कोटा : राजस्थान के कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में नामीबिया के अध्ययन दल द्वारा अफ्रीकन चीते बसाने के लिए उपयुक्त पाये जाने और राज्य सरकार के इस संबंध में केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजने के बावजूद फिलहाल मुकुंदरा में चीते बसाने का सपना साकार नहीं हो सका है।
नामीबिया से भारत आये अध्ययन दल ने मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य के साथ कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में दरा अभयारण्य क्षेत्र वाले 80 वर्ग किलोमीटर के एनक्लोजर को अफ्रीकन चीते बसाने की दृष्टि से उपयुक्त पाया था। इसके बाद नामीबिया से देश में लाये जाने वाले चीतों को मुकुंदरा में बसाने की संभावना नजर आ रही थी और इसके लिए राज्य सरकार ने प्रस्ताव भी केन्द्र सरकार को भेज दिया गया था लेकिन केन्द्र में राज्य की तरफ से मजबूत पक्ष रखने के अभाव में मुुकुंदरा के दावों के बीच चीते कूनो में आबाद हो गए।
हालांकि कूनों में यह प्रयोग सफल रहने पर इसके बाद मुकुंदरा में भी चीते बसाये जाने की उम्मीद की जा रही हैं। कोटा जिले की सांगोद विधानसभा सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री भरत सिंह कुंदनपुर ने कहा है कि कोटा का कोई नेता चीते की चिंता करने को तैयार नहीं है। हर कोई अपनी राजनीति चमकाने में लगा है जबकि कोटा, झालावाड़ और चित्तौड़गढ़ जिले के रावतभाटा क्षेत्र तक विस्तृत मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में चीते को बसाया जाना कम महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि यह आने वाले समय में कोटा में पर्यटन के विकास और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकता था।
वन्यजीव और पर्यावरण प्रेमियों में इस बात को लेकर गहरी चिंता है कि नामीबिया की अध्ययन दौरे पर आई टीम ने मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय अभयारण्य के साथ कोटा जिले के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में दरा अभयारण्य क्षेत्र वाले 80 वर्ग किलोमीटर के एनक्लोजर को अफ्रीकन चीते बसाने की दृष्टि से उपयुक्त पाया था लेकिन केंद्र में कोटा का पक्ष मजबूती से नहीं रख पाने से वर्ष 1952 के बाद देश से विलुप्त घोषित कर दिए गए चीतों को भारत में फिर से आबाद करने का श्रेय मध्यप्रदेश के कूनो नेशनल पार्क के हिस्से में गया।
राजस्थान का वन्यजीव विभाग ने कोटा के मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के साथ बारां जिले के शेरगढ़ अभयारण्य को भी चीते बसाने के लिए उपर्युक्त बताया है। शेरगढ़ अभयारण्य में चीता बसाने की विपुल संभावना को लेकर कुछ महीनों पहले वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (ड़ब्ल्यूआईआई)की एक टोली ने शेरगढ़ अभयारण्य क्षेत्र का दौरा कर इसे चीतें बसाने के लिए उपर्युक्त पाया। शेरगढ़ अभयारण्य 90 वर्ग किलोमीटर के दायरे में ही फैला होने के वजह से यहां पर्याप्त जगह का अभाव है। बाद में देहरादून से आई भारतीय वन्यजीव संस्थान की टीम ने भी प्रारंभिक अवलोकन के बाद इस बात की तस्दीक की कि शेरगढ़ अभयारण्य का क्षेत्र कम है।
बताया जा रहा है कि इन दावों के बीच वन विभाग शेरगढ़ अभयारण्य में चीते बसाने की तैयारी में जुट भी गया था एवं शेरगढ़ क्षेत्र के सूरपा ही नहीं बल्कि पांडाखोह गांव का भी विस्थापन की उम्मीद करते हुए शेरगढ़ अभयारण्य का क्षेत्रफल 90 वर्ग किलोमीटर से 300 वर्ग किलोमीटर तक बढ़ाने की तैयारी की गई। इसके लिए गत एक अगस्त से सर्वे शुरू करने की भी तैयारी थी। हालांकि यहां पांच तेंदुए छोड़े गए।