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स्त्री होने का अर्थ !

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष

स्त्री होने का अर्थ लगाना आसान नहीं है। शास्त्रकार स्त्री का अर्थ जब नहीं लगा पाये तो उन्होंने तीन महादेवियों के माध्यम से स्त्री का अर्थ प्रकट किया-धन की देवी लक्ष्मी, शक्ति की देवी दुर्गा और विद्या की देवी सरस्वती। संसार में यही तीन शक्तियां हैं, जिनके बल पर यह समाज और संसार संचालित है-धन बल, बाहू बल और विद्या बल और इन तीनों महान शक्तियों की स्वामिनी होती है स्त्री। स्त्री का एक अर्थ ऐसा भी है जिसकी स्तुति लोग मन्दिरों में खड़ी देवी की मूर्तियों के रुप में करते हैं। मगर सवाल उठता है कि स्त्री का वह कौन-सा रूप है जो इतना लाचार इतना असहाय, इतना विवश, इतना कारूणिक और इतना दयनीय है। आज सचमुच नारी के जीवन में आंसू ही आंसू हैं। बहुत ही विचित्र जीवन होता है स्त्री का। बहरहाल हाथरस में एक बार फिर इंसानियत को अपमानित किया गया है। करीब तीन साल पहले लडकी के पिता ने उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत की। 15 दिन बाद ही उसकी जमानत हो गयी। तब से वह परिवार को परेशान कर रहा था। पिछले दिनों उस बदमाश ने लडकी के पिताजी को गोली मार दी। गोली सरेआम मारी गयी, 

बहुत ही वहशियाना तरीके से मारी गयी लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की | गोली लगने के बाद लड़की चीखती रही लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुयी। जब उसका वीडियो वायरल हुआ तब सरकार हरकत में आई। वहीं पर कुछ महीनों पहले हाथरस में एक लडकी की मौत की खबर आई थी जिसमें अभियुक्त ने उसको खेत में मार डाला था। उस केस में भी बलात्कार और हत्या के आरोप लगे थे लेकिन सरकार ने बार-बार दावा किया कि बलात्कार नहीं हुआ था केवल हत्या की गयी थी। उस बार भी सरकारी अमले का रवैया बहुत ही गैर-जिम्मेदार रहा था। सरकार ने पुलिस वालों को तो हटा दिया था लेकिन कलेक्टर जमा रह गया था। हालांकि परिवार वालों को बताये बिना ,उसी ने लाश को रात के अँधेरे में जलाने जैसा गलत काम किया था। यह उत्तरप्रदेश सरकार की कानून व्यवस्था पर जबरदस्त सवालिया निशान तो पैदा करता ही है। नए मामले में उत्तरप्रदेश की सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष की मुख्य पार्टी से अपराधी के सम्बन्ध सामने आ रहे हैं।अब होगा यह दोनों ही पार्टियां मिलकर केस को दबा देंगी, उस पापी का कहीं न कहीं रिश्ता निकल आएगा और राजनीतिक बिरादरी उसके पक्ष में खडी हो जायेगी। इसके पहले वाले हाथरस कांड में भी यह हो चका है। अभियुक्त की बिरादरी वाले राजपूत समाज के लोग अपराधी को महान बनाने के चक्कर में सभाएं कर रहे थे। देश के हर कोने से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार की खबरें आ रही हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में महिलाओं के साथ अत्याचार की इतनी खबरें आती हैं कि जब किसी दिन घटना की सूचना नहीं आती तो लगता है कि वही समाचार का विषय है। आज आलम यह है कि कहीं भी किसी भी लडकी को घेरकर उसको अपमानित करना राजनीतिक पार्टियों से जुड़े शोहदों का अधिकार सा हो गया है। सवाल उठता है कि क्या वे लड़कियां जो अकेले देखी जायेगीं उनको बलात्कार का शिकार बनाया जायेगा। बार बार सवाल पैदा होता है कि लड़कियों के प्रति समाज का रवैया इतना वहशियाना क्यों है। दिसंबर 2013 में हुए दिल्‍ली गैंग रेप कांड के बाद समाज के हर वर्ग में गुस्सा था। अजीब बात है कि बलात्कार जैसे अपराध के बाद शुरू हुए आंदोलन से वह बातें निकल कर नहीं आईं जो महिलाओं को राजनीतिक ताकत देतीं और उनके सशक्तीकरण की बात को आगे बढ़ातीं। गैंग रेप का शिकार हुई लडकी के साथ हमदर्दी वाला जो आंदोलन शुरू हुआ था उसमें बहुत कुछ ऐसा था जो कि व्यवस्था बदल देने की क्षमता रखता था लेकिन बीच में पता नहीं कब अपना राजनीतिक एजेंडा चलाने वाली राजनीतिक पार्टियों ने आंदोलन को हाइजैक कर लिया और आंदोलन को दिशाहीन और हिंसक बना दिया। इस दिशाहीनता  का नतीजा यह हुआ कि महिलाओं के सशक्तीकरण के मुख्य मुद्दों से राजनीतिक विमर्श को पूरी तरह से भटका दिया गया। बच्चियों और महिलाओं के प्रति समाज के रवैये को बदल डालने का जो अवसर मिला था उसको गवां दिया ‘गया। अब जरूरी है कि कानून मे ऐसे प्रावधान किये जाएँ और उनको लागू करने को इच्छा शक्ति सरकारों में नजर आये जिससे कि अपराधी को मिलने वाली सजा को देख कर भविष्य में किसी भी पुरुष की हिम्मत न पड़े कि बलात्कार के बारे में सोच भी सके। ऐसे लोगों के खिलाफ सध्व समाज को लामबंद होने कौ जरूरत है जो लडकी को इस्तेमाल की वस्तु साबित करता। हमें एक ऐसा समाज चाहिए जिसमें लडकी के साथ बलात्कार करने वालो और उनकी मानसिकता की हिफाजत करने वालों के खिलाफ सामाजिक जागरण हो, मर्दवादी मानसिकता के चलते इस देश मैं लड़कियों को दूसरे दरजे का इंसान माना जाता है. और लडकी की इज्जत की रक्षा करना समाज का कर्तव्य माना जाता है। वह गला है। पुरुष कौन होता है लडकी कौ रक्षा करने वाला। ऐसी शिक्षा और माहौल बनाया जाना चाहिए जिसमें लड़की खुद को अपनी रक्षक माने। लड़की के रक्षक के ‘रूप मैं पुरुष को पेश करने की मानसिकता को जब तक खत्म नहीं किया जाएगा तह तक कुछ नहीं जदलेगा। जो पुरुष समाज अपने आप को महिला की इज्जत का रखवाला मानता  है वही पुरुष समाज अपने आपको वह अधिकार भी दे देता है कि वह महिला के यौन जीवन का संरक्षक और उसका उपभोक्ता है। इस मानसिकता को उखाड़ फैकने का संकल्प लिया जाना चाहिए मर्दवादी सोच से एक समाज के रूप मैं लड़ने की जरूरत है। और वह लड़ाई केवल वे लोग कर सकते हैं जो लड़की और लड़के को बराबर का इंसान मानें और उसी सोच को जीवन के हर क्षेत्र में उतारे | कुछ स्कूलों में भी  ‘कायरता’ को शोर्य बताने वाले पाठ्यक्रमों की कमी नही है इन पाठ्यक्रमों को खत्म करने की जरूरत है। सरकारी स्कूलों के स्थान पर देश मैं कई जगह ऐसे स्कूल खुल गए हैं,जहां मर्दाना शौर्य की वाहवाही की शिक्षा दी जाती है। वहाँ औरत को एक क्स्तु के रूप में सम्मानित करने की सीख दी जाती है। इस मानसिकता के खिलाफ एकजुट होकर उसे खत्म करने की जरूरत है। अगर हम एक समाज के रूप में अपने आपको बराबरी की बुनियाद पर नहीं स्थापित कर सके तो जो पुरुष अपने आपको महिला का रक्षक बनाता फिरता है वह उसके साथ जबरदस्ती करने में भी संकोच नहीं करेगा। शिक्षा और समाज की बुनियाद में ही यह भर देने की जरूरत है कि पुरुष और स्त्री बराबर है और कोई किसी का रक्षक नहीं है। सब अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं | बिना बुनियादी बदलाव के बलात्कार को हटाने की कोशिश वैसी ही है जैसे किसी घाव पर मलहम लगाना। हमें ऐसे एंटी बायोटिक की तलाश करनी है जो शरीर में ऐसी शक्ति पैदा करे कि घाव में मवाद पैदा होने की नौबत ही न आये। कहीं कोई बलात्कार ही न हो। उसके लिए सबसे जरूरी बात यह है कि महिला और पुरुष के बीच बराबरी को सामाजिक विकास की आवश्यक शर्त माना जाए। इस बात की भी जरुरत है कि लड़कियों की तालीम को हर परिवार ,हर बिरादरी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनाये और उनकी शिक्षा के लिए जरूरी पहल की जाए। लेकिन जो भी करना हो फौरन करना पड़ेगा क्योंकि इस दिशा में जो काम आज से सत्तर साल पहले होने चाहिए थे उन्हें अब शुरू करना है। अगर और देरी हुई तो बहुत देर हो जायेगी। आवश्यकता है, राष्ट्र का निर्देश है, शक्ति है मगर सब कुछ कानून के माध्यम से ही नियंत्रित, संयमित नहीं हो सकता। आज आवश्यकता इस बात की है कि नारीत्व का नवीन मूल्यांकन किया जाये। आज समाज में बलात्कार होते हैं, वेश्यालय चलते हैं, नारियों का तरह-तरह का शोषण होता है, तिलक दहेज के लिए बहुओं को जिंदा जलाया जाता है। इन सारी परिस्थितियों में स्त्री होने का क्या अर्थ है, इसकी तलाश आवश्यक है। लोकसभा में 33 प्रतिशत महिलाओं के जाने की बात नेता लोग कहते हैं मगर वे समझते हैं कि उनकी बहू-बेटियों अलावा समाज में और कोई स्त्री है ही नहीं, जो प्रतिनिधि बन सके, मंत्री बन सके लालू प्रसाद को पूरे बिहार में अपनी पत्नी  ही दिखाई पड़ी जिनको उन्होंने मुख्यमंत्री बनाया। राजनीति में एक स्त्री होने का अर्थ भी तलाश करना होगा क्योंकि वहां जिन लोगों का राजनीति में एकाधिकार है, उन्हों के घरों की स्त्रियों को राजनीति मैं कुर्सियां प्राप्त होती हैं। पुरूष प्रधान राजनीति में स्त्री होने का अर्थ क्या है – क्या स्त्री तभी सार्थक हो सकती है, जब उसके पित्ता-पति राजनीति में अपना वर्चस्व रखते हों। भारतीय समाज में स्त्री को लेकर यह एक खेल खेला जा रहा है और खेल-खेल में स्त्री के बहुत से अर्थ लगाये जा रहे हैं मगर स्त्री होने का असली अर्थ क्या तभी जाना जा सकता है, जब स्त्रियां स्वयंअपनी व्याख्या समाज के सामने प्रस्तुत करें।पुरूषार्थ शब्द वीरता का, ओजस्विता का, त्तेजस्विता का प्रतीक है जो पुरूष होने के अर्थ से निकला है जैसे पुरूष अर्थ -पुरूषार्थ, ऐसी स्थिति में स्त्रियों का अर्थ क्या हो सकता है।
निश्चित रूप से स्त्रियों को पुरूषार्थ के तराजू पर नहीं तोला जाना चाहिए क्योंकि यह स्त्रियों के लिए. एक उदार शब्द होगा और हम नहीं चाहते कि स्त्री अपने अर्थ के व्यक्तित्व के लिए भी पुरूष की मोहताज बने।