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पांचाल प्रदेश की सांस्कृतिक धरोहर: तरणेतर का मेला

World famous Mela of Tarnetar in Gujrat Surendernagar

गुजरात के सुरेन्द्रनगर जिले के पांचल प्रदेश के थानगढ तालुका में तरणेतर नामक एक छोटा सा गांव है, जहां त्रिनेत्रेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर विद्यमान है। यहां हर साल भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से लेकर तीन दिन तक भव्यातिभव्य लोकमेले का आयोजन किया जाता है। रंग-बिरंगी छतरियां, सुशोभित बैलगाड़ियां और परंपरागत वस्त्राभूषण इस मेले के आकर्षण के मुख्य केन्द्र हैं। आज इस मेले ने अपनी सांस्कृतिक धरोहर के कारण पूरे विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

       पांचाल प्रदेश के रबारी और भरवाड़ समाज की सांस्कृतिक धरोहर की अभिव्यक्ति का बेनमून रंगमंच अर्थात् तरणेतर का मेला।गेला, पुंजा ,गांडा ,वीहा ,कमा ,तेजा ,नवघण ,सोमा ,खेंगार ,मोती ,रामा ,जीवण ,लखमण ,अमरत ,काणा ,बेचर ,गभरू ,जोधा ,मात्रा ,पांचा ,कानजी ,सामत ,वाघा ,पोला ,हीरा और रत्ना का मेला अर्थात् तरणेतर का मेला।राधी ,जोमी ,पोती ,जीवी ,बोघी ,मीठी ,झबु ,धनी ,मणी ,रतन ,लीली ,रामी ,पांचु और काशी का मेला अर्थात् तरणेतर का मेला।

Trinetreshwar Mahadev Temple
An Ancient Temple of Trinetreshwar Mahadev in Surendera Nagar Gujrat

       पांचाल प्रदेश की कला-कारीगरी को देखना हो तो एक बार मुलाकात लेनी ही पड़ेगी तरणेतर के मेले की।झोमी ,पोती ,जीवी ,बोघी और कंकु ने झीमी पहनी हो,माथे पर लाल-पीली ओढ़नी ओढ़ी हो, हाथों में हाथीदांत की चूड़ियां पहनी हो, सुशोभित बैलगाड़ियों में बैठकर लोकगीत गाती हो। मारा वाड़ा मां लीलु घास गौधन चारवा आवो ने, गौधन चारवा आवो ने काई रास रमाडो ने” और “हालो मानवीयुं ने मेणे,मेणा मां मारो मन नो माणिगर छे”।भाई…भाई ! इस मनोहर दृश्य को देखकर विठ्ठल, गोविंद, गोपाल और रत्ना मस्ती में पागल ना हो जाएं तो और करें क्या?

       जहां तीन लोकों के नाथ देवाधिदेव महादेव बिराजमान है.. हां…ये वो तरणेतर का मेला है। जहां साधु-संतों की मंडलियां अखंड भजन-कीर्तन करती हैं और जटाधारी जोगी भांग पीकर भोलेनाथ की मस्ती में अपनी सुध-बुध खो बैठते हैं.. हां.. हां..ये वो तरणेतर का मेला है।जहां भक्ति ,शक्ति और सौंदर्य का  त्रिवेणी संगम होता है… हां.. हां..हां…ये वो तरणेतर का मेला है।

      पांचाल प्रदेश के हर एक गांव से युवक-युवतियां परंपरागत वस्त्राभूषणों में सुसज्ज होकर सुशोभित बैलगाड़ियों में बैठकर तरणेतर के मेले का आनंद उठाने के लिए निकल पड़ते हैं। वैसे भी यह मेला विवाह के लिए उत्सुक अविवाहित युवक -युवतियों के लिए जीवनसाथी की तलाश करने का स्थल है।रास खेलते-खेलते आंखें चार हो जाती हैं और फिर आगे की परिवार के बड़े-बजुर्ग संभाल लेते हैं। इतना ही नहीं सगाई से जुड़े युवक युवतियों का भी मिलन स्थल है यह मेला।मेले की मस्ती में दिन-रात कहां बित जाते हैं इसका पता ही नहीं चलता और अगले साल फिर मिलने का वादा करके सब बिछड़ते हैं। इसलिए यह मेला लोकोर्मियों की अभिव्यक्ति का स्थान माना जाता है।

Main Attraction of Tarnaitar fair
The attractive, colorful umbrellas, decorated bullock carts and traditional costumes of the Tarnaitar fair

       यह मेला आनंद, जवानी और कला का अनूठा संगम स्थान है।राजाभाई का मेरू ऐसी बांसुरी बजाता है कि उसे सुनकर शास्त्रीय संगीतकार भी डोलने लगते हैं और रूडाभाई का खेता पांच मजलेवाली मोर और तोते से सुशोभित छतरी लेकर आता है कि विदेशी सैलानी उसे कैमरे में कैद करने के लिए दौड़े चले आते हैं।हामाभाई ढोली जब ढोल बजाता है तब लाल-पीले वस्त्राभूषणों में सुसज्ज युवक-युवतियों के पैर थिरकने लगते हैं और शुभारंभ होता है-रास,टीटोडा और हुडा का।

       अरे भाई। ! इस मेले के लोकगीत और लोकवाद्यों की बात ही क्या करे ! खेंगार ढम-ढम ढम-ढम ढोल बजाता हो, रामजी मधुर स्वर में बांसुरी बजाता हो, भोलेनाथ के मंदिर में आरती के समय धड़-धड़ धड़-धड़ नगाड़ा बज रहा हो।भाई-भाई ! इस मेले के लोकगीत और लोकवाद्यों का जादू तो ऐसा है कि जिसके कानों तक इनके सूर पहूंचते हैं वे बिना नाचे रह नहीं पाते।धनी,मणी,रतन और लीली की रासलीला को देखना हो या फिर लखमण,अमरत,काणा,पांचा के हुडो को देखना हो तो एक बार जाना पड़ेगा भाई तरणेतर के मेले में।

       अरे भाई ! यह दुर्लभ मानव शरीर बार-बार मिलने वाला नहीं है। अंदर बैठे हुए अंतरतम का उद्धार करने का इससे बेहतर मौका और कहां मिलेगा? नहीं करने पड़ेंगे कठोर जप-तप और नहीं करनी पड़ेगी चार धाम की यात्रा। बस, ऋषिपंचमी के दिन चले जाओ तरणेतर के मेले में। जहां पापनाशिनी गंगा स्वयं प्रकट होती हो तो ईधर -उधर दर-बदर की ठोकरें खाने की जरूरत ही क्या है?

       तरणेतर का मेला तो है रंगरंगीला और छैलछबीला। इसका रूप तो है अपरंपार। चलिए ! पांचाल की लोक-संस्कृति की सरिता-समान इस मेले में डूबकी लगाकर मानव जन्म को कृतार्थ करें।

             चलो भैया तरणेतर के मेले में

             हाथ में रुमाल

             पैरों में रजवाड़ी जूतें

             सिर पर पगड़ी

             हाथ में लिए लाठी।

             जहां जवां दिल धड़क रहा हो

             सीटियां बज रहीं हो

             और हवा में गर्द उड़ रही हो

             यही तो इस मेले का आनंद है

             मेरे भैया।

                                      

लेखक :
समीर उपाध्याय
सुरेन्द्रनगर, गुजरात

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