मतस्य उद्योग को बढ़ावा देने के लिए बनायी गई हैचरी पड़ी है खाली. आजमगढ़ में मछली उत्पादन में गतिशीलता लाने के लिए 22 लाख रूपये की लागत से यह हैचरी तैयार की गई थी जिसकी क्षमता लगभग 15 लाख स्पान (जीरा) थी. इतनी लागत लगने के बाद भी इस हैचरी का मछली उत्पादन में इस्तेमाल ना होना पैसे की बर्बादी है.
आजमगढ़ से सटे क्षेत्रों के लोगों को वर्तमान में स्पान प्राप्त करने के लिए दुसरे क्षेत्रों में जाना पड़ रहा है. अगर यह हैचरी सुचारू रूप से काम कर रही होती तो इससे क्षेत्रीय लोगों को काफी फायदा मिलता.
यूपीपीसीएल के द्वारा साल 2008-09 में जब इस हैचरी का निर्माण कराया गया तो आजमगढ़ के क्षेत्रीय मछुआरों को यह उम्मीद जगी कि आने वाले दिनों में उन्हें मतस्य उद्योग के लिए बीच के लिए दुसरे क्षेत्रों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा. इस हैचरी के सुचारू रूप से चलाने के लिए इसमें ट्रेनिंग हॉल, फ्रुटपांड, टैंक का कार्य, ओवरहेड टैंक, सबमर्सिबल, डीजल पम्पिंग सेट, रियरिंगपिड की व्यवस्था की गई थी. हैचरी अब पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है और उसका कोई भी इस्तेमाल नही किया जा रहा बल्कि लोग इसे अब एक कूड़ाघर की तरह इस्तेमाल करते है. इस हैचरी में पशु इत्यादि भी घूमते है.
मछली उत्पादन के लिए हैचरी का क्या है इस्तेमाल
एक हैचरी की क्षमता लाखों में होती है जिसमे लगभग 15 लाख स्पान की होती है. हैचरी में मछली डालते है और नर मादा दोनों को ‘ओवाप्रिग’ इंजेक्शन लगाते है. चार-छ: घंटे बाद मछली अंडा देने लगती है और 12 से 24 घंटे के अन्दर फुटहैचिंग हो जाती है. हैचिंग में दो से लेकर तीन दिन तक जीरा घूमते रहते है. इसके बाद हैचरी से निकाल कर उसे तालाब में स्थानांतरित कर दिया जाता है. 10 से 15 दिनों के अन्तराल पर मतस्य बीज आपूर्ति योग्य हो जाता है.