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‘मैरिटल रेप’ पर टली सुनवाई, नयी पीठ करेगी सुनवाई

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने पत्नी के साथ जबरन शारीरिक संबंध स्थापित करने (मैरिटल रेप) को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई नयी पीठ के गठन तक के लिए बुधवार को स्थगित कर दी।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पार्दीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह फैसला किया।
न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सुनवाई टालते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि 10 नवंबर को उनकी सेवानिवृत्ति की तिथि से पहले सुनवाई पूरा करना संभव नहीं होगा।उन्होंने पीठ की ओर से कहा, “निकट भविष्य में सुनवाई पूरी करना संभव नहीं होगा।”
शीर्ष अदालत ने 17 अक्टूबर को इस मामले में सुनवाई शुरू की थी।
पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन और करुणा नंदी ने (23 अक्टूबर को) दलीलें दी। उन्होंने कहा कि उन्हें बेहद अफसोस है, क्योंकि वे मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष बहस जारी रखना चाहते थे। नंदी ने कहा कि अगर सभी लोग समय सारिणी का पालन करें तो सुनवाई पूरी हो सकती है।
पीठ ने हालांकि,कहा कि वह अन्य वकीलों को अपनी दलीलें रखने से नहीं रोक सकती।सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हलफनामे में केंद्र के रुख को दोहराया कि विवाह यौन सहमति की अवधारणा को खत्म नहीं करता है।मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के लिए अदालत को विभिन्न दृष्टिकोणों से स्थिति का आकलन करने की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि इस मामले में बहुत बड़े प्रभाव को देखते हुए बहु-केंद्रित विचार की आवश्यकता होगी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता नंदी ने पीठ के समक्ष मामले पर सुनवाई जारी रखने पर जोर दिया।उन्होंने मुख्य न्यायाधीश को संबोधित करते हुए कहा, “आपकी विरासत लाखों महिलाओं के लिए इस मामले की सुनवाई की गारंटी देगी।”
श्री मेहता ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश की विरासत को अभी भी याद किया जाएगा और यह बयान देने की आवश्यकता नहीं है।
पीठ ने 17 अक्टूबर को कहा था कि वह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता पर फैसला करेगी, जो पति को दुष्कर्म के अपराध के लिए अभियोजन से छूट प्रदान करते हैं, अगर वह अपनी पत्नी (जो नाबालिग नहीं है) को यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करता है।

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