अमीर गरीब के बीच बढ़ी खाई
तारिफ अंसारी

भारत एक अत्यधिक विषमतापूर्ण अर्थव्यवस्था वाला देश है। भारत के लोगों में विभिन्न सर्वेक्षण के दौरान अपनी उपभोग क्षमता, आय और धन को काम करके दिखाने की प्रवृत्ति रही है। अमीरी और गरीबी की खाई कोई नई बात नहीं है, ये व्यवस्था पहले से ही चली आ रही है। जब राजतन्त्र हुआ करता था, तब भी कुछ विशेष वर्ग के लोग थे, जो धनाढ्य हुआ करते थे। जो सम्पूर्ण मानव समाज का सिर्फ 10 प्रतिशत ही हुआ करते थे। इन लोगों द्वारा बाकी के लगभग सभी लोगों पर नियंत्रण रखा जाता था।
आजादी के बाद बहुत-सी योजनाओं के सहारे इस अंतर को पाटने की कोशिश की गई, आजादी के समय ये खाई थी, लेकिन वर्तमान समय से काफी कम थी। बहुत से आम चुनावों में ‘‘गरीबी हटाओ’’ जैसे नारे दिए गए- किन्तु ये समस्या जस की तस बनी रही। समय के साथ ये खाई और भी बढ़ती चली जा रही है।
कोरोना महामारी के दौरान इस अनुमान पर संदेह करना कठिन है कि कोरोना के कारण पहले से मौजूद दोषों को और भी गहरा कर दिया है। लॉकडाउन के समय अमीर लोगों की संपत्ति मे वृद्धि की तुलना उन सभी प्रवासी श्रमिकों के साथ करें जो पैदल ही अपने गाँव लौटने को मजबूर थे तो देश मे आर्थिक विषमताओं की स्थिति साफ दिखाई देती है। इसमे कोई संदेह नहीं कि कोरोना महामारी ने आर्थिक असमानता की खाई को और चौड़ा कर दिया है। समय रहते अगर धरातलीय स्तर पर कुछ प्रभावी योजनाओं को लागू नहीं किया गया तो आने वाले समय मे इसके परिणाम और भी ड़राने वाले हो सकते हैं।
शोध से पता चलता है की अधिक असमानता विकास की अवधि में बाधा डालती है। हाल ही में बीती 18 मई को आर्थिक सलाहकार परिषद (ईकॉनोमिक एडवाइजरी काउंसिल टू द प्राइम मिनिस्टर) यानी ईएसी-पीएम द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई है। जिसमें भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता को दर्शाया गया है, आइए समझते हैं आर्थिक असमानता क्या है? और ईएसी-पीएम क्या है, तथा इसके द्वारा जारी रिपोर्ट, साथ ही साथ आर्थिक असमानता को दूर करने के कुछ उपाय-
ईएसी-पीएम क्या है
यह संवैधानिक व्यवस्था से इतर एक अस्थायी और स्वतंत्र निकाय है। जो भारत सरकार, विशेष रूप प्रधानमंत्री को आर्थिक सलाह देने के लिए गठित किया गया है।
ईएसी-पीएम के कार्य
परिषद देश के सामने आने वाले प्रमुख आर्थिक मुद्दों को तटस्थ दृष्टिकोण से भारत सरकार के समक्ष उजागर करने का कार्य करती है। साथ ही साथ यह प्रधानमंत्री को मुद्रास्फीति, सूक्ष्म वित्त और औधोगिक उत्पादन जैसे आर्थिक मुद्दों पर सलाह देती है तथा भारत की अर्थव्यवस्था की समीक्षा पर रिपोर्ट जारी करती है।
संगठन
ईएसी-पीएम का नेतृत्व अध्यक्ष द्वारा किया जाता है, वर्तमान में इसके अध्यक्ष विवेक देबरॉय हैं। इसके सदस्यों की निश्चित संख्या परिभाषित नहीं है।
वर्तमान में चर्चा का कारण
18 मई 2022 को भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट ईएसी-पीएम द्वारा जारी की गई है। इस रिपोर्ट में स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू विशेषताओं और श्रम बाजार के क्षेत्रों में असंयंताओं पर जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि शीर्ष एक प्रतिशत की कमाई निचले 10 प्रतिशत की तुलना में 3 गुनी अधिक है।
इसमें आगे बताया गया है कि वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2020 तक के सर्वेक्षणों के दौरान कुल आय में शीर्ष एक प्रतिशत की हिस्सेदारी में सिर्फ बढोत्तरी ही हुई है, जबकि निचले 10 प्रतिशत की आय घट रही है।
रिपोर्ट के अनुसार पीएलएफएस 2019-20 के आय के आंकड़ों से पता चलता है कि 25000 रुपये का मासिक वेतन पाने वाले वेतन वर्ग के शीर्ष 10 प्रतिशत में आते हैं, जो कि कुल आय का लगभग 30-35 प्रतिशत है। भारत में 10 प्रतिशत आबादी राष्ट्रीय आय का 57 प्रतिशत अर्जित करती है।
एक प्रतिशत अमीरों की आय देश की कुल आय के 22 फीसदी के बराबर -विश्व असमानता रिपोर्ट
अर्थशास्त्री और विश्व असमानता लैब के को-डायरेक्टर – लुकास चांसलर, अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी, इमैनुएल सैज और गेब्रियल जुकमैन द्वारा लिखी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में टॉप 10 अमीरों की आय देश की कुल आय का 57 प्रतिशत है, वहीं एक प्रतिशत अमीरों की आय देश की कुल आय के 22 फीसदी के बराबर है, जबकि निचले स्तर की बात करें तो 50 प्रतिशत आबादी की आय सिर्फ 13 फीसदी है।
हालाँकि इससे पहले आॅक्सफेम की रिपोर्ट मे भी इस समस्या का जिक्र 3 वर्ष पूर्व किया गया था, जो भारत मे बढ़ती आर्थिक असमानता को दर्शाती थी। आॅक्सफेम की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2018 में विश्व में अरबपतियों की आय में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, वहीं भारत में अरबपतियों की आय में 35 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी। इस दौरान 18 नए अरबपति भारत में उभरे, फिर कोरोना महामारी के दौरान इनकी संख्या बढ़ कर 45 हो गयी।
अमीर गरीब के बीच बढ़ी खाई
- यह हैं असमानता के कुछ कारण
- धन का पुन:र्वितरण संभव नहीं हो पाना।
- बढ़ते निजीकरण के कारण सरकार द्वारा तय मापदंडों के अनुसार लोगों को पारिश्रमिक नहीं मिलता है।
- रोजगार में कमी का भी आय असमानता पर काफी प्रभाव देखने को मिलता है।
- राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने की जुगत में सरकारों की सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के प्रति अनदेखी।
- भारत में पुश्तैनी अरबपतियों की संख्या अधिक है और ऐसे में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक धन का हस्तानांतरण एवं संचयन होता रहता है।
आर्थिक असमनताओं को दूर करने के उपाय क्या हो सकते हैं
- सरकार को कल्याणकारी कार्यक्रमों पर और अधिक खर्च करना चाहिए।
- रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं तथा ग्रामीण क्षेत्रों और शहरों के बीच की असमानता को कम करने के प्रयास होने चाहिएं।
- शिक्षा का स्तर सुधारने के साथ ही गुणवत्ता युक्त शिक्षा का प्रयास होना चाहिए।
- ‘एक परिवार, एक नौकरी’ जैसी व्यवस्था से आर्थिक असमानता को दूर करने का प्रयास किया जा सकता है।
- आम नागरिकों में बंधुत्व तथा सामाजिक, क्षेत्रीय, औद्योगिक समानता स्थापित करके भी आर्थिक असमानता को दूर किए जाने का प्रयास किया जा सकता है।
- निर्धन वर्ग को काम की गारंटी सरकार द्वारा 100 दिन से बढ़ाकर न्यूनतम 300 दिन करने का प्रयास करना चाहिए। हालाँकि उत्तर प्रदेश सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में कुछ हद तक आर्थिक असमानता पर जोर देना शुरू कर दिया है। मुफ़्त राशन, 100 दिन की रोजगार गारंटी का क्रियान्वयन सकरात्मक देखने को मिल रहा है। नि:शुल्क टैबलेट, आवास योजना तथा केंद्र सरकार की योजनाए भी इसमें शामिल हैं। इन सभी योजनाओं के परिणाम कुछ समय बाद संतोषजनक अवश्य होंगे। मौजूदा समय में योजनाएं बहुत सी हैं, बशर्ते योजनाएं धरातल पर दिखाई दें, तो कुछ सुधार, समाज में अवश्य दिखाई देगा।