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यक्ष प्रश्न - रोजगार कैसे पैदा होगा

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रवि शंकर राय

लेखक. प्रख्यात उद्यमी होने के साथ ही समाजिक कार्यों और लेखन के क्षेत्र में भी सक्रीय है। स्वतंत्र टिप्पणीकार के रूप में राजनीति और समाज से जुड़े विभिन्न ज्वलंत, सम-सामाजिक विषयों पर लेखनरत रहते है।

महाभारत में एक प्रसंग है, जब पाण्डवों का वनवास और अज्ञातवास चल रहा था तो एक दिन युधिष्ठिर ने अपने छोटे भाई नकुल को पानी लाने के लिए भेजा। काफी समय ढूँढने के बाद एक सरोवर मिला। नकुल थक गए थे और प्यास भी लगी थी इसलिए पानी पीने के लिए सरोवर में गए। उस सरोवर में एक यक्ष रहते थे और जैसे ही नकुल पानी पीने गए तभी यक्ष ने बोला की पहले मेरे सवालों का जवाब दो फिर पानी पी सकते हो। नकुल ने यक्ष की बातों को अनसुना कर पानी पी लिया और वहीं सरोवर के किनारे मर गए। नकुल के बहुत देर तक वापिस ना आने के कारण युधिष्ठिर ने सहदेव को भेजा उसके बाद अर्जुन और भीम को भेजा। चारों भाई यक्ष की बातों को अनसुना कर पानी पीने के कारण मौत के गाल में समा गए।

अपने चारों भाइयों के वापिस ना आने के कारण युधिष्ठिर भी चिंतित होकर ढूँढने निकले और सरोवर के पास पहुँचकर पानी पीने की कोशिश किए तो यक्ष ने फिर बोला की पहले मेरे सवालों का जवाब दो। फिर यक्ष ने बहुत सारे सवाल किए और युधिष्ठिर ने उनका जवाब दिया। यक्ष ने खुश होकर युधिष्ठिर से कोई वरदान माँगने को कहा। युधिष्ठिर ने बोला की वो भाइयों को ढूँढ रहे हैं फिर यक्ष ने उनके भाइयों को जीवित कर दिया।

उसी जमाने से जब किसी कठिन सवाल का जवाब नहीं मिलता है तो उसको यक्ष प्रश्न बोला जाता है। वर्तमान समय में रोजगार कैसे पैदा होगा ये सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है।

बेरोजगारी देश की सबसे गम्भीर समस्या है। देश के लगभग 70-80  प्रतिशत लोग इस बात से सहमत हैं। थोड़े-बहुत ऐसे लोग भी होंगे जिनके लिए कुछ अलग-अलग समस्याएँ होंगी, लेकिन बहुतायत के लिए बेरोजगारी ही सबसे बड़ी समस्या है।

मैं अपने 25 सालों के शोध के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि रोजगार मिल गया तो लोग अपनी समस्याएँ खुद सुलझा लेंगे। रोजगार मिल जाएगा तो लोग रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक भेदभाव जैसी अपनी सारी समस्याएँ खुद हल कर लेंगे।

पिछले 70 सालों से रोजगार, देश की सबसे बड़ी जरूरत होने के बाद भी लगातार घटता जा रहा। रोजगार कैसे पैदा होगा? इस यक्ष प्रश्न का जवाब, नीति-निर्माता और अर्थशास्त्री पिछले 70 सालों में ढूँढ नहीं पाए। रोजगार कैसे पैदा होगा? इस विषय पर 25 सालों से लगातार शोध करने से जो निष्कर्ष निकला वो बहुत ही रोमांचक है।

  1. अर्थशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं के हिसाब से जब देश में उद्योग-धन्धे बढ़ेंगे तो रोजगार पैदा होगा।
  2. उद्योगपतियों के हिसाब से जब बैंक, कम ब्याज दरों पर लोन देंगे और सरकार, उद्योग-धन्धों के अनुकूल नीतियाँ बनाएगी तो उद्योग बढ़ेगा और रोजगार पैदा होगा।
  3. नौकरी-पेशा और मध्यम वर्ग सोचता है कि आयकर और अन्य करों में कमी आएगी तो उनकी खर्च करने की शक्ति बढ़ेगी और रोजगार पैदा होगा।
  4. बेरोजगार और हर तरफ से निराश युवा सोचता है कि जब वो अपनी पत्नी के साथ समय बिताएगा तो 9 महीने में रोजगार पैदा होगा।

इन चारों में सबसे अधिक सत्य के करीब बेरोजगार की सोच है बाकी सभी का सत्यता से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। सच मानिये मैं कोई व्यंग्य या कटाक्ष नहीं कर रहा हूँ और अपने शोध के आधार पर बोल रहा हूँ। इस बात को मैं उदाहरण के साथ समझाने की कोशिश करूँगा। अर्थशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं की बात में कोई दम नहीं हैं।

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आप देश के 10 सबसे बड़े औद्योगिक घरानों का अध्ययन कर लीजिए, पिछले 20 सालों में उनका उद्योग कम से कम 100 गुना बढ़ गया होगा। 20 साल पहले कितना रोजगार उनके पास था और आज कितना है, बस इसी से पता चल जाएगी असलियत। उद्योग 100 गुना बढ़ने के बाद भी रोजगार या तो उतना ही होगा या घट गया होगा।

उद्योगपतियों के हिसाब में भी कोई दम नहीं है। बैंकों ने दिल खोल कर पैसा बाँटा उद्योगों को और एनपीए इतना बढ़ गया है कि बैंक ही दिवालिया होने के कगार पर पहुँच गए हैं। रोजगार तो बढ़ा नहीं, लेकिन बैंकों का घाटा इतना बढ़ गया कि बैंक खुद ही बेरोजगार होने की स्थिति में पहुँच गए हैं। बैंक किसी तरह इंश्योरेंस, म्युचुल फंड बेचकर, छोटे-छोटे व्यापारियों और जरूरत मंद लोगों को महँगे अनसिक्योर्ड लोन देकर और आम जनता को तरह-तरह के नए-नए बैंक चार्ज लगाकर किसी तरह अपना बैंक बचाने की कोशिश में लगे हैं।

नौकरी-पेशा और मध्यम वर्ग की सोच से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि वो खुद अपने रोजगार को बनाए रखने के लिए पूरी जिन्दगी संघर्ष करता रहता है। उसके खर्च करते रहने से रोजगार तो नहीं बढ़ता है, लेकिन उद्योगों और बैंकों का मुनाफा जरूर बढ़ जाता है।

अब जो सबसे महत्वपूर्ण और सत्य के सबसे करीब है वो निराश युवा बेरोजगार की सोच है। मैं कम से कम हजार युवकों से मिलने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि 9 महीने में रोजगार पैदा होने वाली बात 100 प्रतिशत सत्य तो नहीं है, लेकिन सत्य के काफी करीब है। मैं कुछ उदाहरणों के द्वारा समझाता हूँ।

बहुत सारे 20 से 30 की उम्र के युवा ये सोचते हैं कि उनका कुछ नहीं हो सकता, क्योंकि वो काबिल नहीं हैं। अब किसी तरह वो बच्चे पैदा करके या जिनके बच्चे हैं, उनको अच्छी शिक्षा देकर उनको काबिल बनाएँगे। इस तरह जब उनके बच्चे अच्छी शिक्षा लेकर बड़े होंगे तो रोजगार पैदा होगा।

बहुत सारे शिक्षित युवा जिनको रोजगार नहीं मिल रहा है वो अब अपनी असफलता छुपाने लगे हैं। ऐसे युवा अब धार्मिक और राजनैतिक कामों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे हैं। ऐसे युवा भी अब बच्चे पैदा करके अपने बच्चों के रोजगार के भरोसे अपने अच्छे भविष्य का सपना देखने लगे हैं।

बेरोजगार युवा की सोच में अर्थशास्त्रियों, नीति-निर्माताओं और उद्योगपतियों की सोच से ज्यादा संभावनायें दिख रही है। अगर 2-3 बच्चे पैदा होंगे तो उसमें कम से कम एक तो रोजगार पैदा ही होगा। कुछ नहीं तो कम से कम सम्भावना बनी रहेगी।

वैसे भी अब किसी के लिए भी बेरोजगारी मुख्य समस्या नहीं है। रोजगार को अब कोई भी बहुत गम्भीरता से लेने को तैयार नहीं हैं। देश में इतनी गम्भीर-गम्भीर समस्यायें जैसे हिजाब और बुर्का पहनने का मसला, मस्जिदों पर लाउडस्पीकर लगाकर अजान देने का मसला, गली-मोहल्लों में लाउडस्पीकर लगाकर हनुमान चालीसा पढ़ने का मसला या और भी ऐसी बड़ी-बड़ी समस्याओं के सामने बेरोजगारी जैसी समस्या की औकात ही क्या है। वैसे भी मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, मुफ़्त राशन और सभी जरूरत की चीजें मुफ़्त में मुहैया कराने का प्रावधान जब कानूनी अधिकार बनता जा रहा है तो रोजगार की जरूरत ही कहाँ रह जाएगी।

वैसे भी आजकल इतने काम हैं कि फुरसत कहाँ है, लोगों को रोजगार करने के लिए। हर महीने कहीं ना कहीं चुनाव रहता है, बहुत सारी तैयारियाँ करनी रहती है। रोज कहीं ना कहीं चुनावी सभा होती ही रहती है और रैलियों में जिन्दाबाद के नारे भी लगाने हैं। कोरोना ने सभी धर्मों को बीमार कर दिया है और अब सभी धर्म खतरे में आ गए हैं। धर्म की रक्षा करना भी बहुत बड़ा काम है। इस सबसे, अगर समय बच गया तो ज्ञान देने और लेने के लिए सोशल मीडिया पर भी बहुत समय देना पड़ता है।

मैं भी पिछले 2-3 सालों से काम-धंधा नहीं होने के कारण बेरोजगार हो गया हूँ। पिछले कुछ महीने में 2-4 सक्षम लोगों को बोला कि कुछ काम-धंधा दिलवा दें मैं बेरोजगार हूँ तो भी लोग गम्भीरता से लेने को तैयार नहीं हैं। मैं सोच रहा हूँ की अपना नाम बदल कर ‘बेरोजगार पूर्वांचली’ रख लूँ। शायद इससे कुछ आकर्षण बढ़े और सहानुभूति की लहर पैदा हो जाए। रोजगार मिले ना मिले, लेकिन क्या पता वाइरल हो गया तो कोई औद्योगिक घराना या कोई बैंक मुझे अपना ब्रांड अम्बेसडर ही बना ले और रोजगार पैदा हो जाए। इस बात की भी सम्भावना बन सकती है कि किसी राजनैतिक पार्टी से मुझे सांसद, विधायक या कोई अन्य राजनैतिक पद मिल जाए और रोजगार पैदा हो जाए।

आजकल वाइरल का जमाना है और प्रसिद्ध होना बहुत जरूरी है। आजकल राजनीति, धर्म, उद्योग, सरकारी संस्थान, निजी संस्थान, समाज सेवा या किसी भी क्षेत्र में सफल होने के लिए ज्ञान से ज्यादा जरूरी प्रसिद्ध होना है।

मैंने अपनी मन्द बुद्धि से ‘रोजगार कैसे पैदा होगा’ इस यक्ष प्रश्न का जवाब देने का ईमानदारी से प्रयास किया है। आशा करता हूँ कि यक्ष जी मेरे जवाब से संतुष्ट होंगे और रोजगार देने की कृपा करेंगे। ’’