बड़ी चुनौती है महंगाई और आर्थिक वृद्धि में संतुलन साधना
महंगाई को लेकर देश के केन्द्रीय बैंक ‘भारतीय रिजर्व बैंक’ की चिंता साफ झलक रही है, इसीलिए उसने अपनी प्राथमिकता साफ करते हुए कहा भी है कि अभी उसका सारा जोर महंगाई काबू करने और आर्थिक वृद्धि दर पर है। थोक और खुदरा महंगाई के आंकड़े जिस तरह रिकॉर्ड तोड़ते जा रहे हैं, उससे नए संकट खड़े हो सकते हैं। ऐसी नौबत न आए इसलिए बीती चार मई को नीतिगत दरों में वृद्धि का बड़ा कदम उठाया गया।
रिजर्व बैंक ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि महंगाई थामने के प्रयासों के संग ही आर्थिक वृद्धि के उपाय भी साथ-साथ चलेंगे। दरअसल रिजर्व बैंक को महंगाई और आर्थिक वृद्धि दोनों में संतुलन साधना है, यह कार्य करना बड़ी चुनौती है। क्योंकि कोरोनोजन्य कारणों से वर्तमान में देश आर्थिक मोर्चे पर जिस तरह के संकट का सामना कर रहा है, उसमें रूस-यूक्रेन युद्ध ने आग में घी का काम किया है।
गौरतलब है कि पिछले दो वित्त वर्ष तो कोरोना महामारी की भेंट चढ़ गए थे और अर्थव्यवस्था बैठ गई थी, लेकिन कुछ महीनों से इसमें सुधार के संकेत दिखने लगे थे। उससे उम्मीद बनी थी कि हालात जल्द काबू में आ जाएंगे। पर रूस-यूक्रेन युद्ध से उत्पन्न संकट ने सारी उम्मीदों को धराशायी कर दिया। युद्ध की वजह से कच्चे तेल, धातु और उवर्रकों के व्यापार को तगड़ा झटका लगा। सबसे ज्यादा असर कच्चे तेल के दामों पर पड़ा और इसके दाम एक सौ तीस डालर प्रति बैरल के पार चला गया था। इतना ही नहीं वैश्विक स्तर पर गेहूँ दामों में भी एकाएक बेहताशा बढ़ोत्तरी हो गई। और भारत में गेहूँ के आटे की कीमतें आसमान छूनें लगीं। परिणाम स्वरूप सरकार ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए त्वरित गति से निर्णय लेकर गेहूँ निर्यात पर रोक लगा दी।
विदित हो कि भारत अपनी जरूरत का अस्सी प्रतिशत से अधिक कच्चा तेल आयात करता है और यही कारण है कि युद्धक कारणों के चलते दाम बढ़ने से महंगाई बेकाबू होती चली गई। गेहूँ को लेकर हमें यहां यह भी याद रखना होगा कि 2005-07 के दौरान हम गेहूँ का भारी संकट झेल चुके हैं, तब भारत को 71 लाख मीट्रिक टन गेहूँ का आयात करना पड़ा था। भारत ने उस दौरान कई देशों को गेहूँ का निर्यात भी किया था, लेकिन बाद में राशन प्रणाली और जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए गेहूँ काम पड़ गया था, तब भारत को मजबूर हो कर गेहूँ आयात करना पड़ा था।
वर्तमान की बात करें तो कोरोना महामारी के पिछले दो वर्षो के दौरान प्रधानमंत्री गरीब अन्न योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांटा जा रहा है। जरा सोचिए कि भारत को आज यदि गेहूँ की जरूरत पड़ जाती है तो युद्ध के चलते उत्पन्न परिस्थितियों में खुद के लिए गेहूँ हासिल करना कितना मुश्किल काम होगा।
महंगाई दर को काबू में रखने और आर्थिक वृद्धि दर के लिए मौद्रिक नीति तय करना रिजर्व बैंक का दायित्व है। उसे मौद्रिक नीति और सरकार की आर्थिक नीतियों में तालमेल भी बना कर चलना होता है। कोरोना वायरस संक्रमण महामारी के बाद रिजर्व बैंक का सारा जोर आर्थिक वृद्धि पर रहा है। वहीं दूसरी तरफ बाजार में मांग और खपत का चक्र कैसे बने, यह भी एक बड़ी चुनौती है। बिना आर्थिक वृद्धि के रोजगार के अवसर भी नहीं बनेंगे। रोजगार नहीं होगा तो लोगों के हाथ में पैसा कहां से आएगा और लोग महंगाई का सामना कैसे करेंगे। आम लोगों को महंगाई से राहत देने के लिए लिए केंद्र सरकार ने बीते दिनों पेट्रोल और डीजल पर उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) में कटौती की है। इसके साथ ही अन्य कई उपायों पर भी विचार-मंथन जारी है। सरकार खाद्य तेल और कच्चे माल पर आयात शुल्क कम करने पर विचार कर रही है। पाम ऑयल पर आयात शुल्क (इंपोर्ट ड्यूटी) पहले ही घटाकर न्यूनतम कर दिया गया है। सरकार अब राइस ब्रान, कैनोला, पाम कर्नेल और ओलिव ऑयल समेत दूसरे खाद्य तेलों पर लगने वाले पैंतीस फीसदी आयात शुल्क को कम करने पर विचार कर रही है, जिससे कि महंगाई को नियंत्रित किया जा सके। केंद्र सरकार द्वारा किए गए इन उपायों का असर भी संबंधित उत्पादों की कीमतों पर होगा, लेकिन राज्य सरकारों को भी अपने स्तर पर कुछ ऐसे कदम उठाने चाहिएं जिससे कि आम जन को राहत मिल सके। ’’