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जीवन जीने की कला है ‘योग’

sunita sharma writer

डॉ. सुनीता शर्मा

निदेशक, शारीरिक शिक्षा विभाग, कालिंदी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

yoga day

योग योग ईश्वर प्रदत्त एक ऐसा ज्ञान जो कि सदियों से बहता चला आ रहा है। अनुशासनम योग दर्शन का प्रथम सूत्र है, जोकि बहुत ही सहजता और सुंदरता से योग को परिभाषित करता है। योग द्वारा आप निरोग्यता को प्राप्त करते हुए अपनी वैचारिक शक्ति में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। आइए योग की शुरूआत करें, योग को जानें और योगमय हो जाएं। सर्वप्रथम परम तत्व यानी आदियोगी शिव ने योग को हिरण्यगर्भ को प्रदान किया और उसके बाद योग की यह गंगा महर्षि कपिल, महर्षि पतंजलि से होते हुए आज आम जनमानस में बह रही है। ऋषि पतंजलि के योग दर्शन के द्वारा आज पूरा विश्व योग की गंगा में नहा रहा है। उनके द्वारा प्रदत्त अष्टांग योग जीवन जीने की कला को पूर्ण रूप से परिभाषित करता है। आज के संदर्भ में हमें इसे खुद से जोड़ना होगा क्योंकि योग का मतलब ही होता है, योग और मिलना।

योग की सबसे महत्वपूर्ण परिभाषा ‘आत्मा से परमात्मा का मिलन’ यानी कह सकते हैं ‘आत्मा से आत्मा का और मानव का प्रकृति से मिलन’ ही योग है। योग एक शब्द ही नहीं, जब इसे जाना जाए तो ज्ञान का सागर खुलता ही जाएगा और जितना इस सागर में हम डूबते जाएंगे उतना ज्ञान बढ़ता जाएगा पर अंत नजर नहीं आएगा। योग भारतीय संस्कृति का एक ऐसा महत्वपूर्ण ज्ञान है, जो सदियों से बहता रहा है और आज पूरा विश्व इसका लाभ उठा रहा है, बल्कि कहा जाए कि पूरा विश्व इस ज्ञान का लाभ अनेक प्रकार से उठा रहा है; जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, भावनात्मक और ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याओं से जूझने के लिए भी लाभ उठाया जा रहा है। अगर किसी से यह पूछा जाए कि योग क्या है तो उसका उत्तर अधिकतर  व्यक्ति यह देंगे की योग आसन को कहते हैं। योग, प्राणायाम को कहते हैं यानी योग की परिभाषा के रूप में अनेक उदाहरण दिए जाते हैं, परंतु अगर योग को परिभाषित ही करना हो तो सबसे बेहतर होगा कि यह कहा जाए ‘आज के संदर्भ में योग जीवन जीने की एक कला है’।

आज की जीवन शैली यानी आधुनिक लाइफस्टाइल को अपनाकर व्यक्ति योगिक जीवन शैली से दूर हो गया है। पहले योग को परिभाषित करने की कोई आवश्यकता नहीं होती थी, क्योंकि योग एक जीवन का अंग था  या यूं कहें कि जीवन ही योगमय था; जिसके अंतर्गत समय अनुसार सभी क्रियाएं मानव के दिन-प्रतिदिन के कार्यों में शामिल थीं। चाहे वह शुद्धि क्रिया, विश्राम हो या शारीरिक परिश्रम, संतुष्टि,  शांति,  सहजता,  अपनापन,  सेवाभाव आदि यह सभी गुण और इसके साथ ही प्रकृति से प्रेम, प्रकृति के साथ रहना यह भी समाहित था। साथ ही यह भी कहा जा सकता है, ब्रह्मचर्य से लेकर गृहस्थ आश्रम तक जिन चार आश्रमों की हम बात करते; उनमें रहने के दौरान भी नियम अनुसार पालन किया जाता था, 

परंतु आधुनिकता दर आधुनिकता आगे निकलने की होड़ ने हमें योग से दूर कर दिया है। इन सभी नियमों से आज के संदर्भ में योग को हमें जोड़ना ही होगा और अपनी आने वाली पीढ़ी और आज की पीढ़ी को यह समझाना होगा कि ‘ व्यवहारिक रूप से योग के मायने क्या हैं। उन्हें समझना होगा कि योग सिर्फ पहाड़ों या जंगलों में जाकर तप करने वाले साधु या महात्मा के लिए ही आवश्यक नहीं है, बल्कि योग सांसारिक व्यक्तियों के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है और दिनचर्या में शामिल करने योग्य है; जिससे वह तनाव मुक्त रह सकें और पूरा जीवन को शांतिमय तरीके से बिता सकें। इसके लिए हमें समझना होगा कि योग का आधार क्या है।

सबसे पहले हमें अष्टांग योग को अपने जीवन से जोड़कर देखना होगा। अष्टांग योग में वर्णित आठ अंग- यम,  नियम,  आसन,  प्राणायाम,  प्रत्याहार,  धारणा,  ध्यान और समाधि हैं। अष्टांग योग एक प्रकार से अपने जीवन को बेहतर तरीके से जीने का एक माध्यम है। अष्टांग योग में यम, नियम से शुरूआत करके यानी अपनी इंद्रियों की शुद्धि रखते हुए उनको अपने बस में रखते हुए आसनों से स्थिरता प्राप्त करते हुए प्राणायाम से निरोगी काया और बाहरी मन को अंदर की ओर करते हुए प्रत्याहार की स्थिति को प्राप्त करना और एक लक्ष्य को चुनना है। जिस प्रकार से हम एक बच्चे का भविष्य तय करते हैं कि भौतिक रूप से कि उसे किस क्षेत्र में जाना है, उसे इंजीनियर, डॉक्टर, टीचर, साइंटिस्ट में से क्या बनना है, उसी प्रकार यह हमारा तंत्र है और इसे लेकर भी हम तय करते हैं। इसी प्रकार आध्यात्मिक रूप से हमें यह चुनना होगा कि हमारे जीवन का परम लक्ष्य क्या है। परम लक्ष्य है शरीर और मन को शुद्ध रखते हुए यम-नियम के द्वारा आसन प्राणायाम से निरोगी रखते हुए, स्थिरता प्राप्त करते हुए, प्रत्याहार की स्थिति को प्राप्त करते हुए, इंद्रियों को संयमित रखते हुए तनाव मुक्त रखते हुए, अपने आप को, एक लक्ष्य को हमने चुना, चाहे वह गुरु हैं, ईश्वर नाम जप है, माता-पिता की सेवा है। सामाजिक सेवा है, एक लक्ष्य हमने चुना जो हमें आत्मशक्ति देता है, आत्म बल देता है, आत्मज्ञान देता है और हमें मोक्ष की ओर ले जाता है। आप कहेंगे कि मोक्ष क्या, मोक्ष का मतलब है आत्म संतुष्टि-प्रसन्नता और  यह तभी प्राप्त होगा जब इसे हम चुनेंगे, उस चुनने की राह को ही आध्यात्मिकता कहते हैं और धारणा कहते हैं। उसी प्रकार से जैसे बालक अपने कोर्स को चुनता है, अपनी पढ़ाई को चुनता है और फिर उस पर मन लगाकर पढ़ाई करता है। लगातार कुछ सालों तक इसी प्रकार से ईश्वर की राह में आध्यात्मिकता की राह में हम लोग एक नाम या जप चुन करके उस पर लगातार ध्यान करते हैं। आध्यात्मिक जीवन को उन्नत करने के लिए और जब यह ध्यान परिपक्व होने लगता है तो जिस प्रकार से बालक पढ़ते-पढ़ते बीए, एमए और डॉक्टरेट की डिग्री ग्रहण करता है, उसी प्रकार से आध्यात्मिक जीवन में समाधि के रूप में व्यक्ति आध्यात्मिक सुख को प्राप्त करता है। मानसिक शांति को प्राप्त करता है, आध्यात्मिक उच्चता को प्राप्त करता है, आत्म संतुष्टि, आत्मबल, सहजता-सकारात्मकता को प्राप्त करता है और ऐसी ऊर्जा को प्राप्त करता है, जिसमें उसे महसूस होता है की आत्मा का परमात्मा से मिलन हो गया। वह क्षणिक सुख उसको यह एहसास दिलाता है कि मैंने मोक्ष को पा लिया, मैंने ईश्वर को पा लिया। जरूरी नहीं कि ईश्वर के साक्षात दर्शन होंगे, ईश्वर को तो अनुभव किया जाता है; वह इस प्रकृति में हमारे अंदर और बाहर सभी जगह मौजूद है और उसको महसूस करने की जरूरत है। पेड़, पौधे, पत्ते, नदी, तालाब, बहते झरने सब के कार्य अपने समय पर निर्धारित हैं, सूर्य और चंद्र का आना और जाना सब निर्धारित है।

प्रकृति के अनुसार ईश्वर यानी कि वह अनंत शक्ति हर जगह है, उसे जानने और महसूस करने की जरूरत है ‘यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे’ यह कहा गया है कि जो ब्रह्मांड में है वही हम यानी इस शरीर में भी है; यह एक धागा है जो आत्मा का परमात्मा से मिलन करता है और उससे हम जुड़े हुए हैं। और योग का मतलब भी जोड़ना ही होता है। आइए इस योग को समझें, अपने आप को समर्पित करें।

गीता में बहुत सुंदर शब्दों में कहा गया है कि अपने आप को ईश्वर समर्पित करें और जीवन को खूबसूरत, सुंदर एवं सहज बनाएं; आध्यात्मिक उन्नति को प्राप्त करें । जैसे इस श्लोक के माध्यम से हम देखते हैं यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्। यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्।। अर्थात तत्व को सादर प्रणाम यानी हम जो भी करते हैं जो भी खाते हैं जो भी कर्म करते हैं उसको ईश्वर को समर्पित कर दें, किसी एक को समर्पित कर दें तो हम कर्मयोग को करते हैं और चिंता मुक्त हो जाते हैं। प्रकृति हमारी रक्षा स्वयं करती है, इसी प्रकार से योग को गीता में बहुत अच्छे से परिभाषित किया गया है। सबसे बड़ी बात यही है कि गीता में 18 अध्याय के जो भी नाम हैं, हर नाम के अंत में योग है, यह कितना बड़ा संयोग है। आइए इस योग को अपनाएं। योग दिवस आने ही वाला है और साथ में आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में आजादी का अमृत महोत्सव धूमधाम से मना रहे हैं। आइए प्रकृति के साथ जुड़ें, आत्मा के साथ जुड़ें, अमन के साथ जुड़ें और योगमय हो जाएं। यम-नियम से अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करते हुए जीवन पथ पर बढ़े चलें।

आसन सिर्फ शरीर को ही संयंमित नहीं करते, मन को भी स्थिर करते हैं, यह हमें समझना होगा। साथ में हमें बहुत अधिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। अष्टांग योग की एक-एक सीढ़ी ऐसी है, जो हमारे जीवन से जुड़ी हुई है, जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसका ज्ञान इस प्रकार का होता है कि वह अपने आप को अधिक बेहतर समझता है और इस समय को अगर आप आसन से जोड़ें तो समझ आएगा कि बच्चे के चंचल मन को स्थिरता देने के लिए आसन का कितना महत्व है। इसी प्रकार से प्राणायाम शरीर को स्वस्थ रखने के लिए बेहतर रखने के लिए और अपने ध्यान को अंदर की तरफ लाने के लिए एक बेहतर उपाय है यानी जैसे-जैसे एक बालक बड़ा हो रहा है, उसकी इंद्रियां ज्यादा खुल रही हैं या बाहर की ओर जा रही हैं तो प्राणायाम का एक उपयोग उसको बेहतर बना सकता है। अगले चरण में प्रत्याहार प्राणायाम के अभ्यास से प्रत्याहार की स्थिति आती है, प्रत्यय का मतलब उल्टा यानी अपनी इंद्रियों को बाहर से अंदर की ओर लेना ले जाना है। जब प्राणायाम की सीढ़ी को हम पार कर लेंगे तो प्राणायाम के अभ्यास से हमारा मन हमारे काबू में आ जाएगा। योग का जो परिभाषा दी जाती है सदियों से आत्मा से परमात्मा का मिलन ही योग है। हम हमारा मानसिक, आध्यात्मिक, भावनात्मक सुख जिसमें हम संतुष्ट हो जाएं तनाव मुक्त हो जाएं, जीवन को बेहतर तरीके से जी सकें यही योग है। इसी में हम प्रकृति का पहाड़ों नदियों का ख्याल करेंगे, ध्यान रखेंगे, ग्लोबल वॉर्मिंग से हमारा बचाव होगा; क्योंकि हम आर्टिफिशियल चीजों से दूर रहेंगे। शरीर इतना मजबूत हो जाएगा कि हमें बाहर की चीजें आकर्षित नहीं कर पाएंगी और हम प्रकृति का दोहन नहीं कर पाएंगे और प्रकृति से जो यह मिलन होगा, हमारा आध्यात्मिक भावनात्मक रूप से यही असल मायने में योग है। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में हमें जनमानस सदियों के मूल उद्देश्य को पहुंचाना होगा ताकि आने वाली पीढ़ी योग के महत्व को जाने, अपने आप को जाने और इस प्रकृति को बचाएं, अपने आप को बचाए, तनावमुक्त रहें और एक बेहतर जीवन जिए। क्योंकि एक बेहतर मानव की कल्पना, बेहतर समाज की कल्पना, बेहतर राष्ट्र की कल्पना और बेहतर विश्व की कल्पना केवल योग ही सिखा सकता है।