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पूर्वांचल बना हुआ है भारतीय राजनीति का केंद्र

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पूर्वी उत्तर प्रदेश जिसे लोग ‘पूर्वांचल’ कहते हैं, यह क्षेत्र खेती, साहित्य और राजनीति के लिए शुरू से ही उपजाऊ रहा है। भाजपा की राजनीति के केंद्र में ‘पूर्वांचल’ अहम भूमिका निभा रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र से मौजूदा समय में अब छह राज्यपाल-उपराज्यपाल हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद भी पूर्वांचल का प्रतिनिधित्व करते हैं और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी यहीं है। देश की राजनीति में उप्र का दबदबा हमेशा से रहा है और यही वजह रही है कि जब भी कोई बड़ा सियासी घटनाक्रम होता है तो उसमें उप्र का नाम आ ही जाता है। कई राज्यों के राज्यपालों का संबंध उत्तर प्रदेश के ‘पूर्वांचल’ से है। केंद्र सरकार ने लोकसभा चुनाव से पहले ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के जरिए वैश्विक स्तर पर उप्र की ब्रांडिंग के बीच किसी न किसी रूप में राज्य से जुड़े चार लोगों को राज्यपाल बनाकर बड़ा सियासी दांव चला है। इसे सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में पिछड़ा-अगड़ा व जनजातीय समाज के साथ मुस्लिमों को साधने की नई कवायद को आगे बढ़ाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। सर्वाधिक जोर ‘पूर्वांचल’ साधने पर नजर आ रहा है। उप्र-बिहार में जातीय जनगणना को लेकर सियासी सरगर्मी बढ़ती जा रही है। राज्य में बसपा एक बार फिर सक्रिय होने की कोशिश कर रही है। भाजपा मुसलमानों को जोड़ने के लिए पहली बार ठोस प्रयास करती नजर आ रही है। ऐसे में तीसरी बार मोदी सरकार को सत्ता में लाने के महालक्ष्य में उप्र की खास भूमिका के लिहाज से ये नियुक्तियां बेहद अहम हैं।

Shiv Pratap shukla

शिवप्रताप शुक्ला: उप्र भाजपा के प्रमुख नेताओं में शामिल शिव प्रताप शुक्ला ‘पूर्वांचल’ में भाजपा का ब्राह्मण चेहरा माने जाते रहे हैं। शिवप्रताप शुक्ल के राजनीतिक सफर की शुरूआत वर्ष 1972 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबवीपी) से हुई। मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व शुक्ला के आपसी रिश्ते एक समय अच्छे नहीं रह गए थे। एक वक्त ऐसा भी आया जब शुक्ला की सियासत खत्म मानी जाने लगी थी, लेकिन वह भाजपा में पूरी सक्रियता से जुड़े रहे। नतीजा ये हुआ कि वर्ष 2014 में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद शुक्ला की सियासत फिर चमकी। प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें न सिर्फ राज्यसभा सदस्य बनवाया, बल्कि अपने मंत्रिमंडल में वित्त राज्यमंत्री जैसी अहम जिम्मेदारी भी दी। वह राज्यसभा में भाजपा के चीफ व्हिप भी रहे। पिछले वर्ष जुलाई में उनका राज्यसभा कार्यकाल खत्म हुआ था, तभी से उनकी नई जिम्मेदारी की अटकलें थीं। शुक्ला को हिमाचल जैसे महत्वपूर्ण राज्य की जिम्मेदारी देकर उनका कद एक बार फिर बढ़ा दिया गया है। उप्र सरकार में ब्रजेश पाठक को उप-मुख्यमंत्री बनाने के बाद शिवप्रताप शुक्ला की नई जिम्मेदारी को लोकसभा चुनाव से पहले ‘ब्राह्मण समाज’ के लिए अच्छे संदेश के तौर पर देखा जा रहा है।

BD Mishra

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीडी मिश्रा: लद्दाख के उपराज्यपाल ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीडी मिश्रा पूर्वांचल स्थित जनपद भदोही के मूल निवासी हैं। उन्होंने तीन दशक से अधिक समय तक सशस्त्र बलों में सेवा की। उन्होंने वर्ष 1962 में भारत-चीन युद्ध, वर्ष 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध और वर्ष 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भाग लिया था। संविधान की छठी अनुसूची के तहत केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को राज्य बनाए जाने और विशेष दर्जा देने की मांग को लेकर लद्दाखी लोगों के आंदोलन के बीच केंद्र सरकार ने लद्दाख में नए उपराज्यपाल की नियुक्ति की है। ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) बीडी मिश्रा इससे पहले अरुणाचल के राज्यपाल थे।

lakshman parsad Acharya

लक्ष्मण प्रसाद आचार्य: प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के रहने वाले लक्ष्मण प्रसाद आचार्य भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष होने के साथ ही उप्र विधान परिषद के सदस्य भी हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी लोगों में गिना जाता है। वर्ष 1973 में शिशु मंदिर के आचार्य के रुप में अपना करिअर शुरू करने वाले लक्ष्मण ने शिमला समझौता रद्द करने की मांग से संबंधित आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। महज 17 साल की उम्र में पहली बार गिरफ्तारी दी थी। वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में सक्रिय रहे और जनजातीय उत्थान के लिए अभियान की शुरूआत की। आचार्य लक्ष्मण प्रसाद का जन्म आदिवासी खरवार जाति के परिवार में हुआ। उप्र में खरवार, मुसहर, गोंड, बुक्सा, चेरो, बैंगा आदिवासी जातियां है, इनकी आबादी 20 लाख के करीब है। उप्र के सोनभद्र, चंदौली, गोरखपुर, बलिया सहित 12 जिलों में ये आदिवासी जातियां हैं। पूर्वांचल में आदिवासी-दलित समाज के बीच भाजपा की पैठ बनाने में लक्ष्मण प्रसाद आचार्य की अच्छी भूमिका मानी जाती है। लक्ष्मण आदिवासी बहुल सोनभद्र के मूल निवासी हैं। उप्र में रामचरित मानस की चौपाई के जरिये विपक्ष दलितों और पिछड़ों के बीच भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहा है। इस बीच केंद्र सरकार ने आचार्य लक्ष्मण प्रसाद की नियुक्ति के जरिए इन वर्गों को संदेश देने की कोशिश की है कि भाजपा के लिए पिछड़ों और दलितों का महत्व सर्वोपरि है।

Fagu Chahan

फागू चौहान: फागू चौहान पिछड़ा वर्ग से आते हैं। फागू चौहान उत्तर प्रदेश विधानसभा में छह बार घोसी सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे आर्थिक रूप से पिछड़ी नोनिया जाति से आते हैं। उन्हें जब बिहार का राज्यपाल बनाया गया था, तब भाजपा-जदयू गठबंधन सरकार थी। अब बिहार का सियासी समीकरण बदल चुका है। जदयू-भाजपा की जगह जदयू-राजद की सरकार है। लिहाजा, उन्हें भाजपा शासन वाले मेघालय राज्य में शिफ्ट कर दिया गया है। वह वहां आराम से अपनी जिम्मेदारी निभा सकेंगे।

Manoj Sinha

मनोज सिन्हा:पूर्वी उत्तर प्रदेश के भोजपुरी भाषी क्षेत्र ‘पूर्वांचल’ से संबद्ध अन्य राज्यपालों में जम्मू एवं कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा शामिल हैं। वे केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं। संसद में उन्होंने गाजीपुर का प्रतिनिधित्व किया है। मनोज सिन्हा भूमिहार जाति से आते हैं और ‘पूर्वांचल’ में भूमिहार शुरू से ही टर्निंग प्वाइंट रहे हैं।

Kal Raj Mishra

कलराज मिश्रमूलरूप से गाजीपुर के रहने वाले और देवरिया लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व कर चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र राजस्थान के राज्यपाल हैं। इनके अलावा उप्र के ही बुलंदशहर के रहने वाले आरिफ मोहम्मद खान इस समय केरल के राज्यपाल हैं।

छह राज्यपालों, प्रधानमंत्री और राज्य के मुख्यमंत्री के अलावा, केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार के कई मंत्री भी ‘पूर्वांचल’ क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह, महेंद्र नाथ पांडे, पंकज चौधरी और अपना दल (एस) की अनुप्रिया पटेल आदि नेता ‘पूर्वांचल’ के मूल निवासी हैं। ‘पूर्वांचल’ हमेशा राजनीतिक पंडितों और शोधार्थियों के लिए गहरी रुचि का क्षेत्र रहा है। कहा जाता है कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उप्र से ही होकर जाता है और देश-प्रदेश की राजनीति में ‘पूर्वांचल’ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। ‘पूर्वांचल’ ने वर्ष 2007 में मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी और वर्ष 2012 में अखिलेश यादव के समर्थन में समाजवादी पार्टी को भारी संख्या में मत दिया था। हालांकि वर्ष 2014 के आम चुनावों के बाद से क्षेत्र के लोगों ने बड़ी संख्या में भाजपा का साथ दिया है। ‘पूर्वांचल’ की सियासत अभी भी जाति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है। मोदी सरकार के इस फैसले से साफ है कि विकास के मुद्दे के साथ ही भाजपा का पूरा फोकस ‘पूर्वांचल’ के जातीय समीकरण साधने पर भी है और इसके लिए राजभवन के रास्ते भी ‘पूर्वांचल’ के राजनीतिक समीकरणों को साधा जाएगा। भाजपा हर हाल में सूबे की सभी 80 सीटों को हासिल करने के लक्ष्य को प्राप्त जुटेगी। लोकसभा चुनावों में भाजपा के लिहाज से पूर्वांचल बेहद अहम है, क्योंकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ‘पूर्वांचल’ की गाजीपुर, घोसी, आजमगढ़, लालगंज और जौनपुर लोकसभा सीटें हार गई थी। उपचुनाव में भाजपा ने आजमगढ़ सीट तो जीत ली, लेकिन आगामी लोकसभा चुनावों के लिहाज से ‘पूर्वांचल’ के 25 जिले अब भी महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में मोदी सरकार ने वर्ष 2024 के चुनाव से पहले देश के सबसे अधिक लोकसभा सीटों और सर्वाधिक जनसंख्या वाले सूबे को बड़ा सियासी संदेश दिया है।