नयी दिल्ली : घरेलू कंपनी जगत के प्रमुख संगठन भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय फार्मा उद्योग अपनी वर्तमान शक्ति और भविष्य की तैयारियों के साथ आजादी के शताब्दी वर्ष तक अपना कारोबार 400 अरब डालर वार्षिक के स्तर तक पहुंचाने की आकांक्षा रखता है। सीआईआई की शुक्रवार को जारी एक रिपोर्ट में औषधि क्षेत्र की दिग्गज कंपनी डॉ रेड्डीज लैबोरेट्रीज के चेयरमैन सतीश रेड्डी के हवाले से कहा गया है , “ दुनिया भर में 20 प्रतिशत जेनेरिक (सामान्य ) दवाएं भारत में बनती हैं। आकांक्षा 2047 तक 400 अरब डॉलर तक पहुंचने की है। एक क्षेत्र जहां हम क्षमता प्रदर्शित करने की आकांक्षा रखते हैं, वह है नवाचार।”
श्री रेड्डी का कहना है कि ‘ भारत के लिए संपूर्ण जीवविज्ञान के क्षेत्र में बायोसिमिलर दवाओं (जैवचिकित्सकीय दवाओं के सस्ते संस्करण ) के क्षेत्र में नवप्रवर्तन के माध्यम से विस्तार के अपार अवसर हैं। हमारे पास नई दवा की खोज के साथ-साथ नए अणुओं की खोज करने की क्षमता है।” साथ में उनका यह भी कहना है कि इसके लिए पर्याप्त धन और निवेश के साथ-साथ अनुसंधान एवं विकास के लिए कर छूट तथा अकादमिक सहयोग की भी आवश्यकता है।
सीआईआई) द्वारा इस विषय पर उसके चौथे जीवन विज्ञान सम्मेलन में “2047 @ भारतीय जीवन विज्ञान के लिए वृहद योजना” विषय पर एक श्वेतपत्र प्रस्तुत किया गया। इसमें अगले 25 वर्षों में जीवन विज्ञान और फार्मास्युटिकल क्षेत्रों में चार रणनीतियों- नवाचार और व्यावसायीकरण, स्वस्थ विनिर्माण, अंतर्राष्ट्रीयकरण और एक अनुकूल व्यावसायिक वातावरण पर ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। इसमें जीवन विज्ञान के बुनियादी ढांचे और नियामक ढांचे का विकास भी शामिल है।
इस सम्मेलन को आन लाइन संबोधित करते हुए केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने कहा , “भारतीय फार्मास्युटिकल्स बाजार में ऐसी विशेषताएं हैं जो इसे अद्वितीय बनाती हैं। . भारत भारतीय और वैश्विक बाजारों के लिए विभिन्न महत्वपूर्ण, उच्च गुणवत्ता और कम लागत वाली दवाओं के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।’
उन्होंने कहा कि औषधि विभाग ने औषधियों के निर्माण में काम आने वाले तत्वों और सक्रिय औषधिक रसायनों (एपीआई) के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए दो योजनाएं तैयार कीं हैं ताकि उनकी स्थायी घरेलू आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्र में निवेश आकर्षित किया जा सके और इस तरह महत्वपूर्ण केएसएम / ड्रग इंटरमीडिएट और एपीआई के लिए अन्य देशों पर भारत की आयात निर्भरता को कम किया जा सके।
सीआईआई की रिपोर्ट में फार्मास्यूटिकल्स विभाग की सचिव एस अपर्णा के हवाले से कहा गया है कि जीवन विज्ञान अनुसंधान की मुख्यधारा में स्थान बनाने के लिए बायोसिमिलर और आरएनए वैक्सीन, स्टेम सेल और जीन थेरेपी और प्राकृतिक उत्पादों को लाने की क्षमता पर ध्यान देना होगा।
नीति आयोग के सदस्य डॉ वी के सारस्वत, सदस्य, नीति आयोग की राय है कि ब जीनोम अनुक्रमण, डीएनए स्प्लिसिंग, सीआरआईएसपीआर सीआरएएस सबसे तेजी से उभरते क्षेत्र हैं। उनका कहना है कि नैनो रोबोटिक्स के विकास के साथ, भविष्य में जीएम भोजन की ट्रांसजेनिक मुक्त किस्में सामान्य उपयोग में शामिल होंगी। कृषि वैज्ञानिक खाद्य टीके विकसित करेंगे।
सटीक कृषि, जीनोम इंजीनियरिंग नवीन प्रौद्योगिकी में मदद करेगी। उन्होंने कहा कि कृत्रिम अंगों के निर्माण में ऊतक इंजीनियरिंग एक अन्य क्षेत्र उभर रहा है । उन्होंने कहा ,‘ भारत को समृद्ध जैविक संपदा हासिल करने की जरूरत है। लाइफसाइंसेस स्वास्थ्य सेवा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और 2025 तक 150 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है।” डा सारस्वत ने कहा कि निजी इक्विटी फर्म नए क्षेत्रों को बढ़ावा देने जा रही हैं। उन्होंने कहा कि नए टीके , रुग्णता और मृत्यु दर को कम करना, नैतिक नीति विकास और उद्यम प्रौद्योगिकियां भी भारत के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं।
औषधि क्षेत्र पर सीआईआई की राष्ट्रीय समिति के सह अध्यक्ष और एबॉट इंडिया लि के प्रबंध निदेशक विवेक कामथ ने कहा इस चर्चा में कहा, “हेल्थकेयर 2047 के लिए प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में से एक है। विभिन्न नीतियों और योजनाओं के माध्यम से सरकार एक कुशल जीवन विज्ञान क्षेत्र को प्रोत्साहित कर रही है। कोविड ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को प्रभावित किया लेकिन उद्योग को बदलने का अवसर दिया। महामारी के दौरान सामने आया एक प्रमुख शब्द ‘सहयोग’ था जिसने महामारी से निपटने में मदद की। सहयोग एक ज्वलंत इच्छा बन सकता है।