गौरवशाली भारत

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सब ‘जी’ की महिमा है ‘जी’

प्रो. बीना शर्मा

निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा

बस सब ‘जी’ की महिमा है, साब, ये ‘जी’ जो न करा ले थोड़ा है नेम और सरनेम के साथ जोड़ दो तो आपको इज्जत के सबसे ऊंचे पायदान पर बिठा दे। आया जी, हां जी, कह दो तो आपको तमीजदार सिद्ध कर दे,  जी में एक और जी लगा दो तो बहन और जिज्जी बना दे। दो जी के बीच जा लगा दो तो जीजा जी का प्यारा रिश्ता दे दे, जिस मर्जी संबोधन और रिश्तेदारी में जोड़ दो आपकी खूब नामवरी हो जाये। जी हां, ये ‘जी’ ही है जो कभी आपके जी को जी में ला देता है तो कभी जी का जंजाल बन जाता है। जो जीभ कतरनी सी चलाती रहो तो तुम्हें कभी भी चारों खाने चित्त कर दें और किसी की जी हजूरी में लग जाओ तो तुम्हारी जिंदगी बदल कर रख दे। जी कारा लगाकर बोलो तो तुम्हारी ज से जयजयकार होती है। ज से मीठी-मीठी गोल-गोल घुमावदार जलेबी है तो ज से जीना भी हराम हो जाता है। ज से जीवन में जीत मिलती है तो ज से हमारा जी कभी-कभी खो भी जाता है और आप गाते डोलते हो – ‘जाने कहाँ मेरा जिगर गया जी,  अभी अभी यहीं था किधर गया जी’।  जी चाहे तो आपको बहुत मान दिला दे और ज्यादा ही जी-जी करने लग जाओ तो अगले की नजर से ही गिरा दे कि देखो बिना रीढ़ का सा सारे दिन जी-जी की पींपनी सी बजाता रहता है। सबको सिर पर ही चढ़ाए  रहता है। अब देखो, छोटे बारे और सेवकों से जी लगाकर बोलने का कौन सा धर्म है। पर नहीं साब, आपने इतनी बात कह दी तो उनके श्रीमुख से प्रवचन शुरू हो जाएंगे – अरे क्या हुआ जो उसे नौकर जी कह दिया कि रिक्शा वाले को भैया जी संबोधित कर दिया, क्या वह इंसान नहीं है, क्या वह हमारा जरखरीद गुलाम है जो आपके आगे हाथ जोड़े, हरदम भीगी बिल्ली बन कर खड़ा रहे, आपकी चाकरी करता रहे,  आपकी जी हजूरी बजाता रहे, आपके आगे पीछे डोलता रहे। 

अरे भाई उसकी भी इज्जत है। कभी अचानक उसके घर पहुंच जाओ फिर देखो अपने घर का राजा है वह, उसका परिवार कैसे उसे इज्जत से नवाजता है, बालक पिताजी-पिताजी कहते नहीं थकते तो पत्नी ऐसी आज्ञाकारिणी है, इतना सम्मान देती है हमारे ‘ये’  के अलावा उसके पास कोई दूसरा संबोधन ही नहीं है। तो भाई जो तुम्हें जी कारे से पुकारता है उसे जी कारे से पुकारने वालों की संख्या भी कम नहीं है। ये छोटा सा ‘जी’ कितने-कितनों का दिल जीत लेता है। देखन में छोटे लगे पर बड़े गहरे अर्थ छिपाए रखते हैं। कहने की टोन ही बता देती है कि ये आदर सम्मान वाला जी है,  प्रश्ववाचक, खिल्ली उड़ाने वाला,  उलाहने वाला या स्वीकारोक्ति वाला। किसी की लंबी-चौड़ी बात सुनकर आप उत्तेजित हुए बिना केवल जी कह सामने वाले को बहुत कुछ सोचने पर विवश कर देते हैं कि ये ‘जी’ समझ आने के लिए है या इसका कुछ अन्य अर्थ निकलता है। सामने वाले को सोच में डाल आप उड़न छू हो जाते हैं। ये ‘जी’,  हां जी छोटा सा ‘जी’  कितने-कितनों को दुविधा में डाल देता है कि इतने लंबे व्याख्यान के बाद इस छोटे से ‘जी’ से क्या आकलन किया जाए। तो पकड़े रहिये इस ‘जी’ को, जीकारे को,  बड़ा काम का है ये। आपको बहुत सारी मुसीबतों से बचा ले जाता है। ‘सुनते हो जी’  बहुत प्रचलित है, जिसको सुनते ही पति महोदय चौंक जाते हैं कि इस ‘जी’ के ब्याज से पता नहीं कौन सी नई मांग रख दी जाए और जी का जंजाल खड़ा हो जाए। ‘सुनते हो जी’  बड़ों-बड़ों और अच्छों-अच्छों की खाट खड़ी करने की सामर्थ्य रखता है। तो ये है ‘जी’ की महिमा। नाम के साथ लगे तो सम्माननीय बना दे और दुष्ट के नाम के साथ लगा दो तो लक्षणा व्यंजना का भाव दे दे। रावण जी, कंस जी, सूपनखा जी, नहीं सुना न कभी, अब मां, बेटे के नाम के आगे जी लगाकर बोले तो कैसा पराया सा लगता है। अरे अपने बच्चों का पिताजी है पर तुम्हारा तो लाडेसर ही है न। ‘जी’ जरूर लगाकर बोलो, जी कारे से बोलो पर किसी की इतनी जी हजूरी मत करो, इतने बिछे-बिछे मत रहो कि अपना सम्मान ही न रहे। तो चलते हैं जी, फिर मिलते हैं जी, अपना ख्याल रखना जी।