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सदियों पुरानी हिंदी भाषा है भारत का गौरव

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“कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी”


यह कहावत भारत जैसे बहुरंगी और विविध देश के लिए शब्दसः सटीक बैठती है। सैकड़ों बोलियों और भाषा वाले इस देश में हिंदी का स्थान अद्वितीय है। हजारों साल पुरानी इस भाषा ने ना केवल पूरे देश को एक सूत्र में पिरोने का काम किया बल्कि आजादी की लड़ाई के दिनों में सबसे मुखर और मजबूत संपर्क सूत्र के रूप में भी काम किया। धीरे-धीरे हिंदी पुष्पित और पल्लवित होती गई और आज दुनिया की चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन गई है। सोशल मीडिया से लेकर हर नई तकनीक में आज हिंदी का इस्तेमाल हो रहा है, लेकिन हिंदी की राह में चुनौतियां भी बहुत हैं। हिंदी का ज्यादा से ज्यादा प्रचार प्रसार हो, इसके लिए हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।

सामाजिक अस्तित्व की पहचान है हिंदी

       हिंदी देश को एकता की डोर में बांधने का काम करती है। भाषाओं और बोलियों की विविधता ही हमारे देश की ताकत है। दुनिया में ऐसे कई देश हैं जिनकी भाषाएं लुप्त हो गई हैं। वे अपनी भाषाएं गंवा बैठे हैं, यानी वो अपनी भाषाओं को आज छोड़ चुके हैं और जो देश अपनी भाषा छोड़ देता है वो अपने अस्तित्व को कभी कायम नहीं रख सकता। उस देश का भौगोलिक अस्तित्व तो रह सकता है, किंतु विचार प्रवाह और उसका सांस्कृतिक अस्तित्व नहीं बच सकता, क्योंकि भाषा ही है जो व्यक्ति को अपने देश के मूल के साथ जोड़ती है, अपने विचार प्रवाह को देश के विचार प्रवाह के साथ जोड़ती है, अपनी संस्कृति के साथ जोड़ती है। हिंदी के विकास और प्रचार-प्रसार के लिए हमें आपस में हिंदी में बात करने की जरूरत है। भाषाएं तभी जीवित रह सकती हैं, जब वह समाज जिसकी वो भाषा है, उसके महत्व को समझे और उस भाषा के शुद्धिकरण और संशोधन में प्रयासरत रहे। भाषा को जीवित रखने के लिए इसका अधिक से अधिक उपयोग होना चाहिए और इसमें सभी का योगदान जरूरी है। कोई भाषा तभी आगे तक जीवित रह सकती है जब नई पीढ़ी उसे बोलने में गौरवान्वित हो यानी गौरव अनुभव करे। किसी भाषा की सरलता, सहजता और शालीनता अभिव्यक्ति को सार्थकता प्रदान करती है, हिंदी ने इन पहलुओं को खूबसूरती से समाहित किया है, ये सिर्फ एक भाषा ही नहीं बल्कि हमारी संस्कृति का प्रतीक है।

आधुनिकता से जुड़ चुकी हिंदी

          हिंदी अलग-अलग भाषाओं, बोलियों और संस्कृतियों का समावेश है। हिंदी दिन प्रतिदिन आगे बढ़ती जा रही है। आज दुनिया के 20 प्रतिशत से ज्यादा लोग हिंदी में बातचीत करते हैं और ये दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। ऐसे में जरूरत है इसे दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के रूप में पहचान दिलाना। हिंदी पहले के मुकाबले बहुत बदल गई है। एक जमाने में जिस तरह की हिंदी बोली और लिखी जाती थी, वो अब चलन से बाहर हो गई है। जरूरत के हिसाब से इसमें कई तब्दीलियां आई हैं। हिंदी में ये बदलाव दशक-दो दशक की बात नहीं है बल्कि हिंदी भाषा एक हजार से ज्यादा सालों का इतिहास अपने आप में समेटे हुए है। भाषा वैज्ञानिकों के मुताबिक हिंदी साहित्य का इतिहास वैदिक काल से आरंभ होता है। समय-समय पर इसका नाम बदलता रहा है।

     अपनी उत्पत्ति के बाद से हिंदी लगातार समृद्ध होती गई और उसका रुतबा भी  बढ़ता गया। आज हिंदी में कामकाज जोर पकड़ रहा है। सोशल मीडिया और नई-नई तकनीकों में हिंदी का प्रयोग किया जा रहा है, इसमें न सिर्फ हिंदी का दायरा बढ़ा है बल्कि वैश्विक स्तर पर ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ रहे हैं। आजादी के बाद के सात दशकों में संचार माध्यमों में हिंदी बहुत मजबूत हुई है। हिंदी के अखबारों का प्रसार बहुत तेजी से बढ़ा है। फेसबुक से लेकर ट्विटर पर हिंदी करोड़ों लोगों द्वारा पढ़ी और लिखी जा रही है। हिंदी का सफर अपने आप में भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक इतिहास को खुद में समेटे हुए है, लेकिन जिस कठिन राह पर बिना रुके हिंदी बढ़ती जा रही थी उस पथ पर मील का पत्थर साबित हुई, इसलिए आजादी के बाद हिंदी को हमारी राजभाषा बनने का भी गौरव हासिल हुआ।  

ऐतिहासिक हिंदी साहित्य की भूमिका

     आजादी की लड़ाई में पूरा देश अपना सर्वस्व न्योछावर कर रहा था। देश के कवियों और साहित्यकारों ने अपनी कलम से क्रांति की वो हुंकार भरी कि देश के युवा से लेकर हर वर्ग स्वतंत्रता पाने को व्याकुल हो गया। स्वतंत्रता की लड़ाई में हमारी सबसे बड़ी ताकत थी एकता और पूरे देश को एक सूत्र में बांधने के लिए हिंदी ने निर्णायक भूमिका निभाई। महात्मा गांधी ने हिंदी को जनमानस की भाषा बताया। 1917 में गुजरात के भरूच में हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाने का आह्वान किया, जिसे उत्साह के साथ स्वीकृति दी गई। हिंदी के साथ सभी प्रांत के साहित्यकार और प्रभुत्व रखने वाले लोग धीरे-धीरे जुड़ने लगे। 1918 में महात्मा गांधी पहली बार इंदौर पहुंचे थे जहां हिंदी सभा की अध्यक्षता उन्होंने की, इसी सभा में गांधी जी ने राष्ट्रभाषा के बाद हिंदी को राजभाषा के तौर पर भी अपनाने की घोषणा की। इस पूरी मुहिम में दक्षिण भारत से भी काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया देखने को मिल रही थी।

1947 में देश अंग्रेजी हुकूमत से आजाद हुआ। अब भाषा को लेकर सबसे बड़ा सवाल था क्योंकि भारत में सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं। 6 दिसंबर 1946 में आजाद भारत का संविधान तैयार करने के लिए संविधान सभा का गठन हुआ। संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को संविधान के अंतिम प्रारूप को मंजूरी दे दी। संविधान सभा में पुरुषोत्तम दास टंडन ने हिंदी के लिए पुरजोर वकालत की, क्योंकि राष्ट्रभाषा के चुनाव के दौरान अंग्रेजी शासन का पूरा प्रभाव देखने को मिल रहा था। भारतीय संविधान में हिंदी को राजभाषा की जगह तो मिली लेकिन राष्ट्रभाषा के तौर पर नहीं अपनाया गया, जिसे लेकर आज भी पैरवी की जाती है। राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर पहली बार 1953 में 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया गया।

       हिंदी राजभाषा बन चुकी थी, लेकिन इसके भविष्य को उज्जवल बनाने के लिए जरूरी था इसे राष्ट्रभाषा का भी दर्जा मिले। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने एकमत से निर्णय लिया कि हिंदी ही भारत की राजभाषा होगी। 1950 में संविधान के अनुच्छेद 343(1) में हिंदी को देवनागरी लिपि में राजभाषा का दर्जा दिया गया।

         राजभाषा के तौर पर हिंदी ने स्वाभाविक ढंग से दिलों में जगह बना ली लेकिन इसके संरक्षण और विकास के लिए सरकार ने कई कदम उठाए‌। सरकार के नियमों के अनुसार तमिलनाडु को छोड़कर पूरा देश अपना कामकाज हिंदी भाषा में कर सकता है। हालांकि तकनीक और विज्ञान के इस युग में हर क्षेत्र में हिंदी को और बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है।

लेखिका:
रंजना मिश्रा ,
कानपुर,उत्तर प्रदेश

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