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भारतीय जीवन की आत्मा हैं नदियाँ

प्रोफेसर (डॉ.) दिलीप कुमार

विभागाध्यक्ष पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, मैरी कॉलेज, गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय, दिल्ली।

भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के विकास में नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है | यह न सिर्फ सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक विकास की आधारशीला रखती हैं अपितु इन नदियों को भारतीय जीवन की आत्मा के रूप में देखा जा सकता है | हमारा सम्पूर्ण जीवन ही किसी न किसी रूप में नदियों से जुड़ा है, एवं भारतीय चिंतन एवं दर्शन में नदियों को विशेष स्थान प्राप्त है | विगत कुछ वर्षों में नदियों में बढ़ते प्रदूषण ने सरकार के साथ-साथ समाज के सामने विभिन्न चुनौतियों को प्रस्तुत किया है | उक्त विचार दिल्ली विश्वविद्यालय एवं रिसर्च फॉर रिसर्जेंस फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को आयोजित ‘नदी को जानो’ विषयक ई-गोष्ठी में वक्ताओं ने व्यक्त किये | इस ई-गोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए रिसर्च फॉर रिसर्जेंस फाउंडेशन के महानिदेशक डॉ० राजेश बिनीवाले ने कहा कि भारतीय सभ्यता का विकास नदियों के किनारे ही हुआ है | हमारी सांस्कृतिक धरोहरों के निर्माण में भी नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं | आज जीवनदायिनी नदियों का अस्तित्व संकट में है क्योंकि हमने नदियों को जानना छोड़ दिया है | आज मनुष्य का स्वार्थ नदियों के जल को न सिर्फ दूषित कर रहा है अपितु मानव की कार्यशैली इसके प्रवाह को भी बाधित कर रही है | ‘नदी को जानो अभियान’ जीवनदायिनी नदियों के प्रति कर्तव्यबोध का भाव जागृत करना एवं अधिक से अधिक लोगों की सहभागिता से नदियों को पुनर्जीवित करने का मार्ग प्रशस्त करना है |

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए दिल्ली विश्विद्यालय के कुलपति प्रो० योगेश सिंह ने कहा कि मनुष्य के अन्दर नदियों के प्रति श्रद्धा का भाव विकसित करके ही नदियों को बचाया जा सकता है | आज की आधुनिक पीढ़ी को नदियों के महत्व से परिचित कराने के साथ ही उन्हें इस प्रकार से जागरूक करना होगा कि वे नदियों को पुनर्जीवित करने के उद्देश्य को समझें एवं इसमें सहभागी बनें | सरकार को भी इस प्रकार कि योजना बनानी होगी जिससे नदी में १२ महीने पानी बना रहे | लोग नदियों के सहायक बनें न कि गुनाहगार, इसके लिए दोहन की प्रवृत्ति से बचना होगा | हमें नदियों के प्रति जिम्मेदारी का भाव विकसित करना होगा एवं सरकार को एक ऐसी योजना के साथ आगे बढ़ना होगा जिसमें ‘हवा भी चलती रहे और दीया भी न बुझे’ | सरकार निरन्तर प्रयास कर रही है अब समाज की बारी है | ‘नदी को जानो’ अभियान लोगों की चेतना को जागृत करने का एक अच्छा प्रयास है |बीज वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए भारतीय शिक्षण मण्डल के अखिल भारतीय संगठन मन्त्री श्री मुकुल कानिटकर ने कहा कि नदियां भारतीय जीवन की आत्मा हैं | नदियों के बारे में यथार्थ एवं सटीक जानकारी नीति निर्माण के लिए अत्यन आवश्यक है | यह अभियान नदियों के सांस्कृतिक, साहित्यिक, सामाजिक, पर्यावरणीय, एवं भौगोलिक पक्ष को जानने का प्रयास है जिसका उद्देश्य नदियों के बहुआयामी पक्ष को सरकार एवं समाज के समक्ष रखना है | संसाधन, श्रम एवं समय खर्च करने के बावजूद हम प्रभावी परिणाम प्राप्त करने में असफल रहे हैं क्योंकि समस्या के मूल की जानकारी एकत्र किये बिना ही योजनाएँ क्रियान्वित हो जाती हैं | इस अभियान का आरम्भिक उद्देश्य देश के ४०० से अधिक जिलों से नदियों की जानकारी इकठ्ठा करना है | आज के परिदृश्य में भू- राजनैतिक चिंता एवं चिंतन दोनों ही महत्वपूर्ण है |स्वागत भाषण देते हुए प्रो० पी सी जोशी ने कहा कि भारतीय जीवन एवं दर्शन दोनों में ही नदियों का विशेष महत्व है | आज नदियों को उनके मूल स्वरुप में लाने की महती आवश्यकता है | अतिथियों का परिचय दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ० विकास गुप्ता ने प्रस्तुत किया |ई-संगोष्ठी का संचालन एवं धन्यवाद प्रस्तुत करने का कार्य ‘नदी को जानो’ अभियान के दिल्ली विश्वविद्यालय के नोडल अधिकारी प्रो० रवि टेकचन्दानी ने किया जबकि इसका समापन भारतीय शिक्षण मण्डल के प्रान्त संगठन मन्त्री श्री गणपति टेटे द्वारा प्रस्तुत कल्याण मंत्र के साथ हुआ | इस अवसर पर डॉ० सुरेश गोहे, डॉ० गजराज सिंह, डॉ० अमित दत्ता, डॉ० मिथिलेश सहित सैकड़ों की संख्या में दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं छात्र जुड़े रहे |