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यमुना की कहानी, यमुना की जुबानी

सन्तोष कुमार

मैं यमुना हूं, सदियों से अनवरत बहती जीवन दायिनी नदी। मेरी यादें लंबी हैं, मनमोहक – मनोरंजक तो बेहद कू्रर भी। भगवान कृष्ण की लीला देखी, उनके श्रीमुख से गीता की वाणी सुनी। चंदबरदाई, गालिब, जौक, सौदा, मोमिन जैसे साहित्य व शायरी के दीवानों का भी दीदार किया। मेरी वादी में ही हिंदी जन्मी व उर्दू परवान चढ़ी। वैदिक जनों के संघर्ष व कुरुक्षेत्र के महासंग्राम की मैं साक्षी बनी, पानीपत के मैदान में तीन बार देश की किस्मत बदलते देखी। हिन्दू राजाओं, सुल्तानों व मुगलिया सल्तनत के पारिवारिक षडयंत्र मेरे किनारे रचे गए। दिल्ली कितनी बार उजड़ी, कितनी बार बसी, कितने रजवाड़े उजड़े, कितनों की नींव पड़ी, साक्षी भाव से हमने सब देखा। अग्रेंजों की चूलें हिला देने वाला 1857 का स्वतंत्रता संग्राम हमारे सामने शुरु हुआ और अंगेजों के क्रूर पलटवार की राजदार बनी। 1947 तक का शानदार संग्राम देखा, 15 अगस्त के दिन लाल किले पर फहराता तिरंगा भी। मैं भी उल्लासित हुई। कई बार मेरा दिल पसीजा, मैं रोई, दारा शिकोह व महात्मा गांधी की हत्या पर तो मैं चिल्लाई भी।

उद्गम से गंगा में समाहित होने तक की दूरी :

  1. यमुनोत्री (उद्गम) से ताजेवाला (हरियाणा): 177 किमी
  2. ताजेवाला से वजीराबाद (दिल्ली): 224 किमी
  3. वजीराबाद से ओखला (दिल्ली): 22 किमी
  4. ओखला से चंबल नदी संगम तक (यूपी): 490 किमी
  5. चंबल नदी संगम से गंगा संगम (इलाहाबाद, यूपी): 468 किमी

कुल बहाव : 1376 किलोमीटर

दिल्ली में यमुना :

दिल्ली में नदी का क्षेत्रफल : 97 वर्ग किमी (मास्टर प्लान एक)

जलक्षेत्र: 16 वर्ग किमी

खादर क्षेत्र: 81 वर्ग किमी

बहाव की दूरी: 22 किमी

प्रमुख सहायक नदियां

हिंडन नदी, बनास नदी, चंबल नदी, बेतवा नदी, सिंध नदी, धासन नदी, केन नदी

किनारे बसे प्रमुख शहर :

करनाल, पानीपत, दिल्ली, नोएडा, मथुरा, आगरा

यमुना नदी पर निर्भर राजधानी के प्लांट:

  1. चंद्रावल एक व दो: 90 एमजीडी
  2. वजीराबाद ए दो व तीन: 120 एमजीडी
  3. हैदरपुर दो: 100 एमजीडी
  4. रैनी वेल व ट्यूबवेल: 100 एमजीडी

स्रोत: स्टेट ऑफ इनवायरमेंट रिपोर्ट-2010, दिल्ली सरकार

यमुना नदी से होती जलापूर्ति :

दिल्ली की जरुरत का करीब 80 फीसदी पेयजल, इसका 30 फीसदी पश्चिमी यमुना कैनाल व वजीराबाद डैम व 50 फीसदी रेनी वेल, बोरवेल व हैंडपंप से

स्रोत: यमुना जीये अभियान

यमुना का सिकुड़ता क्षेत्रफल:

दिल्ली में नदी का कुल क्षेत्रफल : करीब 96 वर्ग किमी

नदी का जल क्षेत्र: 16 वर्ग किमी

नदी का खादर क्षेत्र: 81 वर्ग किमी

निर्माण से सिकुड़ता क्षेत्र: 63 वर्ग किमी

स्रोत: तपस

लेकिन रुकना मेरा स्वभाव नहीं, नीला व सांवला रंग लिए मेरी धारा अविरल रही। अपनों की प्यास बुझाती, खेतों में जान डालती मैं आगे चलती गई। यमुनोत्री से इलाहाबाद तक, जहां पतित पावनी गंगा में मैं समा जाती हूं। जन मानस ने मां की तरह मेरी पूजा की, मेरे अस्तित्व पर कभी संकट नहीं आने दिया। दिल्ली, आगरा, मथुरा व इलाहाबाद जैसे दर्जनों राजनीतिक-व्यवसायिक-धार्मिक केंद्र मुझसे जीवन पाते रहे। लेकिन आज विकास का पश्चिमी नजरिया मुझे मार रहा है। राजधानी में तो मैं मृतप्राय हो गई हूं। मुझे एक बार फिर अपने तारणहार देवकीनंदन की जरुरत है। वही कालिया नाग रुपी सीवर तंत्र की फांस से मुझे छुड़ा सकता है।

मैं यमुना हूं: दिल्ली ने भुलाए मेरे अहसान!

मैं यमुना हूं। राजधानी की जीवन रेखा, मैं मिट रही हूं। मैं मृतप्राय हो गई हूं। फिर भी, नहीं कहूंगी कि मेरे न होने से दिल्ली उजड़ जाएगी। यह मेरा बड़बोलापन होगा। हां, मैं आपके सामने एक तस्वीर जरुर बनाऊंगी। वह भी ऐसी, जिसमें मेरे व दिल्ली के बीच का रिश्ता दिखे। मैं दिखाऊंगी, दिल्ली मुझसे कितना ले रही है। मुझे दिल्ली से क्या मिल रहा है। यह जरुरी है। इसलिए नहीं कि मैं पेशेवर हो गई हूं। यह सोचना भी मेरे लिए गुनाह होगा। जरुरत है तो इसलिए कि समाज व सरकारें बाजार की जुबान बोल रही हैं। उनकी समझ में भी यही भाषा आती है। रिश्तों का आधार, उपयोगिता व भविष्य भी बाजारु होता जा रहा है। लेन-देन को मैं एक-तरफा कहूंगी, अपने लिए घाटे का सौदा। दिल्ली ने लिया बहुत, लेकिन दी मुझे पीड़ा। लेना तो हथिनीकुंड बैराज से शुरु कर दिया। नहर व बांध बनाकर मेरे पानी से प्यास बुझाई। चंद्रावल, वजीराबाद व हैदरपुर जल संयत्र मेरे ऊपर निर्भर हैं। फिर भूजल स्तर का उतार-चढ़ाव भी हमसे जुड़ा है। इन सबसे दिल्ली अपनी जरुरत का 80 फीसदी पीने का पानी मुझसे निकलती रही है। बदले में दिल्ली मुझे दिया क्या? अनगिनत नालों से लाखों टन कचरा और हमारे अंदर खड़ी होती इमारतें। इससे मेरा दम घुटने लगा है, बेचैन हूं, आखिरी सांस की तरफ बढ़ती हुई मैं छटपटा रही हूं। फिर भी मैं नहीं कहूंगी कि मेरे बाद दिल्ली का क्या होगा? यह फैसला तुम पर छोड़ती हूँ। सोचिए, हमारी कुछ अहमियत है भी या नहीं।

पहले बांटा, अब रोका जा रहा है मुझे!

मैं यमुना हूं, एक खंडित होती नदी। मुझे मुझसे ही अलग किया जाता रहा। बात पुरानी है। यकीन जानिए, 600 साल पुरानी। फिरोज शाह तुगलक ने पश्चिमी यमुना नहर बनाई। अंबाला, हिसार और करनाल को जीवंत करने के लिए। मैं खुश हुई थी। दुधारू गाय बनने में मुझे एतराज न हुआ। मैंने खुद की नई छवि देखी, खेत-खलिहानों को नया जीवन देकर, दूर-दूर तक। अलगाव को गहरा भी किया, अकबर, शाहजहां, वारेन हेस्टिंग ने लंबाई-चौड़ाई बढ़ाकर। 200 साल पहले मैं फिर बंटी, पूर्वी यमुना नहर बनकर। मैं दुखी नहीं हुई, इसलिए कि मेरा वजूद बचा रहा, रुकी नहीं मैं, चलती रही। लेकिन आज मैं व्यथित हूं। मुझे रोका जा रहा है, बांध बनाकर। स्वार्थी बनकर, मुझे नहरों व जल शोधन यंत्रों की तरफ भेजकर। फिर भी मैं दिखती हूं दिल्ली में, प्रेतछाया जैसी ही सही। सीवेज के बोझ से दबी, छोटे-बड़े दर्जनों नालों की गंदगी तले। जीवन नहीं, बीमारी लेकर आगे बढ़ती जा रही हूं मैं। यहां आज मुझे देखिए। आपको भान नहीं होगा कि मैं जीवनदायिनी थी। शताब्दियों नहीं, सहस्राब्दियों से अविरल प्रवाहित। आबाद करती, जरुरत पूरा करती मैं इससे से विदा लेती थी। लेकिन आज मैं व्यथित हूं। मैं यमुना हूं। एक नदी, जिसमें पानी ही नहीं। दिल्ली में मेरी यही कहानी है।

नदी नहीं, मैं बहता नाला हूं!

यह मेरी कहानी है, यमुना की कहानी। कहानी का प्रसार वेदना बढ़ाता रहा। मैं रक्तरंजित हूं, कीचड़ में लिपटी हुई। दिल्ली ने मुझे अपनों से बेगाना किया, आगरा ने भी। मेरे घरौंदे के हजारों जीवों की हत्या कर डाली। मेरा इतना दोहन किया कि मेरी प्राण वायु चुक गई। मैं आक्सीजन विहीन हो गई। आचमन तो दूर, बगल से गुजरता राहगीर नाक बंद किए रहता है। मुझसे सड़ांध आती है। वह मुझसे दूर भागता है, बचने की कोशिश करता है। हां, कभी-कभी मेरी बेबसी पर तरस भी खाता है। इसलिए नहीं कि उसे मेरी चिंता है। मेरे बारे में सोचने की उसे फुर्सत कहां? ऐसा इसलिए कि कुछ धार्मिक परंपराएं हैं। इनसे मजबूर है वह मेरे नजदीक आने के लिए, ‘पवित्र होने, कर्मकांड करने।पहले ऐसा न था। दिल्ली के मेरे दोनों पाटों पर शांति थी, जीवन था। मेरा आंगन जीवंत रहता था, तरह-तरह के जीव-जंतुओं की कलरव से। पथिक मुझसे ऊर्जा पाता था, अपनी थकान मिटाकर। परिवहन का जरिया भी रही हूं मैं। लेकिन आज मेरी जीवंतता गायब है। 70 फीसदी प्रदूषित यहीं होती हूं। अपने महज 2 फीसदी हिस्से में। मुझे नदी से नाला बना दिया गया। सीवेज से भरा नाला, बीमारी ढोने वाला। नहाना-पीना दूर, मैं खेतों को भी नहीं सींच सकती।

मैं यमुना हूं, वीरान है मेरा आंगन

दिल्ली की कुछ यादें हैं, मेरे जेहन में। इन्हें मैं साझा करूंगी आपसे। शहर को लगाव था मुझसे। संबंधों में अपनापन था, गहराई थी, निरंतरता थी, नि:स्वार्थतता भी। इसकी सुबह मेरे साथ होती, शाम भी। मेरे दोनों पाट गुलजार रहते थे, बच्चों की किलकारियों, बुजुर्गों व युवाओं की चहलकदमी से। मेरा साथ ताजगी भरता था उनमें। बहुत पुरानी नहीं, मैं 80 साल पहले की अपनी कहानी, यमुना की कहानी। मेरे साथ चलिए। एक नदी का हमराही बन, उस्मानपुर गांव, फूल सिंह के पास। उससे, उसकी परपोती तनु से मिलने। फूल सिंह का बपचन मेरे सामने गुजरा। खेलते-कूदते, साथ-साथ अठखेलियां करते। रिश्ता गहरा था हमारा। बेहिचक हमारा पानी पीता, स्नान करता। सारा दिन मेरे साथ रहता, उर्जा मिलती थी उसे मेरे संग। नहीं डर था उसे, अपनी सेहत बिगडऩे का, सूरत बदरंग होने का। शरीर में फफोले पडऩे का। लेकिन तनु, डरती है। नफरत सी है उसे मुझसे। नजदीक आते ही तुतुलाती है, कित्ता गंदा पानी है…, सुनकर कांप जाती हूं मैं। अंदर तक, देर तक। सोचते-सोचते मैं खो जाती हूं, पुरानी यादों में। मैं ऐसी तो नहीं थी। वीरानगी नहीं, बच्चों की किलकारी, पक्षियों के कलरव से गुलजार था मेरा घरौंदा। डर लगता है यादों से बाहर आने में। पर मैं आऊंगी, एक तमन्ना लिए। अपनों को पाने की।

मृत शैय्या पर लेटी, मैं यमुना हूं...

मैं यमुना हूं…। बीमार, मृत शैय्या पर लेटी। भीष्म पितामह की तरह। पल-पल, हर दिन, मौत की तरफ बढ़ती। आखिरी सांस का इंतजार करती। फिर भी मैं इनकार करूंगी इससे, कि मैं बेसहारा हूं। आवाजें उठती रही हैं, कई तरफ से, मेरे अपनों की। मेरी छांव में पलने वालों की। यह भी मानूंगी मैं, कि सरकारें फिक्रमंद दिखीं हैं! कई-कई बार। बहुत किया मेरे नाम पर। दिल्ली में ही करोडों खर्च कर डाला। वाहवाही लूटी अपने गलियारों में, अपनी पीठ भी थपथपाई। आज नहीं, 37 साल पहले ही। जल प्रदूषण एक्ट बनाया। मेरे लिए यमुना एक्शन प्लान तैयार किया, किश्तों में। तकनीक के सहारे, बुनियादी ढांचा तैयार किया। मेरी सफाई के नाम पर। मैं मानूंगी कि दवा मिली। लेकिन मर्ज नहीं रुका, नासूर होता गया। कालिया विष फैलाता रहा। बीमार करता रहा मुझे। सरकारें कृष्ण नहीं बन सकीं। इसलिए नहीं कि मर नहीं सकता वह। लाइलाज है मेरी बीमारी। वह मर सकता था, इलाज हो सकता था मेरा। उम्मीद तो अभी भी है। मैं बीमार रही, इसलिए कि मेरी जरुरत ही नहीं जान सकीं सरकारें। कोशिश भी नहीं हुई जानने की। मुझे ही नहीं, मेरे ऊपर निर्भर लोगों को भी भुला दिया। दस साल पहले इसे स्वीकार भी किया। सरकार ने दबे मन से, अपना अहं नहीं छोड़ा। दूसरी किश्त तैयार की मेरी, सफाई के लिए। मिला क्या, नतीजा पहले ही तय था। मेरी हालत जैसी थी, सुधार न आया उसमें। बिगड़ती गई। गिन रही हूं आखिरी सांस मैं, वेंटिलेटर पर पड़ी-पड़ी। फिर भी, नाउम्मीद नहीं हूं मैं।

कायर नहीं मैं....

वेंटिलेटर पर पड़ी मैं यमुना हूं। आखिरी सांस गिनती। मैं दुबारा कहूंगी। इलाज किया सरकारों ने मेरा, लेकिन बिना रोग पहचाने…! बीमारी बढ़ती गई मेरी। तैयारी तो फिर है। करोड़ों खर्च करने की, 2015 तक मुझे चंगा करने की…! रामबाण बता रही सरकार इसे…! इंटरसेप्टर योजना बनाई है। तकनीक होगी इसमें, बुनियादी ढांचा बनेगा। बड़ी-बड़ी मशीनें लगेंगी, पुरानी भी ठीक होंगी। सब मेरी सर्जरी के लिए। मैं नहीं कहूंगी कि रोग असाध्य है। ठीक न होऊंगी इससे। डाक्टर नहीं हूं मैं। लेकिन बताऊंगी कि नहीं पूछा गया मुझसे। इस बार भी। इलाज मेरा नहीं, नालों का होगा। लेकिन कब-तक, न पता योजनाकारों को। पूरी जानकारी तो इसकी भी नहीं कि सीवेज का कितना भार है मुझ पर। पाइप लाइन की पेयजल सप्लाई को आधार बनाया। छोड़ दिया भूजल पर निर्भर जनता को। आकलन अधूरा है मुझमें घुल रहे विष का। हां, सरकारी मुलाजिम इतना जानते हैं, कि उपाय अस्थायी है। आचमन लायक नहीं होगा मेरा जल। इलाज के बाद भी। एक बात और। नई लाइनें डलेंगी, दिल्ली की सूरत फिर बिगड़ेगी, पेड़ कटेंगे, वीरानगी छाएगी। फिर भी, नहाने लायक नहीं होगा मेरा जल। मैं नहीं कहूंगी कि दवा गड़बड़ है…! फैसला उन पर ही छोड़ती हूं…! आक्सीजन देने दूंगी उन्हें…! जबावदेही उन्हीं की होगी, अंतिम परिणाम पर…! कहूंगी तो सिर्फ यही कि तह में उतरो। ढूढ़ निकालो कालिया नाग को। वश में कर लो उसे, नाग नथैया बनकर। कायर नहीं, मैं न रोती अपनी मौत पर। मैं डरती हूं, मरने से। अपने नहीं, अपनों के। दिल्ली ने बदरंग किया मुझे। वजीराबाद-ओखला के बीच। स्याह पड़ जाती हूं मैं। यहां से विदा लेते-लेते। फिर भी मैं कोशिश कर रही हूं। उठ खड़ी होने का। अपनों के लिए। सीधा जुड़ाव है उनका मुझसे, सुबह-शाम साथ होती हमारी। उनके पास गई मैं। पूछा, कि इतिहास बनने देंगे मुझे? मिली तो उनसे भी, मुझसे कुछ पलों का रिश्ता है जिनका। सुबह-शाम, पुलों से गुजरते, पूजन-सामग्री फेंकने के वक्त का। मैं गई, उनके पास, जिन्होंने जाना है मुझे। जाने ढेरों तरीके, सेहतमंद होने के। लेकिन एक नुस्खा बताया सबने। कि मैं ठीक होऊंगी, उठूंगी मृतशैय्या से तभी, जब प्रवाह सामान्य होगा मेरा। मुझे रोका न जाए आगे बढऩे से।