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“एटम बम -नए दौर का खेल, मनोरंजन”

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रवि शंकर राय

लेखक. प्रख्यात उद्यमी होने के साथ ही समाजिक कार्यों और लेखन के क्षेत्र में भी सक्रीय है। स्वतंत्र टिप्पणीकार के रूप में राजनीति और समाज से जुड़े विभिन्न ज्वलंत, सम-सामाजिक विषयों पर लेखनरत रहते है।

पहले मनोरंजन के लिए रामलीला, ड्रामा, नाटक और खेल कूद प्रतियोगिता का आयोजन हर साल होता था। इसी तरह होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, लोहड़ी और भी सभी त्यौहार जीवन के कठिन संघर्ष में थोड़ी ख़ुशियाँ लाने के लिए मनाए जाते थे। हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई स्वस्थ परम्परा के साथ-साथ  वैज्ञानिक कारण भी जुड़ा रहा है।

दुश्मनी, शत्रुता, युद्ध मानव सभ्यता का हिस्सा रहा है और हमेशा से लोगों के बीच किसी ना किसी बात को लेकर टकराव होता रहा है। पहले के टकराव में भी बहुत स्वस्थ परम्परा होती थी। जब दो पक्षों  के बीच विवाद होता था तो दोनो पक्ष अपने आपको श्रेष्ठ बनाने में लग जाते थे। उदाहरण के लिए दोनो पक्ष खेल के मैदान में, खेलकूद प्रतियोगिताओं में,धार्मिक शास्त्रार्थ में, ज्ञान कौशल में, दंगल कुश्ती में, शारीरिक बल और सभी अन्य क्षेत्रों में अपनी श्रेष्ठता दिखाने में लग जाते थे। पहले के विवाद और शत्रुता में  हमेशा अपने आपको श्रेष्ठ बनाने की होड़ लगी रहती थी। कभी भी दूसरे पक्ष को नुक़सान पहुँचाने की नियत नहीं होती थी। आज कल के नए दौर के विवाद में बम मार कर दूसरे को ख़त्म करने की सोच है। कहीं भी अपने आपको श्रेष्ठ बनाने की सोच नहीं है। बम केवल युद्ध में दुश्मन की सेना पर बरसाकर ख़त्म करने वाला हथियार तक सीमित नहीं है। अब बम कई प्रकार के होने लगे हैं जैसे आर्थिक बम, राजनैतिक बम, सामाजिक बम, धार्मिक बम और अन्य कई तरह के बम हैं।

human vs human

आर्थिक बम नींबू, तेल, धनिया, सब्ज़ी, आटा चावल, अनाज, साबुन, कपड़ा, पेट्रोल, कोयला, लोहा, स्टील और सभी चीजों के मूल्य  को लगातार बढ़ा रहा है। बहुत सारी चीजों की क़ीमतें बिना किसी वजह के बढ़ने लगीं है। ऐसे लग रहा है की महँगाई एक मनोरंजन की तरह हो गई है।

राजनैतिक बम देश को जातीय, क्षेत्रीय, धार्मिक, आर्थिक और अन्य इतने टुकड़ों में बाँट देगा की दुबारा से इसको जोड़ना मुश्किल हो जाएगा। सभी राजनैतिक दल मिलकर भी अब इन दरारों को भरने की कोशिश करें तब भी शायद सम्भव ना हो।

सामाजिक बम तो लोगों का स्वाभिमान ख़त्म करके एक नई परम्परा को जन्म देने की तरफ़ अग्रसर है। ये बम मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, मुफ़्त राशन, मुफ़्त साड़ी, मुफ़्त कम्बल,  मुफ़्त साइकिल,  मुफ़्त टेलिविज़न,  मुफ़्त मोबाइल,  मुफ़्त लैपटाप,  मुफ़्त बेरोज़गारी भत्ता,  मुफ़्त पेंशन और बहुत सारी मुफ़्त की चीजें देकर भिक्षा को ही स्वाभिमान बनाकर स्थापित कर देगा। राजा और रंक दोनो के लिए ही स्वाभिमान का कोई महत्व नहीं रहेगा। उद्योगपति क़र्ज़ लेकर भाग जाने और नहीं लौटाने को ही सबसे बड़ी सफलता और स्वाभिमान समझने लगेगा। जनता सब कुछ मुफ़्त में मिल जाने को ही सफलता और स्वाभिमान समझने लगेगी।

धार्मिक बम तो कमाल का बम है कोई भी जाहिल, गंवार,  अनपढ़ जिसे अपने धर्म  के बारे में शून्य से भी कम ज्ञान हो इस बम को मारकर अपने धर्म का सबसे बड़ा संरक्षक बन जाता है। इस बम को चलाने के लिए किसी भी व्यक्ति को अपने धर्म के बारे में पढ़ने या ज्ञान अर्जित करने की एकदम ज़रूरत नहीं है। बस कुछ धार्मिक पहनावों जैसे कुर्ते के साथ आधे टांग का पैजामा तथा टोपी,  हिजाब, बुर्का,  भगवा,  चोंगा, पगड़ी पहन कर दूसरे धर्म के ख़िलाफ़ दिमाग़ में ज़हर भर लेना है और मुँह से बस ज़हर उगल देना है। इस बम को चलाने में सबसे कम मेहनत लगती है और सफलता 100% मिलती है।

इसके अलावा भी बहुत तरह के बम होते हैं। आजकल के दौर में एक और बम है जो काफ़ी शक्तिशाली है जिसे सोशल मीडिया बम के नाम से जाना जाता है। आप दिन भर सोशल मीडिया के सभी प्लेटफ़ार्म पर बिना उस बम की सत्यता को जाँचे बग़ैर चलाते रहिए। दुर्गा सप्तशती में एक राक्षस रक्तबीज का ज़िक्र आता है जिसके ऊपर जब देवियाँ प्रहार करती थी और उसके शरीर पर चोट के कारण उसका रक्त धरती पर गिरता था तो उससे लाखों उसी के समान बलशाली राक्षस पैदा हो जाते थे। कुछ इसी तरह सोशल मीडिया पर चलाया गया एक बम अपने आप करोड़ों बम पैदा कर देता है।

मैं भी हर हफ़्ते दस दिन मे बिना हाल चाल पूछे और बिना इजाज़त लिए लोगों पर मैसेज बम बरसा देता हूँ। आज कल वक्त ही ऐसा चल रहा है कभी ट्रम्प/ बाइडेन साहब बिना सोचे समझे अफगानिस्तान पर बम मार देते हैं तो कभी पुतीन साहब बिना बताए यूक्रेन पर बम मार देते हैं। हमारे पड़ोसी पाकिस्तान के लिए तो बम मारना एक खेल (स्पोर्ट्स) है और रोज़ बिना नागा किए कहीं ना कहीं बम मारता रहता है। अब ये बम केवल हथियार ना होकर खेलकूद और मनोरंजन का सामान होने लगे हैं।