक्षाएं चल रही हैं इस टाइप तुम्हारी बातें हमें सुकून ही पहुंचाएगी कि चलो बिटिया अपने घर परिवार में सेटल हो गई है। पर बाबुल के घर को छोड़ जिस घर में हम बेटियां ब्याही जाती हैं, जिसे हमारा ससुराल कहा जाता है वहां भी तो हम पराई ही कहलाती हैं, दूसरे घर से आई ही कहलाती हैं। सच ही एक घर में जिस दूसरे घर की अमानत कही जाती हैं, वहां भी उन्हें अपना घर कहां मिलता है। वह घर तो पहले से दूसरे का है जो वहां बरसों से रह रहा है, वो घर उसका ही है, वहां आप रहने गई है, एडजस्ट आपको होना है जो भी जैसा भी ठौर आपको मिले। किसी नई जगह जाकर अपना स्पेस बनाना, सबका दिल जीत लेना, सबको अपने सेवा भाव से खुश किए रखना, अपने पहले घर की इज्जत को बनाए रखना सब इतना आसान कहां होता है, चौबीस घंटे तो सिर पर तलवार लटकी रहती है कि कहीं कुछ गलत न हो जाए, अब लाख सावधानी बरतें, कुछ न कुछ चूक तो हो ही जाती है, उस छोटी सी भूल चूक को कैसे बड़ा करके धो-धो के सुनाया जाता है, लपेटे में उस घर के लोग भी ले लिए जाते हैं, आखिर उपज तो उसी घर की हो, संस्कार तो वहीं से ले कर आई हो। तब मन हिचकी भर-भर के रोता है कि बाबुल तुम तो कहते थे लाडो वो घर तेरा है पर यहां तो सब यही कहते हैं ये घर हमारा है। तो फिर आखिर मेरा घर है कौन सा। उस में पराई अमानत थे और इस घर में दूसरे घर से आई कहे जाते हैं। ये बेटियां बड़ी होशियार हो गईं हैं अब। दोनों घर को अपना बनाए रखती हैं बल्कि उन दोनों घर के साथ एक नया घर और बना लेती हैं, रच गढ़ लेती हैं जिसे वे हमारा और कभी-कभी मेरा अपना घर कहती हैं जहां वे खुल के सांस ले पाती हैं। अब उन्हें एक कोने की दरकार नहीं, पूरा का पूरा घर उनका होता है। वे बराबरी का आधिकार मांगती है और बिना करे नहीं मांगती। खूब मेहनत करती हैं। दोनों कुलों को सार्थक करती हैं। उन्हें याद रहता है कि पुत्री पवित्र कुल दोऊ। वे बड़े से बड़े पद पर आसीन भले हो गई हों पर उनमें से कितना प्रतिशत ऐसा है जिनके पास कहने के लिए घर नहीं तो उस विशाल लम्बे चौड़े घर में एक सुविधा जनक स्पेस हो जिसमें वे स्वेच्छा से उठ बैठ सकती हों, अपने को सुरक्षित महसूसती हूं, अपने परिवारी जन और इष्ट मित्रो के साथ बैठ सकती हों, उस स्पेस में उन्हे अपनत्व मिलता हो। बहुत जरुरी है ये बहस कि उनका घर कौन सा है। एक तरफ उन्हें होम मेकर कहा जाता है, गृह निर्मात्री कहा जाता है, बिन घरनी घर भूत का डेरा कहा जाता है, गृहिणी गृहम् उच्यते कहा जाता है, किसी पुरुष की सफलता के पीछे उसके महत्व को रेखांकित किया जाता है और दूसरी तरफ उसका कोई घर ही निश्चित नहीं होता। एक में पराई अमानत होती हैं तो दूसरे घर में दूसरे घर से आई कही जाती हैं, जिससे निकालने की धमकी ही नहीं दी जाती बल्कि उसे बाकायदा निकाल ही दिया जाता है कि यह घर मेरा है और इसमें रहना है तो मेरी शर्तो के अनुसार रहना होगा नहीं तो बाहर का रास्ता देखो, जिस घर से विदा की गई हो वहां अपना सामान बांध के चली जाओ। अरे वहीं रहना जाना होता तो तुम्हारे ताने उलाहने क्यों सुनते भला। तो एक्स वाई जेड तुम जो भी हो, कान खोल के सुन लो कि ये घर तुम्हारा अकेले का नहीं है, इसमें सब कुछ साझा है। तो जितना तुम्हारा है उतना दूसरे का भी। तो निकलना ही होगा तो तुम निकलोगे क्योंकि मकान तुमने भले बना लिया हो, घर तो इसे हम स्त्रियों ने ही बनाया है, चूल्हा तो हमीं फूंकते हैं जब जठराग्नि शांत होती हैं, स्नेह हम भी बिखेरते हैं तभी स्निग्धता आती है, प्यार के बंधन से रिश्ते की दीवारों का फेविकोल हमीं बनते हैं तो तुम हमारे हो तो घर भी हमारा है। वो जमाने लद गए जब हम दूसरों के घर में अपना एक कोना तलाशते थे, आज ये पूरा जहां हमारा है और ये किसी ने भीख या दान में नहीं दिया, अपनी शक्ति से अर्जित किया है, हम स्वयं पर खुद ही गर्वित हो लेते हैं, कोई और हो न हो। अपने में भरे पूरे होना भी उपलब्धि होती है। साथ आओ मित्र स्वागत है, हमेशा-हमेशा के लिए तुम्हारे हैं साथी भाव से, स्वामी बनोगे तो हम दासी ही रह जाएंगी न। तो आओ चलें साथी बनें, एक दूसरे के साथ बने रहें। घर साझा हुए करते हैं, किसी अकेले की संपत्ति नहीं। ये मेरा या तुम्हारा घर नहीं, ये हमारा घर है प्यारा सा घर।